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बिहार : 130 वर्ष पुराना बरगद का वृक्ष कर रहा भगवान विष्णु के वाहन की रक्षा

बिहार विलुप्त हो रहे गरूड़ को भा रहा कटिहार का बूढ़ा बरगद का छांव। हसनगंज प्रखंड के जगन्नाथपुर गांव में है 130 वर्ष पुराना बरगद। कभी नेता व साहित्यकारों का भी बरगद की छांव तले लगता था जमघट।

By Dilip Kumar ShuklaEdited By: Updated: Thu, 15 Sep 2022 05:24 PM (IST)
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बिहार के कटिहार में इस बरगद के वृक्ष में गरूड़ का वास है।
नीरज श्रीवास्तव, हसनगंज  (कटिहार)। कटिहार के हसनगंज प्रखंड में लगभग 130 वर्ष पुराना बरगद पर आज भी गरूड़ का बसेरा है। गांव वाले इसे शुभ मानते हैं और अपने दिनचर्या की शुरूआत गरूड़ के दर्शन से करते हैं। यहां की आवोहवा भी उसे भा रही है, तभी तो वर्षों से यहां डेरा जमाए हुए है। यहां के लोग इसे धर्म की आस्था से जोड़ते हुए भगवान विष्णु के वाहन के रूप में उनका सम्मान करते हैं। यह शुभ संकेत है कि दुर्लभ पक्षियों की श्रेणी में आ चुके गरुड़ आज भी बूढ़े बरगद की छांव में खुद को सुरक्षित समझते हैं। पेड़ के नीचे देवता का स्थान भी है। कभी यहां नेताओं व साहित्यकारों का जमघट भी लगता था।

कथाशिल्पी फणीश्वरनाथ रेणु के भी हसनगंज आने पर कभी कभी यहां बैठकी लगाने की बात कही जाती है। बरगद की छांव में सुकून के साथ विभिन्न बिंदुओं पर भी चर्चा किया की जाती थी। साथ ही जगरनाथपुर गांव वासियों का इस बूढ़े बरगद से अटूट संबंध रहा है। आते जाते राहगीर भी इस बरगद की छांव में सुस्ताते हैं। गांव के लोगों के साथ गरुड़ का दोस्ताना व्यवहार रहा है।

ग्रामीण अशोक श्रीवास्तव, मुकेश श्रीवास्तव आदि का कहना है कि वर्षो से गरुड़ यहां घोंसला बनाकर रहता है। किसी को भी गरुड़ को डराने धमकाने पर सख्त पाबंदी है। कोई भी व्यक्ति उसे परेशान नहीं कर सकता। हर वर्ष यहां इस बरगद पेड़ के नीचे काली पूजा का आयोजन होता है। उससे दस दिन पूर्व सभी गरुड़ अपना घोंसला छोड़ कर चला जाता है। ताकि पूजा स्थल गंदा न हो। पूजा समाप्त होते ही फिर वापस लौट जाता है। गरुड़ किसानों का मित्र भी है। गरुड़ के दर्शन से गांव के लोग अपनी दिनचर्या की शुरुआत करते हैं। आज भी पेड़ की छांव में सुस्ताने के लिए राहगीरों के साथ गांव के लोग भी पहुंचते हैं।

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