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Bihar: हानिकारक रसायन नहीं, अब जैविक विधि केले को रखेगी सुरक्षित; बीएयू के विज्ञानियों को मिला इंटरनेशनल पेटेंट

Bihar News कृषि के माध्यम से ग्रामीण आर्थिकी को सशक्त करने के लिए फलों और सब्जियों के उत्पादन पर खासा जोर है। केले में फंफूद और चित्ती (काले धब्बे) लगने की समस्या आम है जिससे बचने के लिए खतरनाक रसायन का प्रयोग होता है। अब बिहार कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू) के विज्ञानियों ने इस समस्या का जैविक हल तलाश किया है।

By Jagran NewsEdited By: Prateek JainUpdated: Sun, 05 Nov 2023 06:29 PM (IST)
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Bihar: हानिकारक रसायन नहीं, अब जैविक विधि केले को रखेगी सुरक्षित; बीएयू के विज्ञानियों को मिला इंटरनेशनल पेटेंट
ललन तिवारी, भागलपुर। कृषि के माध्यम से ग्रामीण आर्थिकी को सशक्त करने के लिए फलों और सब्जियों के उत्पादन पर खासा जोर है। केले की खेती भारत में निरंतर बढ़ रही है और हम विश्व में केला उत्पादन में शीर्ष स्थान पर हैं।

केले में फंफूद और चित्ती (काले धब्बे) लगने की समस्या आम है जिससे बचने के लिए खतरनाक रसायन का प्रयोग होता है। अब बिहार कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू) के विज्ञानियों ने इस समस्या का जैविक हल तलाश किया है।

अध‍िक समय तक सुरक्षित रहेगा केला

केले के छिलके से तैयार पाउडर के लेपन से केले का फल फफूंद और चित्ती से तो सुरक्षित रहेगा ही साथ ही यह अधिक अवधि तक खराब भी नहीं होगा।

भागलपुर के सबौर स्थित बीएयू में यह जैविक विधि खोजने वाले विज्ञानी डॉ. वसीम सिद्दिकी बताते हैं कि केले के छिलके को एक निश्चित तापमान में चंद मिनट तक गर्म करने के बाद उसका पाउडर बनाया गया है।

पाउडर से विशेष विधि से लेप बनाया जाता है, जिसका उपयोग पानी मिलाकर केले पर किया जाता है। इसके प्रयोग के बाद केले का फल चित्तियों या फफूंद से दूर रहता है और सुंदर दिखता है। इसकी ताजगी भी अधिक समय तक बनी रहती है।

बीएयू को जर्मनी से मिला पहला अंतरराष्ट्रीय पेटेंट

केले में प्रचुर मात्रा में पोषक तत्व और एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं, जो मानव आहार और स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण हैं। भारत में कच्चे और पके दोनों तरह के केलों का प्रयोग किया जाता है। मौसमी फल होने के कारण केला तेजी से पकता है और जल्दी खराब होता है।

अनुचित कटाई के उपरांत प्रबंधन संबंधी असुविधाओं के कारण इसे क्षति और रोगों का भी सामना करना पड़ता है। केले को अधिक दिनों तक रखने के लिए कवकनाशी समेत विभिन्न रासायनिक तरीकों का उपयोग किया जाता है। ये खाद्य सुरक्षा के लिहाज से अच्छे नहीं माने जाते हैं।

इस विधि के लिए बीएयू को जर्मनी से अपना पहला अंतरराष्ट्रीय पेटेंट मिला है, जोकि शोध क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ रहे इस विश्वविद्यालय के लिए मील का पत्थर है। इस पेटेंट का शीर्षक "सिंथेसाइज्ड कार्बन क्वांटम डॉट्स (यूटिलिटी माडल नंबर 20 2023 104 654)' है।

संश्लेषित कार्बन क्वांटम डॉट्स का उपयोग कर पेड़ से काटे गए केले को सुरक्षित रखा जाता है। पर्यावरण के अनुकूल हरित संश्लेषण विधि का उपयोग कर केले के छिलके से कार्बन क्वांटम डाट्स को संश्लेषित किया गया था। ये कटाई के बाद की गुणवत्ता को संरक्षित करने और बढ़ाने में अत्यधिक प्रभावी साबित हुए हैं। इससे केले के भंडारण और संरक्षण में क्रांतिकारी बदलाव आएंगे। 

कैसे करें तकनीक का उपयोग

कार्बन डाट्स तरल घोल के रूप में उपलब्ध होता है। 97 लीटर पानी में तीन लीटर (या पानी के अनुपात में तीन प्रतिशत) कार्बन डाट साल्यूशन मिलाकर केले के फलों को 10-15 मिनट तक उपचारित किया जाता है।

बाद में इन फलों को थोड़ा सुखाने की सलाह दी जाती है, ताकि फलों पर अतिरिक्त पानी जमा न रह सके। सामान्य स्थिति में फलों को आठ दिनों तक इस माध्यम से भंडारित किया जा सकता है। 

अंतरराष्ट्रीय पेटेंट प्राप्त यह तकनीक केला व्यवसाय में वरदान साबित होगा। जल्द ही किसी ब्रांडेड बड़े कंपनी से सहयोग लेने की पहल की जाएगी, ताकि इसका व्यावसायिक उत्पादन हो सके। - डॉ. डी. आर. सिंह, कुलपति, बीएयू सबौर

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