वेद अनुसरण से सिद्ध व्यक्ति प्राप्त कर सकता है ब्रह्म ज्ञान, बोले शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती- सृष्टि के साथ सनातन धर्म
बिहार के सहरसा में धर्मसभा के दौरान गोवर्धन पीठाधीश्वर जगन्नाथ धाम के जगतगुरु शंकराचार्य निश्चलानन्द ने लोगों के सवालों के जवाब दिए। शंकराचार्य ने जताई प्राचीन वर्ण व्यवस्था से सहमति। सृष्टि के साथ ही सनातन धर्म की शुरुआत हुई।
By Dilip Kumar ShuklaEdited By: Updated: Wed, 06 Apr 2022 11:15 AM (IST)
संवाद सूत्र, महिषी (सहरसा)। वेद अनुसरण से सिद्ध व्यक्ति ही ब्रह्म ज्ञान प्राप्त कर सकता है। यह बात गोवर्धन पीठाधीश्वर जगन्नाथपुरी धाम के जगतगुरु शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती ने यहां कही। उन्होंने वेद सहित अन्य सनातन ग्रंथों को वाणिज्य प्रबंधन, विज्ञान, समाज दर्शन और अंतरिक्ष विज्ञान सहित कई प्रकार के लौकिक एवं पारलौकिक ज्ञानों का भंडार बताया। शंकराचार्य सहरसा जिले के महिषी आगमन के दूसरे दिन स्व. श्याम ठाकुर की ठाकुरबाड़ी में आयोजित संगोष्ठी में श्रद्धालुओं द्वारा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दे रहे थे।
श्रीउग्रतारा भारती मंडन संस्कृत महाविद्यालय के प्रो. नंदकिशोर चौधरी द्वारा ब्रह्म, पुनर्जन्म, मोक्ष सहित अन्य शास्त्रगत पुरुषार्थों पर भारतीय दर्शन में मतभिन्नता के संबंध में जिज्ञासा व्यक्त करने के उत्तर में उन्होंने संत मकसूदन जी द्वारा किए गए द्वैत, अद्वैत, भावाद्वैत व विशिष्टाद्वैत की व्याख्या का उल्लेख करते हुए कहा कि जो संगत साधने में निपुण हैं, उनके लिए कुछ भी कठिन नहीं होता है। रामानुजाचार्य ने जगत के लिए असत्य शब्द का प्रयोग किया था। उसे कट्टर द्वैतवादी माधवाचार्य को भी मानना पड़ा था। वेद का अनुसरण कर सिद्ध बने पुरुष को ही ब्रह्म ज्ञान प्राप्त हो सकता है।
भाजपा के जिलाध्यक्ष दिवाकर सिंह ने हर प्रवचन के दौरान धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो व विश्व का कल्याण हो के नारे लगाए जाने का उदाहरण अन्य धर्म में नहीं मिलने का अभिप्राय पूछा। इसके जबाव में शंकराचार्य ने कहा कि वर्तमान में जितने भी धर्म हैं उनके पूर्वज सनातनी थे। सृष्टि के साथ सनातन धर्म की शुरुआत हुई। इसलिए सनातन धर्मावलंबी आज भी विश्व कल्याण की बात करते हैं। धर्म हमेशा मनुष्य में सद्विचारों को बढ़ावा देता है।
सहरसा का यह क्षेत्र इस समय पूरी तरह धार्मिक बना हुआ है। धर्म की जय हो के जयघोष के साथ सनातन धर्म की रक्षा का सभी संकल्प ले रहे हैं। शंकराचार्य के मुखारविंद से उनके प्रवचन को सुनकर लोग कहते हैं-जीवन जीने का मंत्र यहीं से प्राप्त होती है।
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