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मुंगेर आकर चखिए हरियाणा की स्पेशल जलेबी, दाम भी ज्‍यादा नहीं

राजस्थान के जोधपुर से आकर तीन भाई कर रहे कारोबार। हर शाम दुकान पर लगी रहती भीड़ हर कोई ले रहा स्वाद। 140 रुपये प्रति किलो बिकती है जलेबी। 2020 में ही लाकडाउन में आए थे तीनों भाई।

By Dilip Kumar ShuklaEdited By: Updated: Tue, 13 Jul 2021 09:39 AM (IST)
मुंगेर आकर चखिए हरियाणा की स्पेशल जलेबी, दाम भी ज्‍यादा नहीं
मुंगेर में राजस्‍थान के कारीगर बनाते हैं जलेबी।

मुंगेर (हैदर अली)। मुंगेर के लोग हरियाणा की स्पेशल जलेबी का स्वाद ले रहे हैं। राजस्थान के जोधपुर के निवासी तीन भाई मिठास से भरी हरियाणा की जलेबी बना रहे हैं। हर शाम गांधी चौक के पास उनकी दुकान पर जलेबी का स्वाद लेने के लिए शहरवासियों की भीड़ लगी रहती है। सौ ग्राम से लेकर दो किलो तक की खरीदारी कर रहे हैं। घर के लिए भी आर्डर कर रहे हैं। राजस्थान से आए प्रधान ने बताया कि हरियाणा में उनके पूर्वजों की जलेबी का दुकान है। परिवार बढ़ा तो कारोबार बढ़ाने के लिए बिहार के मुंगेर आ गए। इनके स्वजन ने पश्चिम बंगाल के इस्लामपुर के अलावा दूसरों शहरो में भी जलेबी की दुकान खोली है। उन्होंने बताया कि इनकी दुकान की एक किलो जलेबी की कीमत 140 रुपये है। हर दिन करीब चार-पांच हजार की जलेबी की बिक्री होती है।

इस जलेबी की खास विशेषता

इस जलेबी की खास विशेषता यह है की ठंडा होने पर भी यह खास्ता बना रहता है। इस कारण लोग इसे खूब पसंद करते हैं। प्रधान के साथ उसका भाई रवि और सुखदेव भी इस कारोबार में हाथ बंटा रहे हैं। प्रधान ने बताया कि पहले लाकडाउन 2020 में वह मुंगेर आए थे। शुरुआत में कारोबार में कुछ परेशानी भी हुई। धीरे-धीरे लोग जलेबी को शहर और आसपास के लोग पसंद करने लगे। इसके बाद यह कारोबार बढ़ने लगा। ग्राहकों के लिए वहां डिजिटल पेंमेंट करने की सुविधा उपलब्ध है। इनके परिवार के जलेबी के व्यवसाय शुरू होने से यहां इसकी दुकान खोलने तक की रोचक स्टोरी दी जाएगी।

शादी या समारोह में बुकिेंग

हरियाणा की स्पेशल जलेबी की डिमांड घरों तक सीमित नहीं है। शादी-विवाह से लेकर समारोह में भी लोग डिमांड करते हैं। शहर के युवा से लेकर बुजर्ग और महिलाएं भी जलेबी का स्वाद लेने के लिए प्रधान की दुकान पर पहुंच रहे हैं।

जलेबी का इतिहास

दसवीं शताब्दी के मुहम्मद बिन हसन अल-बगदादी की कुक बुक 'किताब-उल-तबीक' में जलेबी की चर्चा है तथा दसवीं शताब्दी के ही एक और अरबी कुक बुक इब्न-शायर-अल-बराक में जलेबी की चर्चा मिलती है। तब जिलेबी में चाशनी की जगह शहद का इस्तेमाल होता था। अब चाशनी का इस्तेमाल होता है। चाशनी विशुद्ध रूप से भारतीय है। हिंदी के महान कवि निराला ने तो जलेबी को राष्ट्रीय मिठाई तक का दर्जा प्रदान कर दिया था। यह ईरानी डिश है। ईरान के नववर्ष (नवरोज) पर आज भी जलेबी बनाई जाती है।