फाइन आट्स को शिक्षा का अंग बनाने में जुटे कला साधक का अवसान, भागलपुर में दी श्रद्धांजलि
पटना राजकीय आर्ट एंड क्राफ्ट्स कॉलेज के पूर्व प्रभारी प्राचार्य व मशहूर चित्रकार प्रो. उमानाथ झा का निधन हो गया। वह फाइन आटर्स को बिहार सहित देश भर में शिक्षा का अभिन्न अंग बनाने के लिए संघर्ष करते करते रहे। 22 जुलाई 2021 को अलविदा हो गए।
By Dilip Kumar ShuklaEdited By: Updated: Thu, 22 Jul 2021 09:19 AM (IST)
भागलपुर [विकास पाण्डेय]। पटना राजकीय आर्ट एंड क्राफ्ट्स कॉलेज के पूर्व प्रभारी प्राचार्य व मशहूर चित्रकार प्रो. उमानाथ झा फाइन आटर्स को बिहार सहित देश भर में शिक्षा का अभिन्न अंग बनाने के लिए संघर्ष करते करते 22 जुलाई 2021 को इस दुनिया को अलविदा हो गए। पटना आर्ट कॉलेज में 31 वर्षों तक के कार्यकाल में उन्होंने कॉलेज में फाइन आर्ट्स, कॉमर्शियल आर्टस, हैंडक्राफ्ट्स व स्कल्पचर के गरीब व होनहार कलाकारों को उचित सहयोग कर धनाभाव के कारण बीच में पढ़ाई छोडऩे नहीं दिया।
वहीं इन्होंने अथक प्रयास से पटना के शिल्पकला परिषद् में हैंड्क्राफ्ट्स का विशेष प्रशिक्षण केंद्र व कोर्स शुरू कराया। वहां से कला के प्रति अभिरुचि रखने वाली अनेक महिलाएं गुडिय़ा व अन्य शिल्प कलाओं में दक्षता हासिल कर स्वावलंबन की दिशा में आगे बढीं। दिल्ली के ललित कला अकादमी, पटना के शिल्प कला परिषद, गुजरात के बड़ौदा आर्ट कॉलेज आदि देश के प्रसिद्ध नगरों सहित शहर के कला केंद्र में उनकी पेंटिंग्स की कई प्रदर्शनियां लगीं व प्रशंसित हुईं। इस अभियान के तहत अवकाश ग्रहण करने के बाद भी कई सालों तक भागलपुर सहित विभिन्न शहरों में पेंटिंग्स प्रदर्शनियों में भाग लेने के अलावा कला, फैशन डिजाइनिंग संकाय के छात्रों सहित कला के प्रति रुचि रखने वाले युवाओं को इस विधा के आवश्यक टिप्स देते रहे।
वह कहते थे कि पेटिंग्स देश, काल और परिस्थिति को जीवंत बनाए रखने का सर्वोत्तम उपाय है। इसकी लाइफ लंबी होने के कारण इसे वर्षों तक सहेज कर भी रखा जा सकता है। अजंता एलोरा की गुफाओं में बनाए गए प्राचीन भित्ति चित्र हों या लियोनार्डो दा विंची की लगभग 500 वर्ष पुरानी मोनालिसा की अनमोल पेंटिंग्स हो, आज भी सजीव सी लगती हैं। उनसे उस काल की जीवन शैली का परिचय मिलता है। वह कहते थे कि कंप्यूटर डिजाइन टेक्नोलॉजी ने फाइन आर्टस के स्नातक धुरंधरों के लिए विस्तृत द्वार खोल दिए हैं।
इसलिए हमारे देश जैसे विकासशील राष्ट्र के लिए इसे शिक्षा का अभिन्न अंग बनाना लाभप्रद है। लेकिन अफसोस की बात है कि आजादी के इतने वर्षों बाद भी हम इसकी उपयोगिता से अनभिज्ञ बने हुए हैं। हमारे स्कूल व कॉलेजों में इसकी पढ़ाई की कोई सुव्यवस्था नहीं है। विद्यालयों में आर्ट टीचर नहीं हैं। उनके बालपन में उनके शिक्षक पिता पं. जनार्दन झा ने इनके लिए एक कलर बॉक्स ला दिया था। उससे वह फूल, पौधे, पर्वत आदि के चित्र बनाया करते थे। उनकी कला कौशल से प्रभावित होकर उनके पिताजी ने उन्हें फाइन आटर्स में उच्च शिक्षा लेने की प्रेरणा दी ।
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