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जीनोम एडिटिंग से संवरेगी खेती-किसानी, उद्यान-वानिकी में होंगे बड़े बदलाव, BAU में बन रही हाईटेक लैब

BAU Genome Editing Lab भागलपुर जिले में स्थित बिहार कृषि विश्वविद्यालय में जीनोम एडिटिंग के लिए हाईटेक लैब बनाई जा रही है। इसके माध्यम से किसानों की आय बढ़ाने के लिए गुणवत्तापूर्ण पौधों को विकसित किया जाएगा। ये पौधे पैदावार को बढ़ाने वाले होंगे। इनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता भी अधिक होगी। इससे देश के किसानों को खास लाभ होगा।

By Yogesh Sahu Edited By: Yogesh Sahu Updated: Wed, 18 Sep 2024 06:56 PM (IST)
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बिहार कृषि विश्वविद्यालय में बन रहा हाईटेक जीनोम एडिटिंग लैब

ललन तिवारी, भागलपुर। खेती-किसानी में क्रांतिकारी बदलाव की तैयारी है। आने वाले दिनों में कम पैदावार वाली फसलों/पौधों की नई जीन विकसित कर कम खर्च में बेहतर उत्पादन प्राप्त किया जा सकेगा। इससे अन्नदाता तो सबल बनेंगे ही, पर्यावरण भी सुरक्षित-संरक्षित होगा।

बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर में बन रहे हाईटेक जीनोम एडिटिंग लैब के जरिये उद्यान-वानिकी की नई परिभाषा गढ़ने की पुरजोर कोशिश शुरू कर दी गई है।

केंद्र सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने इसकी स्वीकृति दे दी है। कृषि विज्ञानियों की मानें तो किसानों की आय बढ़ाने के लिए जीनोम एडिटिंग को सर्वश्रेष्ठ विकल्प कहा जा रहा है।

इस तकनीक से ज्यादा पैदावार देने वाले गुणवत्तापूर्ण पौधों का सहज विकास होगा। साथ ही आम लोगों की स्वास्थ्य की चिंता करते हुए रोग प्रतिरोधक क्षमता से युक्त पौधों का भी बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जाएगा।

जीनोम से विकसित फसलें विपरीत परिस्थिति में भी सहनशील होंगी। नई तकनीक से जड़ी-बूटी और दुर्लभ पौधों का भी संरक्षण होगा।

वर्तमान में देश के तीन संस्थानों में जीनोम एडिटिंग पर काम आरंभ किया गया है। इस कड़ी में भागलपुर के बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर में केंद्र की महत्वाकांक्षी परियोजना के तहत वृहत प्रयोगशाला का निर्माण कराया जा रहा है।

सबकुछ ठीक रहा तो अगले दो-तीन माह में जीनोम एडिटिंग लैब बनकर तैयार हो जाएगा। इस लैब में व्यापक स्तर पर किसानों को बेहतर गुणवत्तापूर्ण फसल प्रभेद मिलेंगे।

इससे पहले जीनोम एडिटिंग रिसर्च को लेबरेटरी तक ही सीमित रखा गया था। लेकिन, अब सरकार ने खेतों में इस नई तकनीक को आजमाने की स्वीकृति दी है।

बड़े पैमाने पर होगा व्यावसायिक उत्पादन

बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के कृषि विज्ञानी डा. तुषार रंजन कहते हैं कि देश के कुछ संस्थानों में फसलों/पौधों के जीनोम एडिटिंग पर काम हो रहा है।

लेकिन अबतक इसे सिर्फ रिसर्च उद्देश्य से लेबरेटरी तक ही सीमित रखा गया था। अब फील्ड में काम करने की स्वीकृति मिली है, जिससे लुप्तप्राय हो रहे पौधों का संरक्षण आसानी से किया जा सकेगा।

वहीं, ज्यादा पैदावार देने वाले पौधों को विकसित कर किसानों की आय बढ़ाने में मदद मिलेगी। किसी भी परिस्थिति में फसलों का उत्पादन संभव हो सकेगा।

नई-नई बीमारियों से लड़ने के लिए रोग प्रतिरोधक क्षमता से युक्त गुणवत्तापूर्ण पौधा का बड़े पैमाने पर व्यावसायिक उत्पादन हो सकेगा। जिससे खेती-किसानी से लेकर उद्यान और वानिकी में भी नए बदलाव दिखेंगे।

क्या होता है जीनोम एडिटिंग

जीनोम एडिटिंग या जीन एडिटिंग एक प्रकार की जेनेटिक इंजीनियरिंग है। इसके जरिये पौधों के डीएनए को संशोधित या प्रतिस्थापित किया जाता है।

इस प्रक्रिया से कम पैदावार देने वाली फसलों/पौधों की जीनोम एडिटिंग कर उसे गुणवत्तापूर्ण और अत्यधिक उत्पादन के लायक बनाया जाता है।

जीनोम एडिटिंग से पौधों की प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाई जा सकती है। साथ ही फसलों/पौधों के नए-नए प्रभेद विकसित कर उसे हर मौसम के अनुकूल बनाया जा सकता है।

बिहार कृषि विश्वविद्यालय में जीनोम लैब बनाने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। लैब बनने के बाद पौधों के जीन पर रिसर्च किया जाएगा। आने वाले समय में ज्यादा पैदावार देने वाले, रोग प्रतिरोधक क्षमता से युक्त पौधों का बड़े पैमाने पर उत्पादन होगा। नई तकनीक से उद्यान और वानिकी सहित कम पैदावार देने वाली फसलों को नई दशा-दिशा मिलेगी। - डॉ. डी. आर. सिंह कुलपति बीएयू सबौर भागलपुर

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