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शहद ने महिलाओं की जीवन में घोल दी मिठास, मुंगेर के इस गांव में मधुमक्खियों से हुई गहरी दोस्ती

बिहार के मुंगेर के एक गांव में महिलाएं आत्मनिर्भर हो गई हैं। इन्हें आत्मनिर्भर इनकी दोस्त मधुमक्खियों ने बनाया है। शहद महिलाओं की जिंदगी में गजब की मिठास घोल रहा है। एक समूह की महिलाओं ने बताया कि अब अच्छी आमदनी भी हो रही है।

By Shivam BajpaiEdited By: Updated: Sun, 17 Apr 2022 04:44 PM (IST)
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मुंगेर के असरगंज प्रखंड के चोरगांव की महिलाएं हुईं आत्मनिर्भर।

संवाद सूत्र, असरगंज (मुंगेर) : मधुमक्खी पालन कर महिलाओं की जिंदगी में खुशियों की मिठास घोल दी है। प्रखंड के दर्जन भर ज्यादा महिलाएं इससे जुड़कर आत्मनिर्भर बन रही हैं। मधुमक्खियों के डंक की परवाह किए बगैर इनका कारोबार लगातार बढ़ता गया और मिठास की उस ऊंचाई तक पहुंच गया, जहां अच्छी आमदनी हो रही है। जीवन में खुशहाली आ गई।

दरअसल, प्रखंड क्षेत्र के चोरगांव पंचायत में मधु उत्पादन के स्वरोजगार से जुड़कर महिलाएं आत्मनिर्भर की राह पर चल पड़ी हैं । कोरोना की वजह से लाकडाउन लगा तो दूसरे प्रदेशों में काम करने वाले भी अपने घर लौट गए। लौटने वालों में महिलाओं की संख्या भी काफी थी । ऐसी स्थिति में महिला जीविका दीदी के साथ शहद उत्पादन से जुड़कर स्वरोजगार की तरफ आगे बढ़ने लगीं। चोरगांव पंचायत की जीविका अध्यक्ष दीपा यादव ने बताया कि महिलाएं जीविका दीदी ने मिलकर एक शहद उत्पादक समूह का गठन किया।

समूह में 36 जीविका दीदी जुड़ी है। समूह का नाम उन्नति जीविका महिला मधु उत्पादक समूह है। सभी जीविका दीदी को 10-10 मधुमक्खी बाक्स दिया गया है। मधु उत्पादन से सभी महिलाओं को अच्छी आमदनी हो रही है। एक बाक्स मधु तैयार होने में सात से आठ दिन का समय लगता है। बेहतर तरीके से देखभाल किया जाए तो एक बक्से से कम से कम पांच किलो मधु निकलता है। बाजार में कीमत ठीक-ठाक मिल जाती है। इस मुनाफे से परिवार का जीविकोपार्जन चल रह है। मधु उत्पादन समूह के सचिव खुशबू देवी और कोषाध्यक्ष बिंदू देवी ने बताया कि मधु उत्पादन महिलाओं के जीवन में खुशियों की मिठास ला रही हैं।

जन समस्या के बारे में भी 

  • बड़े नालों को नहीं किया गया कनेक्ट, जाम रहते हैं नाले

जागरण संवाददाता, मुंगेर : शहर को नगर निगम का दर्जा तो मिल गया, लेकिन, अब तक शहर के विकास का मास्टर प्लान तैयार नहीं किया गया। इस वजह से शहर का विकास रास्ते में ही अवरुद्ध हो गया। अंग्रेजों की बनाई गई बड़ी-बड़ी नालियां सिकुड़ कर छोटी हो गई है। चौराहे के इस शहर में सड़के भी सिमट गई है। 1934 में आए भूकंप के बाद इस शहर को मास्टर प्लान के तर्ज पर नए सीरे से बसाया गया था। सूबे का पुराना प्रमंडल होने के बाद भी शहरी इलाके का विकास नहीं हो सका। दरअसल, शहर की जलनिकासी की व्यवस्था सही नहीं है।

शहर में बारिश होने के बाद जल निकासी में कई घंटे लग जाते हैं, जिससे शहर के कई सड़कों पर घंटों तक जलजमाव हो जाता है। अंग्रेजों के बनाए पांच आउटफाल नाला से ही शहर की जलनिकासी की व्यवस्था है। आजादी के बाद मुंगेर शहर की आबादी कई गुना बढ़ गई है। अभी तक उसी आउटफाल नाले पर शहर के जल निकासी की व्यवस्था निर्भर करती है । नाले का कनेक्शन बड़े नाले से नहीं होने के कारण गंदे पानी का जमाव बना रहता है। शहर से निकल रहे गंदे पानी गंगा में गिरने से गंगा जल प्रदूषित हो रही है।

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