Jitiya Vrat 2024: जितिया व्रती महिलाएं कब करेंगी पारण? मिथिला और काशी पंचाग से जानिए सही समय
Jitiya Vrat 2024 Paran Timing जितिया व्रत 2024 के लिए नहाय-खाय संपन्न हो चुका है। ऐसे में अब आज से निर्जला उपवास शुरू हो रहा है। व्रती महिलाएं निर्जल रहकर विधि-विधान से पूजा करेंगी। ऐसे में व्रतियों के लिए पारण का समय जानना भी जरूरी है। आइए आपको बताते हैं कि मिथिला पंचांग और काशी पंचांग के अनुसार पारण के लिए सही समय क्या है?
मिथिलेश कुमार, बिहपुर। जीवित्पुत्रिका यानि जिउतिया व्रत का नहाय-खाय (nahay khay jitiya 2024) सोमवार को संपन्न हो गया। वहीं, इस बार आज (मंगलवार) को ओठगन पूजा के साथ व्रत का प्रारंभ होगा। बिहपुर के पंडित मृत्युंजय मिश्र व अखिल भारतीय पुरोहित महासंघ बिहार राज्य ईकाई के भागलपुर जिला प्रचार मंत्री सावन झा बताते हैं कि मिथिला पंचाग के अनुसार व्रती माताएं मंगलवार को सुबह पांच बजे तक ही ओठगन पूजन कर विशिष्ठ भोजन कर सकती हैं।
इसके बाद से लेकर मंगलवार को प्रदोष व्यापिनी अष्टमी तिथि रहने के कारण व्रती निराहार व निर्जला उपवास करेगी। जबकि व्रत का पारण (Paran Samay Jitiya Vrat 2024) यानि समापन बुधवार की शाम 5 बजकर छह मिनट के पश्चात होगा।
कठिन होता है व्रत
कुपुत्रो जायेत क्वाचिदपि कुमाता न भवित अर्थात् पुत्र कुपुत्र हो सकता है पर माता कुमाता कभी नहीं। इसी संदेश को चरितार्थ करता है माताओं के द्वारा आश्विन मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को किया जाने वाला कठिन तप व्रत जीवित्पुत्रिका यानि जितिया व्रत।पंडित मृत्युंजय मिश्र बताते हैं कि माताओं द्वारा अपनी संतान के लिए किया जाने वाला यह तप व्रत व्रती माताओं के लिए काफी कष्टकारी होता है। इसमें अन्न तो दूर व्रती माता पानी की एक बूंद भी व्रत के पारण के पूर्व ग्रहण नहीं करती हैं।
पुरातन काल से चली आ रही व्रत की परंपरा
पंडित सावन झा ने कहा कि यह व्रत सनातन धर्म के अनुसार माताएं पुरातन काल से करती चली आ रही हैं। वहीं, बताया गया कि जो माता जीउतिया व्रत प्रारंभ करना चाहती है। वे इस वर्ष से प्रारंभ कर सकती हैं। क्योंकि इस वर्ष खरजिउतिया लग रहा है।यह कठिन तप व्रत एक मां के सिवा कोई दूसरा कर भी नहीं सकता है। व्रती मां अपने संतान के सौभाग्य व दीर्घायु जीवन के लिए सनातन धर्म के विधि-विधान अनुसार सतयुग से करती आ रही हैं। इस व्रत में व्रती माताएं डाला भरती हैं। इसमें कुशी मटर, मिठाई, बांस, बेल, जील व झिंगली के पत्ते देकर उसे मान के एक पत्ते से ढक देती हैं।ऐसी मान्यता है कि डाला में भरे बांस को वंश, जील को जीव, बेल को सिर के रूप में पूजा जाता है। इस व्रत में राजा शालिवाहन के पुत्र जीमुतवाहन की पूजा होती है। नवगछिया अनुमंडल समेत पूरे अंगप्रदेश में इस व्रत के प्रति लोगों की गहरी आस्था व श्रद्धा व माताओं का अटूट विश्वास है।
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