Move to Jagran APP

जूट पार्क पूर्णिया/कटिहार : क्षमता का आधा भी नहीं हो रहा उत्पादन, 10 साल बाद भी लक्ष्‍य पूरा नहीं

जूट पार्क पूर्णिया/कटिहार 10 साल बाद भी लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाया जूट पार्क। कामगार और कच्चे माल की कमी के कारण समस्या। यहां 10 टन माल का उत्पादन प्रतिदिन हो सकता है। चार-पांच टन ही माल प्रतिदिन उत्पादित हो रहा है।

By Dilip Kumar ShuklaEdited By: Updated: Fri, 10 Jun 2022 10:58 AM (IST)
Hero Image
जूट पार्क पूर्णिया : 42 एकड़ भूभाग का हुआ है इस्‍तेमाल।

मनोज कुमार, पूर्णिया। बियाडा क्षेत्र के करीब 42 एकड़ भूभाग पर 2012 में पुनरासर जूट पार्क की स्थापना की गई। तब कहा गया था कि यहां 58 हजार मीट्रिक टन प्रति वर्ष उत्पादन होगा तथा लगभग 10 हजार लोगों को प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से रोजगार मिलेगा। 10 साल बाद भी यह पार्क अपने लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाया है। लक्ष्य से आधा से भी कम उत्पादन किया जा रहा है।

पार्क के मैनेजर राजेश पांडेय कहते हैं कि लेबर और कच्चे माल की कमी की वजह से यह यूनिट अपने लक्ष्य को हासिल नहीं कर पा रही है। मैनेजर राजेश पांडे के अनुसार यूनिट में प्रशिक्षण के अलावा जूट सामग्री का उत्पादन किया जा रहा है। फिलहाल 13 मशीनें यूनिट में काम कर रही हैं। इनसे कम से कम 10 टन माल का उत्पादन प्रतिदिन हो सकता है। बावजूद, यहां मात्र चार-पांच टन ही माल प्रतिदिन उत्पादित हो रहा है। मिल में वर्तमान में 200 लेबर काम कर रहे हैं।

मैनेजर राजेश पांडेय बताते हैं कि यूनिट के संचालन में सबसे बड़ी बाधा लेबर की कमी और कच्चे माल का टोटा है। सीमांचल में जूट का रकबा घटने की वजह से यहां पर्याप्त कच्चा माल नहीं मिल पाता है। बाहर से खरीदने में कास्ट अधिक आता है। वहीं स्किल्ड लेबर की भी यहां कमी है। मशीन के कल-पुर्जे भी यहां नहीं मिलते। इसके लिए कोलकाता का रुख करना पड़ता है। इसमें काफी वक्त और धन लगता है।

कटिहार से छिन रही जूट नगरी की पहचान, दोनों जूट मिलें बंद

नीरज कुमार, कटिहार। एक दशक पूर्व तक एनजेएमसी की इकाई आरबीएचएम जूट मिल तथा निजी क्षेत्र की सन बायो जूट मिल के कारण कटिहार की पहचान जूट नगरी के रूप में थी। दोनों जूट मिलों में 1200 से अधिक कामगार थे। 2016 से आरबीएचएम जूट मिल बंद पड़ी है। पांच वर्षों से अधिक समय से निजी क्षेत्र की सन बायो जूट मिल में भी ताला लटका हुआ है। जूट मिल बंद होने से देश के औद्योगिक मानचित्र से कटिहार की पहचान मिट रही है। नीति आयोग ने भी आरबीएचएम जूट मिल को रुग्ण औद्योगिक इकाई की श्रेणी में शामिल कर लिया है। इस कारण मिल के फिर से शुरू होने की संभावना कम ही दिखती है।

कभी लोगों की नींद जूट मिल से श्रमिकों का वर्क आवर शुरू होने के लिए बजाई जाने वाली बंशी से खुलती थी। पिछले पांच दशकों में आरबीएचएम जूट मिल कई बार बंद हुआ। 2016 तक फ्रेंचाइजी के आधार पर जूट मिल चलाया गया। फ्रेंचाइजी एजेंसी मजूदरों का बकाया मजदूरी लेकर अचानक गायब हो गई। मामला न्यायालय में चल रहा है। शहर में दो-दो जूट मिल होने से डेढ़ दशक पूर्व तक यहां 30 हजार हेक्टेयर में पाट की खेती होती थी। आरबीएचम जूट मिल की उत्पादन क्षमता 25 टन थी। मशीन पुरानी होने के कारण जूट की बोरी सहित अन्य उत्पादों का उत्पादन 15 से 16 टन तक होता था। निजी क्षेत्र की सन बायो जूट मिल में भी उत्पादन 14 से 15 टन तक होता था। किसान जूट मिल में ही बेचते थे। जूट मिल बंद होने से पाट की खेती का रकबा घटकर 16 हजार हेक्टेयर से भी कम का रह गया। कामगार भी बेरोजगार हुए हैं।

आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।