भागलपुर में कमल पार्टी वाले एक नेताजी को नहीं सूझ रहा है क्या करें, ना घर के रहे ना घाट के
बिहार में नगर निगम चुनाव की प्रक्रिया चल रही है। पार्टी आधारित चुनाव नहीं है। भागलपुर के कमल पार्टी वाले एक बड़े नेताजी काफी परेशान हैं। चिंतित हैं। वह फंस गए। समर्थन जिस प्रत्यशी को दिया उनके साथ पार्टी के दूसरे कार्यकर्ता लगे ही नहीं।
भागलपुर। एक नेता जी इन दिनों हक्के-बक्के हैं। कल तक जो उनका साथ देने का दावा करते नहीं थकते थे। आज उनसे कन्नी काटे हुए हैं। दरअसल, नेताजी ने नगर निकाय चुनाव में एक प्रत्याशी को चुनाव लड़ाने का ठेका लिया और जी जान से चुनाव प्रचार में जुट गए है। नेताजी के साथ जुड़ने से प्रत्याशी को भी भ्रम था कि पूरी पार्टी उनके साथ है। अचानक नेताजी को जब पता चला कि उनकी टीम किसी अन्य प्रत्याशी के साथ हो ली है। तो नेताजी जी के पैरों तले जमीन खिसक गई। नेताजी परेशान है, अलग-थलग पड़ गए हैं। इधर, नेताजी से अलग हुई टीम ने घूम-घूम कर कहना शुरू कर दिया है कि पुराना बदला निकालने के लिए ही नेताजी ने नये प्रत्याशी को चुनाव लड़ाने का ठेका लिया है। बेचारे नेताजी को सूझ नहीं रहा है क्या करें। बस किसी तरह इज्जत बचाने में जुटे हैं।
धरे रह गए घर में पोस्टर
कमल वाली पार्टी के एक नेताजी बेचारे मायूस है। अब दूसरे प्रत्याशी के प्रचार में जुटे हैं। दरअसल, नेताजी कुछ दिन पहले खुद ही उम्मीदवार थे। पूरी तैयारी कर ली थी। करीब एक साल से जन्मदिन लेकर हर छोटे-बड़े आयोजन में जाने लगे थे ताकि लोगों के बीच उनकी पैठ बन जाए। चुनाव आयोग ने एक झटके में उनके मंसूबे पर पानी फेर दिया। सीट पुरुष की जगह महिला हो गई। बेचारे करते भी क्या पुरुष जो ठहरे। उनके नजदीक रहने वाले बताते हैं कि नेताजी ने घर में बैनर और पोस्टर तक बनवा लिया था। क्योंकि चुनाव की घोषणा के बाद छपाई महंगी हो जाएगी। सो पहले से तैयारी कर ली थी। अब सब कुछ घर में धरा रह गया। शहर में अपनी दुकान चलाए रखने के लिए अब दूसरे प्रत्याशी के साथ घूम रहे हैं उन्हें चुनाव लड़ाने के लिए रात दिन एक किये हुए है।
नेता भी नहीं चुन पाएंगे
एक बहुत पुरानी राष्ट्रीय पार्टी के ऐेसे जिलाध्यक्ष है जो अपने राष्ट्रीय नेता को चुनने के लिए वोट तक नहीं दे पाएंगे। हाल में नेता जी की पार्टी की तरफ से शहर के कुछ लोगों के नाम की सूची जारी हुई थी। सूची में जिसका नाम होगा, वहीं अपने राष्ट्रीय स्तर के नेता को चुनने में एक अपना मत देंगे। उस सूची में जिलाध्यक्ष महोदय का ही नाम गायब है। ऐसा क्यों हुआ? तो पता चला कि पार्टी की तरफ से एक नेता शहर आए थे। जब आये थे तब अध्यक्ष जी ने उनको जमकर खरी खोटी सुनाई थी। नेताजी को लगा, पार्टी के नेता है यहां क्या कर लेंगे। पर उन्हें क्या पता नेताजी ने अध्यक्ष जी का काम लगा दिया। इन्हें ऐसा कर दिया कि वह अपने मन से अध्यक्ष को एक वोट भी नहीं दे सकते हैं। भले ही जिला स्तर पर नेताजी को कोई न बोले लेकिन उनके विरोधी प्रचार तो कर ही रहे हैं।
अतिथि सत्कार से परेशानी
एनएच विभाग के एक साहब आज कल अतिथि सत्कार से परेशान है। जब कोई साहब को फोन करता है तो उधर से जवाब आता है घर पर अतिथि आएं है। बाद में बात करेंगे। यह एक दिन का नहीं है। अक्सर साहब का जवाब इसी तरह का रहता है। मजे की बात तो यह बाहर के लोगों को फोन पर अतिथि का हवाला देते-देते अब साहब विभाग के कर्मचारियों से भी यहीं जुमला कहने लगे हैंं। उनके मुलाजिमों ने साहब का अतिथि देवों भव: नामकरण तक कर दिया है। अब साहब की पहचान इनके इस नाम से होने लगी है। उधर, एनएच की हालत देखकर यह स्पष्ट है कि साहब अपने विभाग पर कितना ध्यान दे रहे हैं। टूटी सड़कों के कारण हर रोज जाम लगा रहा है। इधर, साहब को फुर्सत कहां कि वो कभी अपने विभाग की सड़कों का हाल देख ले। आम जनता किस परेशानी को झेल रही है।