Khagaria District Establishment Day 2022: जिसे राजा टोडरमल ने 'फरक' किया, आज वह इतिहास रच रहा, 10 मई 1981 बना था खास दिन
Khagaria District Establishment Day 2022 10 मई 1981 को अस्तित्व में आया था खगडिय़ा जिला। 50 हजार हेक्टेयर में होती है मक्का की खेती 20 हजार मीट्रिक टन सालाना होता है मछली का उत्पादन। राजा टोडरमल की खगडि़या जिला के उत्थान में अहम योगदान रहा।
By Dilip Kumar ShuklaEdited By: Updated: Tue, 10 May 2022 04:27 PM (IST)
निर्भय, खगडिय़ा। फरकिया अर्थात खगडिय़ा 10 मई 1981 को मुंगेर से अलग होकर जिला बना था। तबसे आज तक जिले ने बड़ी छलांग लगाई है। शहरी क्षेत्र का विस्तार हुआ है। खगडिय़ा नगर परिषद से पांच नई पंचायतें जुड़ी हैं। अब खगडिय़ा नगर परिषद 26 के बदले 39 वार्डों का है। जबकि गोगरी नगर पंचायत को नगर परिषद का दर्जा मिल चुका है। 20 वार्डों का गोगरी नगर पंचायत अब 36 वार्डों का नगर परिषद है।
दूसरी ओर मानसी, अलौली, बेलदौर और परबत्ता चार नई नगर पंचायतें बनी हैं।
चार नदियों का यहां होता है संगम
1486 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के खगडिय़ा जिले को नदियों का नैहर कहा जाता है। यहां से होकर सात नदियां गुजरती हैं। 56 धारा-उपधारा है। यहां बूढ़ी गंडक गोगरी के पास गंगा से संगम करती है। कमला नदी भी सोनमनकी से आगे बागमती में मिलती है। जबकि सोनवर्षा(चौथम प्रखंड) के पास बागमती का संगम कोसी से होता है। बेलदौर के कंजरी-गवास गांव के पास काली कोसी नदी कोसी में मिलती है। इस मायने में अदभूत है यह जिला।
यहां की प्रमुख नदियां, धारा-उपधारा कोसी, कमला, करेह, काली कोसी, बागमती, बूढ़ी गंडक, गंगा प्रमुख नदियां हैं। इसके साथ ही मालती नदी, खर्रा धार, भगीरथी, कठनई, हाहाधार, मंदरा धार आदि जिले को सिंचित करती है। कलकल-छलछल बहती नदियां-धारा-उपधारा खगडिय़ा की विशिष्ट पहचान है। कहते हैं कि अकबर महान के मंत्री राजा टोडरमल जब खगडिय़ा पहुंचे, तो यहां नदियों, धारा-उपधारा के जाल-संजाल के कारण इसकी मापी नहीं कर सके और इसे राजस्व की ²ष्टि से अनुपयोगी मानते हुए 'फरक' (अलग) कर दिया। जिसके कारण यह फरकिया कहलाने लगा। हालांकि नदियां बाढ़ भी लाती है, जिससे तबाही मचती है।
मक्का और मछली है पहचान खगडिय़ा जिले की आर्थिकी में मक्का और मछली की विशेष महत्व है। यहां 50 हजार हेक्टेयर में मक्का की खेती होती है। इसलिए यहां के लोग इसे 'पीला सोना' कहते हैं। खगडिय़ा मछली उत्पादन में भी विशिष्ट स्थान रखता है। देसी मछलियों की कई प्रजाति आज भी यहां भरमार में है। जिसमें सिंगी, मांगुर, पोठी, गैंचा, रीठा, बचवा, सुइया, कौआ, बुआरी आदि प्रमुख हैं। 20 हजार मीट्रिक टन सालाना यहां मछली का उत्पादन होता है।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।