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मकर संक्रांति 2022: विशेष संयोग में मनाया जाएगा त्योहार, बिहार में तिलकुट की बहार, जानिए क्या है इसका महत्व

मकर संक्रांति 2022 बिहार में मकर संक्रांति का विशेष महत्व है। यहां दही चूड़ा का भोज आयोजित किया जाता है। वहीं तिलकुट की महक से बाजार गुलजार हो उठते हैं। तिलकुट दान करने और इसका स्वाद चखने की परंपरा बिहार में सदियों से चली आ रही है।

By Shivam BajpaiEdited By: Updated: Wed, 05 Jan 2022 02:49 PM (IST)
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मकर संक्रांति 2022: जानें पौराणिक कथा, तिल का महत्व क्या है...
संवाद सूत्र, बांका: मकर संक्रांति 2022, ये त्योहार प्रति वर्ष 14 जनवरी को मनाया जाता है। इस त्योहार में दही चूड़ा के साथ तिल और तिल से बने सामग्री का विशेष महत्व होता है। त्योहार को देखते हुए बाजार में तिलकुट की दुकानें सजने लगी है। स्थानीय दुकानदारों के अलावा बाजार में चौक-चौराहों पर जगह-जगह अस्थायी तिलकुट की दुकानें सजी है।

यह पर्व सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने पर मनाया जाता है। अक्सर 14 जनवरी को सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। कभी-कभी यह पर्व 15 जनवरी को भी मनाया जाता है। इस दिन से सूर्य का उत्तरायण होना प्रारंभ हो जाता है। इस पर्व में कहीं दही चूड़ा और कहीं खिचड़ी खाने का प्रचलन है।

बाजार में सजने लगी तिलकुट की दुकान

त्योहार को लेकर बाजारों में तिलकुट की दुकानें सजनें लगी है। बाजार में चीनी से बने तिलकुट की कीमत 260 रुपपया प्रति किलो और गुड़ वाले तिलकुट 280 रुपया प्रति किलो बिक रहा है। जिला परिषद मार्केट के समीप दुकान लगाए दिलीप साह ने बताया कि खोआ तिलकुट अधिक दिनों तक स्टाक नहीं किया जा सकता है। इसलिए खोआ तिलकुट सात जनवरी के बाद से बनाया जाएगा।

मकर संक्रांति के विविध रूप 

  • असम में बीहू
  • दक्षिण भारत में पोंगल
  • गुजरात, महाराष्ट्र में उत्तरायणी का त्योहार
  • पंजाब में एक दिन पहले लोहड़ी
  • बिहार में दही चूड़ा भोज और तिलकुट की धूम
इस बार विशेष संयोग 

  • ज्योतिष शास्त्र की मानें तो मकर संक्रांति 2022 रोहणी नक्षत्र में है। ये शाम 08 बजकर 18 मिनट तक रहेगी।
  • रोहणी नक्षत्र को बेहद शुभ माना जाता है। 
  • इस नक्षत्र में स्नान दान और पूजन करना विशेष फलदायी होता है।
  • अबकी ब्रह्म योग और आनंदादि योग का भी निर्माण हो रहा है।
  • ये संयोग भी अनंत फलदायी है। 
तिल के तिलकुट का महत्व 

मकर संक्रांति पर तिल खाने को लेकर भी एक पौराणिक मान्यता है। कहा जाता है कि शनिदेव का अपने पिता सूर्यदेव से बैर था।  माता और पहली पत्नी संज्ञा के बीच भेदभाव करते देख शनिदेव बेहद नाराज हो गए और उन्होंने अपने पिता को ही कुष्ठरोग का श्राप दे डाला। 

वहीं, सूर्यदेव जब रोगमुक्त हो गए तब उन्होंने शनि के घर यानी कुंभराशि को जला दिया। लेकिन जब पुत्र दुखी हुआ तो सूर्य भगवान ये देख ना सके और उन्होंने अफसोस किया। शनि ने देखा कि कुंभ राशि में तिल के अलावा सबकुछ जलकर राख हो गया है। इसलिए पिता को शनि ने तिल से ही भोग लगा दिया। जैसे ही उन्होंने पिता को भोग लगाया उनका वैभव वापस मिल गया।

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