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मंजूषा महोत्सव 2021: एक ही जगह पर बिहार की 15 कलाएं, लोकगीत व छठ गीतों से सराबोर सैंडिस कंपाउंड में लोग

मंजूषा महोत्सव 2021 का आयोजन भागलपुर के सैंडिस कंपाउंड में 30 अक्टूबर तक किया गया है। बिहार की 15 कलाएं एक ही जगह पर देखने को मिल रही हैं। दीदार और खरीददारों की अच्छी खासी भीड़ उमड़ रही है। शाम होते ही सैंडिस कंपाउंड गुलजार हो रहा है....

By Shivam BajpaiEdited By: Updated: Mon, 25 Oct 2021 06:21 AM (IST)
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मंजूषा महोत्सव: सैंडिस कंपाउंड में उमड़ी भीड़
जागरण संवाददाता, भागलपुर। सैंडिस कंपाउंड में उपेन्द्र महारथी शिल्प अनुसंधान संस्थान द्वारा सात दिवसीय मंजूषा महोत्सव के दूसरे दिन स्टाल पर खासी भीड़ रही। रविवार को महोत्सव स्थल पर काफी संख्या में लोग पहुंचे। मंजूष महोत्सव में बिहार की 15 कलाओं के 50 स्टाल लगाए गए, जिनमें से सात स्टाल मंजूषा कला के है। मंजूषा साड़ी, दुपट्टा व घरों के सजावट वाले सामानों को लोगों ने खूब पसंद किया।

कलाकारों के स्टालों पर ज्वेलरी, कपड़े, चप्पल-जूते, लकड़ी व पत्थर से बनी सजावट की वस्तुओं की खरीदारी करने में व्यस्त दिखे। बांस से बनी चीजों की खरीदारी में लोगों में खासी रुचि है। एप्लिक कशीदा की दुकान लगाई है। इसमें स्कर्ट, टाप, कुर्ती, प्लाजो, गाउन आदि की कई रेंज उपलब्ध हैं। काष्ट कला के स्टाल पर चाबी रिंग पर कारीगरी चर्म शिल्प के स्टाल पर बैग, पर्स, बेल्ट आदि की कई वैरायटी हैं।

(कपड़ों के बेहतरीन स्टाल, जहां उमड़ रही भीड़) 

मंजूषा कला से जुड़ रहे युवा

मंजूषा कला से शहर के युवा तेजी से जुड़ रहे हैं। फाइन आर्ट के साथ इसे जोड़ कला को विस्तार दे रहे हैं। इसका असर भी दिखने लगा है। मंजूषा महोत्सव में आयोजित लाइव प्रदर्शन में युवाओं ने इसकी झलक भी दिखाई। लोगों ने इसकी खूब प्रशंसा की। मंजूषा को लोगों का भरपूर समर्थन मिल रहा है। यहां प्रतिदिन 100 कलाकारों द्वारा मंजूषा पेंटिंग की जा रही है। जिसे शहरवासी दीदार करने के साथ सीख भी रहे हैं।

(गया से आई मिट्टी की प्रतिमाएं-खरीददारी करते लोग)

लाइव प्रदर्शन में कलाकार रेशमी साड़ी, कुर्ता, बंडी, फ्लावर पोट, पैन स्टैंड, दोपट्टा, केनवास, फाइल फोल्डर आदि तैयार कर रहे हैं। मंजूषा कला को बाजार की मांग के आधार पर तैयार किया जा रहा है। इसमें रामकथा, राधा-कृष्ण की लीला, दिवाली व छठ पर्व के आधार पर मंजूषा पेंटिंग की की जा रही है। महोत्सव में कलाकारों को प्रोत्साहित करने के लिए सात दिनों का पारिश्रमिक के साथ समापन समारोह में प्रमाण पत्र भी दिया जाएगा।

(हैंड बैग पर उकेरी गई है बिहार की लोककला) 

दिवाली में मंजूषा पेंटिंग वाले दीप

मंजूषा महोत्सव में लगे स्टाल पर त्योहार को लेकर हैंडीक्राफ्ट तैयार किया गया है। इस बार दिवाली मेंं मंजूषा पेंटिंग वाले दीपक तैयार किया गया है। मिट्टी से तैयार प्रति दीपक की कीमत पांच रुपये रखी गई है। इस दीपक को कलाकारों ने तैयार किया है। जिसे लोग काफी पसंद कर रहे हैं।

(उद्घाटन के बाद उद्योग मंत्री को भेंट की गई मंजूषा पेंटिंग)

इन कलाओं का लगा है स्टाल

गया से जूट क्राफ्ट, भागलपुर, गया व नालंदा से हैंडलूम उत्पाद, पटना से लाह चूड़ी, समस्तीपुर, पटना व मुजफ्फरपुर के आर्टिफिशियल ज्वेलरी, वेणु शिल्प, एप्लिक कशिदा, मधुबनी पेंटिंग, सुजनी शिल्प, सिक्की शिल्प, पत्थर, काष्ठ व चर्म के उत्पादन, मंजूषा कला व पांच अन्य शिल्प के स्टाल हैं।

(अरवल के पुनीत केसरी का स्टाल, जहां घर क्रिएटिविटी की भरमार)

महोत्सव में शामिल होने की लगी होड़

महोत्सव में लाइव प्रदर्शन के लिए 100 कलाकारों का चयन किया गया। लेकिन इसके लिए दो सौ से अधिक कलाकारों ने आवेदन किया। इससे महोत्सव प्रबंधन को कलाकारों के आवेदन को स्क्रूटनी करना पड़ा।

(पटना की सुनीता केसरी को मिला जिला अवार्ड, हस्तनिर्मित श्रृंगार के सामान का लगाया है स्टाल) 

लोकगीत व छठ गीतों से सराबोर हुआ प्रशाल

महोत्सव में देर शाम संगीत की महफिल सजी। इस मौके पर लोक गायक डॉ. शिवजी सिंह, सारेगामापा के उपविजेता हर्षप्रीत सिंह द्वारा प्रस्तुत किये गये भोजपुरी, हिन्दी व मैथिली गानों ने लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। संगीत का यह सिलसिला देर रात तक चलता रहा। गायक राधे श्याम शर्मा आदि कलाकारों ने छठ गीत में उगी हो दीनानाथ, पंजाबी फोक, दमादम मस्त कलंदर और स्वर्ग से सुंदर अंगिका धाम गीतों से प्रशाल सराबोर रहा। सांस्कृतिक कार्यक्रम के माध्यम से अंगिका क्षेत्र में लोगों को बिहार की विविध लोक कलाओं की जानकारी दी जाएगी। मंच संचालन मनोज पंडित ने किया।

(नालन्दा के सुरेंद्र प्रसाद के स्टाल पर मिलेंगे बेहतरीन क्वालिटी के गमछे और चादर) 

मंजूषा की जननी है चक्रवर्ती देवी

मंजूषा' की जननी चक्रवर्ती देवी ने अंग क्षेत्र की एक अनाम लोक चित्रकला को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई। नाथनगर की स्व. चक्रवर्ती देवी किसी पुरस्कार या प्रोत्साहन की अपेक्षा किए बिना वह पूरी जिंदगी मंजूषा के लिए समर्पित रहीं। उन्होंने बिहुला विषहरी लोककथा को मंजूषा पर उतारा। चक्रवर्ती देवी जब एक बार रूई से बनी कूची पकड़ लेती थीं तो उनका हाथ आकार बनाकर ही रुकता था। मंजूषा में वह फूलों और पत्तियों के रंगों का इस्तेमाल करती थीं। इस कला के लिए उन्होंने कोई प्रशिक्षण नहीं लिया था।

(पटना के रंजीत की दुकान पर वास्तु के मुताबिक मिलेगा सामान)

नाथनगर की चक्रवर्ती देवी हैं मंजूषा कला की जननी

चक्रवर्ती देवी का जन्म पश्चिम बंगाल के अंडाल स्थित अहमदाबाद में हुआ था। उनकी शादी नाथनगर चौक के समीप रामलाल मालाकार से हुई थी। असमय पति के गुजरने से कई तरह की मुसीबतें आईं, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। एक बार मंजूषा कला की कूची उठाई तो आखिरी सांस तक थामी रहीं। 2008 में चक्रवर्ती देवी ने वैशाली में आयोजित अंतरराष्ट्रीय बौद्ध महोत्सव में चक्रवर्ती देवी ने मंजूषा कला का प्रदर्शन किया। यहां उनकी तबीयत अचानक खराब हो गई। उन्हें वापस लौटना पड़ा। इसके बाद लगातार बीमार रहने लगीं।

(महोत्सव में पहुंच रहे कलाकार, उकेर रहे लोक कला) 

बिहार कला सम्मान से सम्मानित चक्रवर्ती देवी ने 12 दिसंबर 2009 को जब उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके अंतिम संस्कार के दौरान न तो सरकारी और न गैर सरकारी संगठन के लोग घाट पर दिखे। बाद में सरकार को लगा कला की ऐसी विभूति को सम्मान देना चाहिए। 2013-14 में कला संस्कृति एवं युवा विभाग के माध्यम से ललित कला अकादमी ने उन्हें मरणोपरांत बिहार कला सम्मान दिया। इस अवार्ड को भतीजा राजेंद्र मालाकार ने ग्रहण किया।

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