तो इस वजह से ज्यादातर लोग करते हैं आत्महत्या...जेब में नहीं फूटी कौड़ी, ऊपर से अपनों के ताने; जिंदगी की जंग हार रहे युवा
जिदंगी से हर किसी को लगाव है लेकिन इंसान जब हर कहीं से त्रस्त हो जाता है और उसके पास और कोई विकल्प नहीं बचता तो वह जिदंगी की जंग हारकर मौत को गले लगा लेता है। अधिकतर बेरोजगार लोग सुसाइड करते हैं क्योंकि जिंदगी में मिली असफलता आर्थिक तंगी से ये पहले ही परेशान होते हैं ऊपर से परिवारवालों के ताने इनके लिए झेलना नामुमकिन हो जाता है।
संजय सिंह, भागलपुर। बेरोजगारी से मानसिक तनाव, विफल प्रेम, घरेलू कलह आदि के कारण आज का युवा खुद के जीवन को मौत के हवाले कर देता है। ऐसे कदम को किसी भी कीमत पर सही नहीं ठहराया जा सकता है। आंकड़ों के अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि ज्यादातर युवा बेरोजगारी के कारण ही आत्महत्या करते हैं। अध्ययन के दौरान यह बात भी सामने आई कि जो इलाका जितना उपेक्षित है, वहां उतनी ही आत्महत्याएं होती हैं।
बेरोजगारी के कारण घरेलू कलह नहीं झेल पा रहे युवा
घटना के पीछे बेरोजगारी से उत्पन्न मानसिक तनाव और घरेलू कलह आत्महत्या का प्रमुख कारण है। कुछ मामलों में प्रेम में विफल युवाओं ने भी आत्महत्या जैसा घातक कदम उठाया है।एक आंकड़े के अनुसार, पूर्व बिहार, कोसी और सीमांचल में 2022 में लगभग 200 किशोरों और किशोरियों ने आत्महत्या की।
2023 के नवंबर माह तक 175 युवा और युवतियों ने आत्महत्या की है। 60 प्रतिशत ऐसे मामले सामने आए, जिनमें बेरोजगारी के कारण घरेलू कलह हुई और युवाओं ने आत्महत्या कर ली।
25 प्रतिशत मामलों में वैसे युवाओं ने आत्महत्या की, जिनके प्रेम-संबंध आगे नहीं बढ़ पाए। 15 प्रतिशत मामलों में कारोबार में विफल रहने वालों ने आत्महत्या की।
पिछड़े इलाके के लोगों में अधिक मानसिक तनाव
बांका का कटोरिया प्रखंड विकास और रोजगार के मामले में उपेक्षित है। 2023 में अकेले कटोरिया प्रखंड में 10 से अधिक लोगों ने आत्महत्या की। शिरुरायडीह गांव में एक युवक ने इस कारण आत्महत्या कर ली, चूंकि वह बेरोजगार था। उस पर चारित्रिक दोष के आरोप लगे थे।
बंधुपूर्वा गांव में भी एक युवती ने बेरोजगारी के तनाव में आत्महत्या कर ली। कलुआ गांव के एक युवक ने बेरोजगारी के कारण ही नशीला पदार्थ खाकर आत्महत्या कर ली। यही हाल जमुई के चकाई प्रखंड का है। यहां भी इस वर्ष 10 से ज्यादा लोगों ने आत्महत्या की। कुछ मामलों को सामाजिक स्तर पर दबा दिया गया। कुछ ऐसे भी मामले सामने आए, जिनमें मृतक की पहचान नहीं हो पाई।सामाजिक कार्यकर्ता और बचपन बचाओ आंदोलन के सदस्य घूरन महतो का कहना है कि पिछड़े इलाके के लोगों में मानसिक तनाव अधिक होता है। ऐसे इलाके में डिप्रेशन को कम करने का कोई उपाय नहीं रहता है। सुदूर ग्रामीण क्षेत्र के अस्पताल में ऐसे कोई मनोचिकित्सक भी नहीं हैं, जो निराश और हताश युवक की काउंसेलिंग कर उन्हें हिम्मत दे सकें।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।आजकल युवा डिप्रेशन का बहुत ही जल्द शिकार हो जाते हैं। सामाजिक सरोकार भी अब घट गया है। मोबाइल की लत ने युवाओं को दिग्भ्रमित कर दिया है। परिणामस्वरूप बिना कुछ सोचे-समझे युवा आत्महत्या कर लेते हैं-डा. सत्यप्रकाश, पुलिस अधीक्षक, बांका।