मुंगेर बंदूक कारखाना : मीर कासिम ने कट्टे से की थी शुरुआत, अब फाइव शाट पंप एक्शन गन हो रहा तैयार
मुंगेर बंदूक कारखाना अस्तित्व में आने के बाद बंदूक कारखाना की स्थिति धीरे-धीरे हो रही दयनीय। कभी 36 लोगों को हथियार बनाने का था लाइसेंस 22 तक पहुंची संख्या। वर्तमान में पांच लोग ही आर्म्स बनाने का कर रहे काम इच्छापुर में होता है टेस्ट।
By Dilip Kumar ShuklaEdited By: Updated: Thu, 26 May 2022 03:36 PM (IST)
रजनीश, मुंगेर। मुंगेर का रिश्ता हथियारों से पुराना रहा है। बात हम अवैध हथियार की करें या सरकारी कारखाने में बनने वाले वैध की, यहां दोनों तरह का हथियार बनाए जाते हैं। मीर कासिम ने अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए पहला कट्टा बनाया था। समय के साथ बहुत कुछ बदलता गया। अभी मुंगेर बंदूक कारखाना में लेटेस्ट फाइव शाट पंप एक्शन गन तैयार हो रहा है। यह बात सही है कि सरकारी कारखाने में लाइसेंसी प्रणाली की जटिलता के कारण सरकारी हथियारों की बिक्री पर असर पड़ा है। बिक्री पर असर और सरकारी हथियारों की मांग कम होने पर यहां के कुशल कारीगर अवैध तरीके से हथियारों बनाने में जुट गए। यहां के कारीगर मुंगेर ही नहीं पश्चिम बंगाल, यूपी, झारखंड सहित देश के कई राज्यों में जाकर अवैध रूप से हथियार का निर्माण कर रहे हैं।
बंदूक कारखाना में 36 लोगों को लाइसेंस हथियार बनाने के लिए निर्गत हुआ। धीरे-धीरे इसकी संख्या पहुंचकर 22 हो गई। वर्तमान में पांच लोग ही अभी हथियार निर्माण में जुटे हैं। नए आर्म्स एक्ट के तहत सिंगल वैरल गन-एसबीबीएल और डल वैरल गल-डीबीबीएल बनाया जाता था। 2016 से यहां फाइव शाट पंप एक्शन गन बनाने की स्वीकृति सरकार से मिली। पहले बंदूक फैक्ट्री में हर वर्ष 12 हजार से ज्यादा आर्म्स बनाए जाते थे, अब यह सिमट कर दो हजार तक पहुंच गया है।
फैक्ट्री में बने हथियारों की इच्छापुर में होती है टेस्टिंग मुंगेर फैक्ट्री में बने हथियार की टेस्टिंग पश्चिम बंगाल के इच्छापुर स्थित आर्डिनेंस फैक्ट्री में होती है। यहां से जांच परखने के बाद हथियारों के निर्माण के लिए देश भर के हथियार विक्रेता जिलाधिकारी को पत्र भेजते हैं, इसके बाद संबधित आर्म्स बनाए जाते हैं। आधुनिकीकरण के अभाव में राज्य के इकलौते बंदूक कारखाने का अस्तित्व संकट में है। सालाना उत्पादन निर्धारित कोटे से काफी कम हो जाने के चलते यहां कार्यरत कर्मियों में भी भारी कटौती कर दी गई है। मुंगेर की पहचान कही जाने वाली इस फैक्ट्री में शुरुआती दिनों में 36 बंदूक निर्माण इकाईयां थी, जो धीरे-धीरे कम होती चली गई।
लाइसेंस की जटिलता के कारण निर्माण और आपूर्ति पर असर हाल ही एक आंकड़े के अनुसार देश में सबसे ज्यादा आर्म्स लाइसेंस वाले राज्य की सूची में उत्तर प्रदेश का नाम शामिल है। बिहार में लाइसेंस की प्रक्रिया काफी जटिल है। पिछले कुछ वर्षों से लाइसेंस लोगों को नहीं बन रहा है, एेसे में इसका असर बंदूक निर्माण से लेकर आपूर्ति पर पड़ा है। हथियारों का लाइसेंस जारी नहीं किए जाने के कारण इनमें से चार इंकाईयां बंद हो चुकी है। पहले यहां 1500 कारीगर व अन्य कर्मी काम करते थे। अब उनकी संख्या घटकर महज दर्जनों में सिमट गई है। बंदूक उत्पादन में भारी कमी आने से इससे जुड़े कई व्यवसायियों पर भी मंदी का संकट मंडराने लगा है। हुनरमंद कारीगरों के बेरोजगार होने से अवैध बंदूकों व राइफलों के निर्माण में तेजी आती जा रही है।
मंदी के कारण कारीगरों को तस्करों ने किया हाइजैक मुंगेर देश भर में वैध व अवैध हथियारों की आपूर्ति के लिए चर्चित है। हथियारों का निर्माण कम होने के कारण ज्यादातर कारीगर छोड़ कर चले गए, बेरोजगार हो गए। इन बेरोजगार हुए हुनरमंद कारीगरों पर अवैध हथियार तस्करों की नजर पड़ गई। 80 के दशक से मुंगेर में अवैध हथियारों के निर्माण का धंधा जोर पकड़ने लगा। अवैध हथियार तस्कर यहां के कारीगरों से हथियार बनाने के लिए हाइजैक कर लिया। बढ़िया पैसा मिलने के कारण कारखाने से बेराेजगार हुए कुशल कारीगर अवैध धंधे में जुड़ते चले गए।
बंदूक बनाने का तय होता है कोटा यहां के अलग-अलग यूनिट को एक वर्ष में कितने बंदूक का निर्माण करना है, इसका कोटा सरकार से मिलता है। इसी आधार पर ये लोग बंदूक तैयार कराते हैं। बंदूक निर्माण यूनिट के एक संचालक ने बताया कि हमारे पास महज 216 बंदूक साल में बनाने की अनुमति है। सरकारी बंदूक कारखाने में पहले एक हजार मजदूर काम करते थे। वर्तमान में संख्या काफी कम गई है। अभी जो मजदूर यहां काम कर रहे हैं वो भी दूसरे काम की तलाश में है। वाइजर कंपनी के संचालक सौरभ निधि ने बताया कि मुंगेर बंदूक फैक्ट्री में बहुत कुछ बदलाव आया है। बहुत कम लोग ही फैक्ट्री में हथियार का निर्माण कर रहे हैं।
ऐसे हैं कारीगर जो बना सकते हैं आधुनिक हथियार मुंगेर फैक्ट्री में काम करने वाले कारीगर ऐसे हैं जो अपनी दक्षता से आधुनिक हथियार तैयार कर सकते हैं। फैक्ट्री में काम करने वाले कारीगरों की मानें तो अब डबल बैरल गन का बाजार लगभग खत्म हो चुका है। हालांकि पहले इसे स्टेटस सिंबल के रूप में देखा जाता था। यहां की फैक्ट्री में काम करने वाली इकाइयों को लाइसेंस और सुविधाएं मिले तो वे किसी भी हथियार का निर्माण कर सकते हैं। यहां निर्मित हथियार विदेशों या देश की आर्डिनेंस फैक्ट्री में बनने वाले हथियारों से किसी भी मायने में कम नहीं होंगे।
हथियारों की असेंबलिंग व फिनिशिंग के लिए देश में मशहूर यहां सरकारी फैक्ट्री के बाहर बनने वाले अवैध हथियार मुंगेर के चेहरे पर बदनुमा दाग से कम नहीं है। यह जिला अवैध हथियारों की असेंबलिंग व फिनिशिंग के लिए जाना जाता है। बाहर से भी चोरी-छिपे अर्द्ध्निर्मित हथियार असेंबलिंग और फिनिशिं के लिए पहुंचता है। मुंगेर काे अवैध हथियार निर्माण का गढ़ माना जाता है। पुलिस बार-बार अवैध तरीके से हथियार बनाने वाली जगहों पर छापेमारी करती है, लेकिन हथियार तस्कर पुलिस दो कदम आगे हैं। जिले के तौफिर दियारा, कुतलुपुर, जाफरनगर, टीकारामपुर, बिदवारा, मिर्जापुर बरदह, शामपुर, लालदरवाजा, शंकरपुर, मोहली, हसनगंज, लल्लु पोखर इलाकों में अवैध रूप से हथियार बनाया जाता है। मिर्जापुर बरदह गांव अवैध हथियारों के लिए जानी जाती है। यहां अवैध रूप पिस्टल से लेकर अवैध हथियार तक तैयार होती है । देशभर के अपराधी सस्ते हथियारों के लिए मुंगेर के तस्करों से संपर्क करते हैं। हथियार की खरीद-फरोख्त के लिए देश भर में पहचान है।
कश्मीर में आतंकी, जंगलों में नक्सली चला चुके हैं मुंगेरी पिस्टल यहां अवैध रूप से बनने वाले पिस्टल का इस्तेमाल आतंकी से लेकर नक्सली तक कर चुके हैं। हाल के वर्षों में जम्मू-कश्मीर और यूपी में बरामद पिस्टल का निर्माण मुंगेर के ही कारीगरों ने किया था। हथियार तस्कर बने अवैध हथियार को सप्लाई करते हैं। सस्ता और कारगर शाट होने के कारण मुंगेर में बने अवैध हथियारों की डिमांड सूबे के सभी जिलों के अलावा पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, झारखंड, जम्मू-कश्मीर, हरियाणा सहित कई राज्यों में है। इन राज्यों में मुंगेरी हथियार की खरीद-फरोख्त होती है। सस्ता और कारगर होेने की वजह से यहां बने हथियार की डिमांड हर तरफ है। मुंगेर के कारीगर कई जगहों पर जाकर हथियार बनाने का काम करते हैं।
मुंगेर में ही लिखी गई थी एके-47 की पटकथा करीब साढ़े तीन वर्ष पहले जबलपुर आर्डिनेंस फैक्ट्री से गायब हुई एके-47 का तार सीधा मुंगेर से जुड़ा था। मुफस्सिल थाना क्षेत्र के आदर्श टिकारामपुर गांव के संजीव शाह की भूूमिका भी महत्वपूर्ण थी। यहां से संजीव ने हथियारों की तस्करी की थी। इसे जबलपुर आर्डिनेंस फैक्ट्री के हर मूवमेंट की नजर रहती थी। एनआइए के अधिकारी भी वांटेड की सोच से परे हैं। संजीव की सेटिंग इस कदर थी कि जहां परिंदा भी पर नहीं मार सकता, वहां तक उसकी पहुंच थी। संजीव शाह सहित ने लोकल हथियार की तस्करी करते-करते एके-47 तस्करी की पटकथा लिख दी। एनआइए के अधिकारी भी वांटेड की सोच से परे हैं। संजीव की सेटिंग इस कदर थी कि जहां परिंदा भी पर नहीं मार सकता, वहां तक उसकी पहुंच थी।
16 माह 21 मिनी गन फैक्ट्रियां पकड़ी गई
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- 21 जनवरी 2021 को हवेली खडग़पुर में मिनी गन फैक्ट्री का पर्दाफाश हुआ।
- 29 जनवरी 2021 को मुफस्सिल पुलिस ने तौफिर दियारा में छापामारी कर सात मिनी गन फैक्ट्री का पर्दाफाश।
- 21 जुलाई 2021 को मुफस्सिल पुलिस दो मिनी गन फैक्ट्री का भी पर्दाफाश
- 20 जनवरी 2021 को मुफस्सिल पुलिस ने मिर्जापुर बरदह से मिनी गन फैक्ट्री का पर्दाफाश किया, पिता-पुत्र गिरफ्तार
- 29 जनवरी 2022 को मुफस्सिल पुलिस ने कुतलूपुर दियारा में पांच मिनी गन फैक्ट्री का पर्दाफाश हुआ। तीन कारीगर गिरफ्तार हथियार बनाने के कई उपकरण पुलिस ने बरामद किया।
- 09 फरवरी 2022 को मुफस्सिल पुलिस ने तौफिर दियारा में पांच मिनी गन फैक्ट्री का किया उद्धभेदन साथ ही पांच कारीगर को आठ देसी पिस्टल सहित अर्धनिर्मित पिस्टल और हथियार बनाने के उपकरण के साथ गिरफ्तार किया।