हाय रे बिहार शिक्षा विभाग ! झोपड़ी में स्कूल, घर के आंगन से बच्चे दे रहे परीक्षा; दसवीं तक क्लास पर शिक्षक एक
school in hut in Bihar भागलपुर के एक सरकारी स्कूल की दुर्दशा देखकर हर कोई हैरान है। कहारपुर उत्क्रमित उच्च विद्यालय झोपड़ी में चल रहा है। आलम है कि कल के भविष्य झोपड़ी में जमीन पर बैठकर परीक्षा देने को मजबूर हैं लेकिन विभाग उदासीन बना हुआ है।
By Mithilesh KumarEdited By: Roma RaginiUpdated: Thu, 02 Mar 2023 11:57 AM (IST)
मिथिलेश कुमार, बिहपुर। भागलपुर के बिहपुर प्रखंड की हरियो पंचायत के कहारपुर में उत्क्रमित उच्च विद्यालय से बुधवार को सामने आई तस्वीरें कई सवाल खड़े कर रही हैं। झोपड़ी में संचालित स्कूल में पढ़ते बच्चे और एक घर के आंगन में परीक्षा देते परीक्षार्थी भले ही तमाम सुविधाओं के अभाव में भविष्य को गढ़ने में लगे हैं, लेकिन इनके मन की टीस चेहरे पर उतर आती है।
राज्य में मैट्रिक की तर्ज पर नौवीं की परीक्षा 24 फरवरी से शुरू हुई। इसके पीछे का उद्देश्य मैट्रिक में छात्र-छात्राओं की मेधा निखारने और तनाव कम करना है। इधर, भागलपुर के बिहपुर प्रखंड की हरियो पंचायत के कहारपुर में उत्क्रमित उच्च विद्यालय सरकारी और विभागीय उदासीनता का शिकार है।
कहारपुर उत्क्रमित उच्च विद्यालय अब खानाबदोश हो गया है। विद्यालय शिक्षा समिति की सचिव नूना देवी के घर के दरवाजे पर बनी 15/15 फीट की झोपड़ी में पूरा विद्यालय संचालित किया जा रहा है।
स्कूल में कक्षा दस तक पढ़ाई पर शिक्षक एक
कक्षा 10 तक की पढ़ाई के लिए यहां सिर्फ एक शिक्षक सह प्रभारी सुनील कुमार पदस्थापित हैं। इसी झोपड़ी में सुनील बच्चों को पढ़ाते हैं, उनसे जब पूछा गया कि नौवीं की परीक्षा संचालित नहीं हो रही क्या? इसपर शिक्षक सुनील सचिव के घर के अंदर ले गए, जहां आंगन में कुछ छात्र-छात्राएं जमीन पर बैठकर परीक्षा दे रहे थे।
विद्यालय में कक्षा एक से आठ तक नामांकित बच्चों की संख्या 335 है। वहीं, वर्ग नौ और 10 में बच्चों की संख्या लगभग 25 हैं। 75 प्रतिशत पिछड़ा व महादलित और 25 प्रतिशत सामान्य आबादी वाले इस गांव में नौनिहाल किस तरह पढ़ाई कर रहे हैं, इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है।ठंड में बच्चों ने किसी तरह इस विद्यालय में पढ़ाई तो कर ली, अब वे लू के थपेड़ों के बीच पढ़ाई कैसे करेंगे, यह भी सवाल है। सुनील कुमार बताते हैं कि वर्षा के दिनों में झोपड़ी के ऊपर प्लास्टिक सीट चढ़ा दी जाती है। जिसमें ग्रामीण भी सहयोग करते हैं।
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