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शरद पूर्णिमा : चंद्रमा की चांदनी में खीर, अमृत वर्षा, चंद्र व लक्ष्मी की पूजा, कृष्‍ण ने रचाया था महारास

शरद पूर्णिमा चांद की रोशनी में खीर रखने से उसमें आता है औषधीय गुण। इस दिन चंद्र देव के साथ मां लक्ष्मी की पूजा करना माना जाता है शुभ। भक्तों पर बरसती है मां लक्ष्मी की कृपा। नौ अक्टूबर को शाम 5 बजकर 11 मिनट पर होगा चंद्रोदय।

By Jagran NewsEdited By: Dilip Kumar shuklaUpdated: Sun, 09 Oct 2022 11:50 PM (IST)
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शरद पूर्णिमा : गांगुलीबाड़ी में जगधात्री देवी के मेढ़ का पूजन करते पंडित
संवाद सहयोगी, भागलपुर। शरद पूर्णिमा : शरद पूर्णिमा अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि यानी रविवार को है। रात में श्रद्धालु चंद्रमा को खीर अर्पित करेंगे। दरअसल, शरद पूर्णिमा की रात खीर बनाकर पूर्ण चंद्रमा की चांदनी में रखने का विधान है। मान्यता है कि चंद्रमा की रोशनी में खीर रखने से उसमें औषधीय गुण आ जाते हैं। इस खीर का सेवन करने पर सेहत अच्छी रहती है। एक और मान्यतानुसार समुद्र मंथन के दौरान शरद पूर्णिमा पर मां लक्ष्मी प्रकट हुईं थीं। इसी कारण शरद पूर्णिमा के दिन चंद्र देव के साथ मां लक्ष्मी की पूजा करना शुभ माना जाता है। इस दिन मां लक्ष्मी अपने भक्तों पर कृपा बरसातीं हैं। गंगा घाटों पर उमड़ेगी भीड़ : सुबह होते ही भारी संख्या में श्रद्धालु बरारी, सीढ़ी घाट, पुल घाट, आदमपुर, बूढ़ानाथ, बाबूपुर आदि घाटों पर जुटेंगे और स्नान कर पुण्य अर्जित करेंगे। पूरे दिन गंगा घाट पर मेले जैसा माहौल बना रहेगा। गंगा स्नान के बाद श्रद्धालु मां गंगा की पूजा-अर्चना के बाद देवालयों में भी पूजन करेंगे। सुबह छह बजे से ही गंगा स्नान करने का सिलसिला प्रारंभ हो जाएगा। सुबह दस बजे के बाद घाटों पर भीड़ अधिक होने की संभावना है। गंगा घाटों से दूर में ही वाहनों की पार्किंग कराई जाएगी। गंगा घाटों के आसपास पुलिस बल के साथ-साथ गोताखोर और एसडीआरएफ की टीम तैनात रहेगी।

महाशय ड्योढ़ी में कोजागिरी लक्खी पूजा आज

नाथनगर स्थित महाशय ड्योढ़ी परिसर में रविवार को शरद पूर्णिमा के शुभ मुहूर्त में कोजागिरी लक्खी (देवी लक्ष्मी की स्वरूप) की प्रतिमा स्थापित की जाएगी। यहां लक्खी पूजा का आयोजन डेढ़ सौ साल से भी अधिक वर्षों से होता आ रहा है। देवी दर्शन के लिए शहरी और ग्रामीण क्षेत्र के 10 हजार से भी अधिक श्रद्धालु जुटेंगे। सार्वजनिक पूजा समारोह समिति के महामंत्री देवाशीष बनर्जी ने बताया कि रविवार शाम चार बजे मां लक्खी व उनकी सखा-सखी की प्रतिमा स्थापित की जाएगी। शाम छह से रात 10 बजे तक माता की पूजा होगी। भागलपुर के जाने-माने पंडित शुभ आशीष लाहिरी पूजा संपन्न कराएंगे। उनके साथ दिलीप भट्टाचार्य, मंटू आचार्य, मिट्ठू आचार्य, बप्पा भट्टाचार्य भी रहेंगे। माता को फल-मूल, चांची, खोये की मिठाई, नारियल की मिठाई, पेड़ा, बताशा, पूरी-सब्जी, चूड़ा दही इत्यादि का भोग लगाया जाएगा। दूसरे दिन यानी 10 अक्टूबर 2022 को संध्या बेला में बंगाली टोला घाट में ढोल, ढाक, बाजे-गाजे, शंखनाद के साथ प्रतिमा का विसर्जन कर दिया जाएगा।

मां जगधात्री की पूजा

अमर कथा शिल्पी शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय के ननिहाल गांगुली बाड़ी में मां जगधात्री के मेढ़ की पूजा की गई। यहां लगभग 250 साल से यह पूजा होती आ रही है। इसकी शुरुआत पश्चिम बंगाल के हालिशहर में हुई थी। बाद में रामधान गांगुली द्वारा भागलपुर के गांगुली बाड़ी में स्थापित कर दिया गया। मेढ़ को गंगाजल से धोकर पूजा शुरू की गई। बेलपत्र, सिंदुर, गंगाजल, गंगा मिट्टी, पुआल आदि से पूजा कर मां का आह्वान किया गया। पूजा दो नवंबर को अक्षय नवमी के दिन होगी। मेढ़ पूजा पंडित हेम चन्द्र चक्रवर्ती ने की। इसके उपरान्त मूर्ति का निर्माण शुरू किया जाएगा।

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