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अक्षय तृतीया व परशुराम जयंती और छत्रपति शिवाजी की जयंती पर हुआ विशेष कार्यक्रम, स्वामी आगमानंद महाराज ने की चर्चा

तिलकामांझी स्थित कृषि भवन के आत्मा प्रशाल में अक्षय तृतीया परशुराम जयंती और छत्रपति शिवाजी जयंती पर एक विशेष समारोह आयोजित किया गया और इस समारोह में श्री रामचंद्राचार्य परमहंस स्वामी आगमानंद जी महाराज ने कहा कि जीवात्मा के कल्याण के लिए संस्कृति से जुड़ी परिचर्चा आयोजित की। उन्होंने इस आयोजन में संतों को उनका काम समझाया और इसको लेकर कार्यक्रम आयोजित किया गया।

By Dilip Kumar Shukla Edited By: Shoyeb Ahmed Updated: Sat, 11 May 2024 03:16 PM (IST)
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अक्षय तृतीया व परशुराम जयंती और छत्रपति शिवाजी की जयंती पर हुआ विशेष कार्यक्रम
जागरण संवाददाता, भागलपुर। तिलकामांझी स्थित कृषि भवन के आत्मा प्रशाल में अक्षय तृतीया, परशुराम जयंती और छत्रपति शिवाजी जयंती पर एक विशेष समारोह हुआ। श्री रामचंद्राचार्य परमहंस स्वामी आगमानंद जी महाराज ने कहा कि जीवात्मा के कल्याण के लिए संस्कृति से जुड़ी परिचर्चा आयोजित की गई है।

उन्होंने कहा- संतों का काम होता है मेला लगाना, किसी को अकेले नहीं छोड़ना, इसलिए भी एक-दूसरे से मिलने-मिलाने के लिए यह कार्यक्रम आयोजित किया गया है। स्वामी आगमानंद जी ने कहा कि अक्षय तृतीय के दिन से त्रेता युग आरंभ हुआ।

'देवता भी करते हैं दान'

इस युग में भगवान राम, भगवान परशुराम सहित कई अवतार हुए। अक्षय तृतीया को दान का काफी महत्व है। देवता भी दान करते हैं। कोई प्रकाश का दान करता है तो कोई वायु का, कोई जल को तो कोई धन का। इसलिए मनुष्य को भी दान करते रहना चाहिए। दान देने से सुख की प्राप्ति होती है।

अपनी कुछ वस्तुओं का त्याग करना चाहिए। त्याग में शांति है। स्वामी आमानंद ने कहा कि आवेशावतार परशुराम ने जब देखा के छात्र धर्म में विकृति का गई तो वे क्रोधित हो गए। सजा देने लगे। परशुराम सनातन धर्म की रक्षा के लिए हमेशा क्रोधित रहते थे।

मुगल काल का किया जिक्र

स्वामी आगमानंद ने कहा कि जिस समय देश में मुगल औरंगजेब का शासन था उस समय शिवाजी ने सनानत धर्म का पताका लहरा दिया। उन्होंने मुगलों से युद्ध करके उन्हें हताश कर दिया। उन्होंने भारत में उस समय हिन्दवी साम्राज्य की स्थापना की, जिस समय लोग अपने आपको हिंदू कहने से कतराते थे।

शिवाजी महाराज राजा होकर भी किसी संत के कम नहीं थे। धर्म की रक्षा के लिए शिवाजी ने घनघोर युद्ध किया। दिलीप शास्त्री ने छत्रपति शिवाजी के कई प्रसंगों को वहां सुनाया।

मुगलों के आगे सर नहीं झुकाने, गाय की हत्या रोकने के लिए हाथ काट देने, अफजल खान को 'वाघ नख' से मारने, दुश्मन की बेटी में भी मां का स्वरूप देखने सहित शिवाजी के कई प्रसंगों को सुनाकर सभी को भावविभोर कर दिया। दिलीप शास्त्री ने कहा- शिवाजी को कभी नहीं भुलें। उनका आदर्श हिंदुत्व के लिए प्रेरणादायी है।

ये लोग रहे मौजूद

समारोह में डॉ. लक्ष्मीश्वर झा, डॉ. आशा तिवारी ओझा, पंडित शंभुनाथ शास्त्री, डॉ. हिमांशु मोहन मिश्र दीपक जी, हरिशंकर ओझा, गीतकार राजकुमार, मुरारी मिश्र, डॉ. मिहिर मोहन मिश्र सुमन जी, स्वामी माधावानंद, कुंदन बाबा, मनोरंजन कुमार सिंह, पंडित प्रेम शंकर भारती, शिव प्रेमानंद भाई जी ने संबोधित किया। संचालन प्रभात कुमार सिंह और चंदन ने किया।

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