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GI Tag: लिट्टी चोखा सहित बिहार के 6 मशहूर चीजों को मिलेगा जीआई टैग, अंतिम चरण में तैयारी

Bihar News बिहार को फिर छह जीआई टैग (GI Tag) मिलने वाला है। इसकी तैयारी बिहार कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू) सबौर कर रहा है जो अंतिम चरण में है। तकनीकी और वैज्ञानिक पहलू से बीएयू ने इसके लिए कागजी प्रक्रिया पूरी कर ली है। जल्द ही भारत सरकार को सभी मानकों को पूरा करते हुए जीआई टैग दस्तावेज भेजी जाएगी ।

By Hirshikesh Tiwari Edited By: Mukul Kumar Updated: Thu, 08 Aug 2024 02:35 PM (IST)
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बिहार का चर्चित पकवान लिट्टी चोखा। फाइल फोटो
ललन तिवारी, भागलपुर। लिट्टी चोखा (Litti Chokha) समेत बिहार के छह लजीज पकवानों को जल्द ही जीआई टैग मिलने वाला है। इसकी तैयारी तेजी से चल रही है, जो लगभग अंतिम चरण में है।

बिहार कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू), सबौर के अनुसंधान निदेशक डॉ. अनिल कुमार सिंह कहते हैं कि बिहार के छह उत्पाद लिट्टी-चोखा, सोनाचूर चावल, गुलशन टमाटर, बाढ़ (पटना) की लाई, पिपरा (सुपौल) का खाजा और सीता सिंदूर शामिल हैं। ऐसे विश्वविद्यालय बिहार के 54 उत्पाद पर जीआई के लिए काम कर रहा है।

बीएयू के सहयोग से इसके पहले भी बिहार को पांच उत्पाद पर जीआइ टैग मिल चुका है। जीआइ मिलने से उस जगह, वहां के उत्पाद की तो खास पहचान होती ही है, साथ ही उत्पाद भी देश-विदेश के बाजार में अपनी धमक बनाता है।

जीआई के लिए क्या करता विश्वविद्यालय

यूं तो विश्वविद्यालय को जीआई लेने वाले समूह को तकनीकी और वैज्ञानिक सहयोग करने की जिम्मेदारी है। लेकिन विश्वविद्यालय प्रदेश की समृद्धि और खास पहचान के लिए जी आई से संबंधित आरंभ से मुकाम तक का सफर तय करने में इंजन का काम करता है। जीआई मिलने लायक उत्पाद की बिहार में खोज करता है।

फिर उस जगह के स्थानीय लोगों का समूह बनाता है । उसका पंजीयन करवाता है। उत्पाद के खास गुणवत्ता को वैज्ञानिक पैमाने पर प्रमाणित करता है। जीआई मिलने की सभी पैमाने को पूरा करता है।

उसके बाद भारत सरकार को जीआई के लिए भेजता है। कहीं कोई कमी होने पर उसे पूरा करता है और सरकार को संतुष्ट करता है। इसमें विश्वविद्यालय की वैज्ञानिकों की टीम काम करती है।

जी आई मिलने से उत्पाद पर वहां का एकाधिकार होता है। उस उत्पाद का गुणवत्ता पूर्ण व्यवसाय बड़े बाजारों में करने का द्वार खुल जाता है। किसानों और छोटे उद्योग करने वाले लाभान्वित होते हैं। प्रदेश सम्मान और समृद्धि प्राप्त करता है। विश्वविद्यालय प्रयास कर रहा है।- डॉ. डी. आर. सिंह, कुलपति बीएयू सबौर

लिट्टी चोखा

लिट्टी एक मुख्य व्यंजन है जो बिहारी व्यंजनों का एक हिस्सा है। गेहूं के आटे से बना केक है जिसे नमक डालकर पकाया जाता है। लिट्टी में सत्तू (तले हुए बेसन) और कुछ खास मसाले भरे जाते हैं और घी के साथ परोसा जाता है। लिट्टी-चोखा बनाने की शुरुआत मगध काल में हुई। सैनिक युद्ध के दौरान लिट्टी-चोखा खाते थे।

यह जल्दी खराब नहीं होती थी। इसे बनाना और पैक करना काफी आसान था। इसलिए सैनिक भोजन के रूप में इसे अपने साथ ले जाते थे।

सोना चूर चावल

खुशबूदार सोनाचूर चावल की महक इसकी खासियत है। देश के साथ विदेश में भी इसकी मांग बढ़ रही है। सबसे ज्यादा इसे बक्सर जिला में उपजाया जाता है। इसमें जैविक खाद का उपयोग किया जाता है

गुलशन टमाटर

गुलशन नामक किस्म के टमाटर का छिलका मोटा होता है। इसका इस्तेमाल सब्जी और विशेष तौर पर सलाद के रूप में किया जाता है। यह लाने ले जाने में सुविधाजनक है क्योंकि छिल्का मोटा होने की वजह से यह जल्दी खराब नहीं होता है।

बाढ़ (पटना) की लाई

पटना के बाढ़ की फेमस लाई की मिठास इतनी प्यारी है कि लोग दूर-दूर से लाई का स्वाद लेने के लिए पहुंचते हैं। जब इस लाई को दुकानों में बनाया जाता है तो इसकी खुशबू लोगों को सड़क से खींच लाती है। पिछले एक सौ वर्षों से इसका व्यवसाय यहां हो रहा है। बनाने में लावे पहले भूंजा जाता है।

इसके बाद लावा में खोया चीनी की चाशनी, इलाइची, काजू, बादाम और किसमिस मिलाया जाता है। इसका स्वाद काफी लाजवाब हो जाता है।

पिपरा का खाजा

सुपौल के पिपरा के खाजा की चर्चा दूर तलक है। अपने विशिष्ट स्वाद के लिए जाना जाता है।देश की आजादी से पहले से यहां खाजा बनाने का काम चल रहा है । उस वक्त एक छोटा सा हाट दुर्गा मंदिर के बगल में पीपल पेड़ के नीचे शुद्ध घी का खाजा तैयार किया जाता था। आज इसकी मांग बड़े बाजार में है।

सीता सिंदूर

सीता सिंदूर जिसका पेड़ होता है। उसमें यह सिंदूर फलता है। इसका उपयोग बिहार में सदियों से होते आ रहा है। मधुबनी पेंटिंग सहित बिहार के पुराने आर्ट में इस सिंदूर का उपयोग किया गया है। इसको वैज्ञानिकों ने अपने शोध में प्रमाणित किया है। बिहार का यह विरासत से उपयोगी उत्पाद रहा है।

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