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BJP के लिए सुशील मोदी कैसे साबित हुए 'तुरुप का इक्का'? दुबे-चौबे की लड़ाई में मार गए थे बाजी, ऐसे बने नीतीश के जोड़ीदार

Bihar Politics In Hindi बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम सुशील मोदी अब नहीं रहे लेकिन राजनीतिक जगत से जुड़े उनके जबरदस्त किस्से हमेशा चर्चा में रहेंगे। बिहार में सुशील मोदी ने एक समय में अलग पहचान बनाई थी। ऐसा भी कह सकते हैं कि बिहार में भाजपा के लिए मोदी तुरुप का इक्का साबित हुए थे। दो नेताओं की लड़ाई में उन्होंने बाजी मार ली थी।

By Shankar Dayal Mihsra Edited By: Mukul Kumar Published: Tue, 14 May 2024 08:30 AM (IST)Updated: Tue, 14 May 2024 08:30 AM (IST)
बिहार के पूर्व डिप्टी सुशील मोदी। फोटो- जागरण

शंकर दयाल मिश्रा, भागलपुर। Sushil Modi Interesting Facts बिहार के डिप्टी सीएम सुशील मोदी का निधन हो गया है। राजनीतिक जगत में उनसे जुड़े कई किस्से हैं। 2004 का चुनावी वर्ष था। भागलपुर संसदीय सीट पर भाजपा में दावेदारी को लेकर भागलपुर के तत्कालीन विधायक अश्विनी कुमार चौबे और दिल्ली से लौटकर भाजपा में उभार पा रहे निशिकांत दुबे (वर्तमान सांसद गोड्डा, झारखंड) में ठनी हुई थी।

तब इन दोनों की लड़ाई में मैदान मार गए थे सुशील मोदी। भाजपा आलाकमान ने उस वक्त बिहार के अपने सबसे बड़े नेता और बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष मोदी को भागलपुर संसदीय सीट का उम्मीदवार बनाकर प्रत्यक्षत: सारी लड़ाई एक झटके में समाप्त करा दिया था।

Sushil Modi News भागवत झा आजाद के दौर के बाद एक बड़े नामचीन नेता के रूप में सुशील मोदी का भागलपुर में यूं पदार्पण हुआ था। यहां से भागलपुर के साथ उनका सीधा रिश्ता बना था और भागलपुर आने पर वे सीधे रिश्ते वाले भाव में ही मिलते थे। वे अक्सर आमने-सामने या मोबाइल पर बातचीत में कहते थे कि भागलपुर मेरे लिए भाग्यभूमि है।

वहां से सांसद रहते हुए मैं उपमुख्यमंत्री बना और भाजपा भी सत्ता में आई। हालांकि, तथ्य यह भी है कि 2004 में इंडिया शाइन नहीं हुआ। तब केंद्र में भाजपा की सरकार नहीं बन सकी थी अन्यथा वे तभी केंद्र में मंत्री पद के बिहार कोटा के सबसे बड़े दावेदार होते।

Sushil Modi No More राजनीतिक इतिहास पर नजर डालें तो 2004 का भागलपुर का लोकसभा चुनाव सुशील मोदी के उम्मीदवार के तौर पर पहला और अंतिम चुनाव रहा। वे यहां से जीते पर कार्यकाल के बीच में ही छोड़कर चले गए।

2005 के नवंबर में जब बिहार में एनडीए की सरकार बनी तो वे भाजपा विधायक दल के नेता के तौर पर उपमुख्यमंत्री बनाए गए। 2006 में उन्होंने भागलपुर संसदीय सीट से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद भागलपुर से सीधा रिश्ता तो टूट गया। हालांकि, उनके व्यक्तिगत रिश्ते संसदीय क्षेत्र के कई लोगों से थे।

करीब दो वर्ष रहे सांसद

भाजपा के भागलपुर विधानसभा प्रत्याशी रहे पूर्व जिलाध्यक्ष रोहित पांडेय बताते हैं कि सुशील मोदी का कार्यकाल वैसे तो भागलपुर के सांसद के रूप में करीब दो वर्ष का ही रहा लेकिन वे अक्सर समय निकालकर वे अपने उन कार्यकर्ताओं जरूर बात करते थे जो उनके चुनाव में सक्रिय थे।

कई युवाओं ने तो उनके सानिध्य में रहकर राजनीति सीखी। रोहित के मुताबिक, इसके एक उदाहरण तो वे खुद हैं जिसे मोदी ने विद्यार्थी परिषद की राजनीति से उठाकर पार्टी संगठन में महत्वपूर्ण पद तक पहुंचा दिया।

मोदी के साथ चुनाव में और उनके सांसद बनने के बाद साथ सक्रिय रहे धनंजय पांडेय कहते हैं कि वे झूठा आश्वासन कभी किसी को नहीं देते थे। जो काम नहीं होने वाला होता था वह सीधे अपने कार्यकर्ता के मुंह पर ही बोल देते थे। इस कारण क़ुछ कार्यकर्ता दुखी हो जाते थे पर बाद में वे ही सराहना करते कि अन्य नेताओं की तरह ये कोरा आश्वासन नहीं देते हैं।

चौबे से बनी थी दूरी

2004 में मोदी के भागलपुर आने पर कहा गया कि चौबे ने दुबे की काट के लिए मोदी को यहां बुलाया। मोदी और चौबे की मित्रता की कहानी चर्चा में रहती थी। 2005 में बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए के विजय के बाद चौबे भी भाजपा कोटे से उपमुख्यमंत्री के दावेदार थे। वे विधायक थे।

सांसद सुशील मोदी उपमुख्यमंत्री बनाए गए। हालांकि चौबे भी मंत्री बनाए गए पर यहां से मोदी और चौबे के बीच दूरी बन गई। चौबे ने मोदी के विरोध में जमकर बयानबाजी भी की और उनके समर्थकों ने हंगामा भी किया था।

इस चुनाव में भी आए थे चर्चा में

नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के फिर से भाजपा में आने से पहले भागलपुर सीट पर भाजपा के लिए वैकेंसी खुली थी, पर उनके भाजपा के साथ आते ही संभावनाएं तलाशी जाने लगी। सुशील मोदी को राज्यसभा के लिए रिपीट नहीं किया गया। तब उन्हें कैंसर होने की जानकारी सार्वजनिक नहीं थी।

ऐसे में चर्चा चली कि नीतीश और मोदी की दोस्ती रंग दिखाएगी और भागलपुर सीट पर वे चुनाव लड़ सकते हैं। भाजपा नेता मृणाल शेखर बताते हैं कि छतीसगढ़ में वहां विधानसभा चुनाव प्रचार के क्रम में वे और सुशील मोदी एक साथ ठहरे थे। तब उन्होंने भागलपुर से चुनावी संभावना पर चर्चा की थी तो वे मुस्कुराकर रह गए थे। उन्हें तब नहीं पता था कि कितनी बड़ी बीमारी साथ लेकर वे पार्टी के लिए काम कर रहे हैं।

2004 के लोकसभा चुनाव में मुख्य प्रत्याशियों को प्राप्त मत

सुशील मोदी = भाजपा = 3,45,137

सुबोध राय = सीपीएम = 2,27,298

पप्पू खान = बीएसपी = 1,30,064

चुनचुन प्र. यादव = सपा = 13,239

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