Move to Jagran APP

देश में पहली बार लैब में तैयार किया गया मीठा बांस, किसानों के लिए सोना उगलने वाली साबित हो सकती है इसकी खेती

बिहार के तेज नारायण बनैली कॉलेज भागलपुर में उत्तक प्रौद्योगिकी संवर्धन तकनीक की मदद से विज्ञानियों ने वृहद पैमाने पर मीठे बांस के पौधे तैयार किए हैं। पेड़-पौधों पर 20 साल से अधिक समय से रिसर्च करने वाले वैज्ञानिक प्रो. अजय चौधरी टीएनबी कॉलेज कैंपस में स्थित पादप उत्तक प्रौद्योगिकी संवर्धन प्रयोगशाला के परियोजना निदेशक हैं।

By Jagran NewsEdited By: Mohit TripathiUpdated: Tue, 10 Oct 2023 06:17 PM (IST)
Hero Image
भागलपुर टिश्यू कल्चर लैब में तैयार किए गए बांस के पौधे। (जागरण फोटो)
अभिषेक प्रकाश, भागलपुर। बिहार के तेज नारायण बनैली कॉलेज भागलपुर में उत्तक प्रौद्योगिकी संवर्धन तकनीक की मदद से विज्ञानियों ने वृहद पैमाने पर मीठे बांस के पौधे तैयार किए हैं। पेड़-पौधों पर 20 साल से अधिक समय से रिसर्च करने वाले वैज्ञानिक प्रो. अजय चौधरी टीएनबी कॉलेज कैंपस में स्थित पादप उत्तक प्रौद्योगिकी संवर्धन प्रयोगशाला के परियोजना निदेशक हैं।

प्रो. अजय चौधरी के नेतृत्व वाली टीम ने एक साल की कड़ी मेहनत के बाद इस पौधे को तैयार किया है। ये बांस डैंड्रो कैलेमस स्पर व डैंड्रो कैलेमस हेमिलिटोनी प्रजाति के हैं। भागलपुर टिश्यू कल्चर लैब में दो लाख पौधे, जबकि अररिया स्थित प्रौद्योगिकी पार्क में एक लाख पौधे तैयार किए गए हैं।


भागलपुर टिश्यू कल्चर लैब में पौधे तैयार करती प्रो अजय चौधरी की टीम। (जागरण फोटो)

कटलेट, चिप्स, अचार बनाने में होता है प्रयोग

ऐसे बांस का उपयोग चीन, ताइवान, सिंगापुर, फिलीपींस आदि में बड़े पैमाने पर कटलेट, चिप्स, अचार बनाने में किया जाता है। अब इसका उपयोग भारत में भी होगा। इन पौधों से एंटी ऑक्सीडेंट दवाएं भी बनाई जा सकती हैं। वृहद पैमाने पर उत्पादन होने से लोगों की पहुंच इन तक होगी।

मीठे बांस की कोपलें। (जागरण फोटो)

किसी भी मौसम व मिट्टी में खेती के लिए उपयुक्त

प्रो. अजय ने बताया कि फूड प्रोसेसिंग यूनिट की सहायता से इन बांस के पेड़ों से विभिन्न प्रकार के खाद्य उत्पाद तैयार किए जाएंगे। किसी भी मौसम व मिट्टी में इसकी खेती की जा सकती है।

प्रयोग के दौरान एनटीपीसी से निकली राख के ढेर पर भी इसे अच्छे तरीके से उगाया गया है। पहले राष्ट्रीय बांस मिशन और राज्य बांस मिशन के तहत वन विभाग टिश्यू कल्चर से तैयार मीठे बांस के पौधों को बड़े पैमाने पर लगवाएगा।


पादप उत्तक प्रौद्योगिकी संवर्धन प्रयोगशाला के परियोजना निदेशक  प्रो. अजय चौधरी। (जागरण फोटो)

देखभाल के लिए 60 रुपये प्रति पौधे देगा वन विभाग

किसानों को नजदीकी वन विभाग से 10 रुपये में ये पौधे मिलेंगे। तीन वर्ष बाद इन पौधों की फिर जांच की जाएगी। यदि किसानों द्वारा लगाए गए 50 प्रतिशत से अधिक पौधे बचे रहते हैं, तो वन विभाग की ओर से प्रति पौधे देखभाल के लिए 60 रुपये दिए जाएंगे और बांस के पौधों की कीमत (10 रुपये) भी वापस कर दी जाएगी।

भारत में 135 से अधिक व्यावसायिक बांस की प्रजातियां

प्रोफेसर डॉ. एके चौधरी ने बताया कि भारत में बांस की 135 से अधिक व्यावसायिक प्रजातियां हैं। बांस के 1600 से अधिक औद्योगिक उपयोग हैं। बांस के पौधे कार्बन डाई ऑक्साइड को अच्छी तरह से अवशोषित कर कार्बनिक पदार्थ बनाता है, जो सीधे मिट्टी में जाता है। इससे मिट्टी उपजाऊ होती है।

प्लास्टिक का बेहतर विकल्प हो सकता है बांस

भारत बांस की सहायता से बायो एथेनॉल, बायो सीएनजी और बायो गैस बनाने पर भी शोध कर रहा है। बांस को प्लास्टिक का सबसे बड़ा विकल्प माना जा रहा है। बांस कारीडोर के तहत बिहार में बाढ़ वाले इलाके में वृहद पैमाने पर वन विभाग द्वारा मीठे बांस के पौधे लगाएए जाएंगे।

संजय गांधी जैविक उद्यान में गैंडा की प्रजाति को विकसित करने व उसे प्राकृतिक आवास देने के लिए अलग-अलग प्रजातियों के बांस के 5000 पौधे लगाए गए हैं। राजगीर के वेणु वन में भी 13 एकड़ में बांस के पौधों को इको टूरिज्म विकसित करने के लिए लगाया गया है।

वन विभाग को मीठे बांस के पौधे लगाने हैं। किसानों को 10 रुपये प्रति पौधे ये दिए जाएंगे। भविष्य में इन पौधों की देखरेख के लिए भी किसानों को सहायता राशि दी जाएगी। मीठे बांस के पौधों को लगाकर किसान खुशहाल होंगे। आने वाले समय में बांस के इन पौधों के उत्पाद विदेश में भी भेजे जाएंगे। इस कारण इन पौधों से किसानों की समृद्धि बढ़ेगी।

 ब्रजकिशोर सिंह, रेंजर, भागलपुर वन प्रक्षेत्र

यह भी पढ़ें: Bihar Paper Leak: सिपाही भर्ती पेपर लीक मामले में पुलिस का बड़ा खुलासा, 2 सरकारी कर्मियों ने ही भेजी थी आंसर-की

Bihar News: बिहार के सरकारी स्कूलों से काट दिए गए 5 लाख 40 हजार बच्चों के नाम, विभाग का तर्क जान रह जाएंगे हैरान

आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।