बिहार के इस मंदिर में पूरी होती हैं मुरादें, बंगाल से पूजा करने आते हैं पंडित; सदियों पुरानी है यहां की कहानी
Bihar News आज हम आपको बिहार के एक ऐसे मंदिर के बार में बताने जा रहे हैं जहां मां काली की पूजा बंगला पद्धति से की जाती है। गजब की बात तो यह है कि यहां पूजा करने के लिए पंडित भी बंगाल से आते हैं। हालांकि पूजा संपन्न होने के बाद पंडित चले जाते हैं। कहा जाता है कि सच्चे मन से मांगी गई मुरादें यहां पूरी होती है।
By Ashutosh KumarEdited By: Aysha SheikhUpdated: Sun, 05 Nov 2023 01:04 PM (IST)
संवाद सूत्र, कहलगांव। कहलगांव प्रखंड श्यामपुर पंचायत के जानमुहम्मदपुर ड्योड़ी में वर्ष 1836 से प्रतिमा स्थापित की जा रही है। यहां माता सिद्धेश्वरी स्वरूप मां काली की पूजा बंगला पद्धति से की जाती है।
यह काफी शक्तिशाली है। कहा जाता है कि सच्चे मन से मांगी गई मुरादें यहां पूरी होती है। बंगाल से ही पूजा करने के लिए पंडित लाए जाते हैं। गत बीस वर्षों से रामनाथ चक्रवर्ती पूजा के आते हैं।
पूजा संपन्न होने पर वापस लौट जाते हैं पंडित
पूजा संपन्न होने के बाद चले जाते हैं। यहां अमावस्या के दूसरे ही दिन शाम में प्रतिमा विसर्जित कर दी जाती है। मेला भी लगता है। बंगाल से आए जमींदार राधा चरण गांगुली ने अपने घर पर मंदिर की स्थापना कर प्रतिमा स्थापित की थी।तब से एक ही रूप में प्रतिमा स्थापित की जा रही है। जमींदार का मकान सह मंदिर जर्जर हो गया है। राधा चरण के पौत्र विद्युत कुमार गांगुली पूजा के दौरान स्वयं यजमान के रूप में बैठते थे। अपने सीने को चीरकर खून चढ़ाते थे।
बकरे की बलि
गांगुली परिवार के पांचवी पीढ़ी पूजा कर रही है। प्रदीप कुमार गांगुली ने बताया कि पहले पांच काला पाठा बकरे की बलि परिवार की ओर से दी जाती थी। उसके बाद श्रद्धालु बकरे की बलि देने लगे थे। हालांकि, अब बलि प्रथा बंद कर दी गई है।अभी सूर्यकोड़ा, परोल, ईख की बलि दी जाती है। गांगुली परिवार ने श्री नारायण जी, मां काली के नाम से 22 बीघा जमीन निजी ट्रस्ट बनाकर अर्पणनामा कर दिया था। ताकि मंदिर की व्यवस्था, पूजा अर्चना में कोई दिक्कत नहीं हो।
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