संतान की कामना के लिए 500 वर्ष पूर्व बनाया गया था मंदिर, आज बन गया सिद्धपीठ, बांग्ला पद्धति से होता है पूजन
बांका के चांदन में पुरानी दुर्गा मंदिर सिद्धपीठ के रूप में प्रसिद्ध है। देवघर-बांका पक्की सड़क और ट्रेन रूट से यहां लोग जाते हैं। 500 वर्षो से बंगला पद्धति से होती है माता की पूजा। दुर्गा पूजा में यहां काफी संख्या में श्रद्धालु आते हैं।
By JagranEdited By: Dilip Kumar shuklaUpdated: Mon, 26 Sep 2022 03:29 PM (IST)
संवाद सूत्र, चांदन (बांका)। बांका के चांदन प्रखंड मुख्यालय स्थित पुरानी दुर्गा मंदिर सिद्धपीठ के रूप में प्रसिद्ध है। यह मंदिर देवघर-बांका पक्की सड़क और ट्रेन रूट से भी पहुंचा जा सकता है। चांदन रेलवे स्टेशन के समीप स्थित यह दुर्गा मंदिर जमींदार उदित नारायण टिकैत के पूर्वजों द्वारा पुत्र प्राप्ति की कामना के लिए 500 वर्ष पूर्व स्थापना की गई थी।
मंदिर का इतिहासइस मंदिर की स्थापना के बाद यहां नर बलि दी जाती थी। नरबलि के बाद जंगलों के बीच नाच और गाना का कार्यक्रम होता था। मंदिर में नरबलि के बाद कुछ दिनों तक भैंसे की बलि भी दी गई। एक भक्त द्वारा इसका विरोध करने पर इसे बंद कर दिया गया। तब से यहां बकरे की बलि दी जाती है।
मंदिर की विशेषतामंदिर में पूर्व से टिकैत परिवार की महिलाओं द्वारा ही मूर्ति विसर्जन के समय खोइचा देने की परंपरा थी। लेकिन उस परिवार के सदस्यों के समाप्त हो जाने के बाद अब कमेटी के पदाधिकारी के परिवार की महिलाएं ही विसर्जन के वक्त माता को खोइचा देतीं है। मंदिर में जो भी मनौती रखी जाती है वह निश्चित रूप से पूरा होता है।
यहां सिद्धि पीठ की पूजा बंगला पद्धति से होती है। बताया कि यहां तीन दिनों का मेला भव्य होता है। इस वर्ष काफी भीड़ होने के कारण पूजा समिति के सदस्य को पूरी तरह सजग रहना होगा। - लालमोहन पांडे, आचार्य, मंदिर समिति
मेले के सफल संचालन के लिए कमेटी गठित की गई है। यहां तीन दिनों का मेला लगता है। पूजा संपन्न कराने में पूजा समिति सहित प्रशासन की भूमिका सराहनी रहती है। निर्धारित तिथि को प्रतिमा का विसर्जन होगा। - विक्रम कुमार दूबे, अध्यक्ष, मंदिर समितिकाफी संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। मान्यता है कि लोगों की हरेक मनोकामना यहां पूर्ण होती है। यहां भव्य मेला भी लगता है। दुर्गा पूजा की तैयारी यहां एक माह पूर्व से ही शुरू कर दी जाती है।
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