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इतिहास में पहली बार सामवेद का उर्दू अनुवाद, पंडित जी के पोते इकबाल ने पूरी की दारा शिकोह की इच्छा

इतिहास में पहली बार सामवेद का उर्दू में अनुवाद किया गया है। इसे पंड‍ित जी के पोते और मशहूर फ‍िल्‍म निर्देशक इकबाल दुर्रानी ने किया है। वह मूलरूप से बिहार के बांका जिले के रहने वाले हैं। चार साल में उन्‍होने यह काम पूरा किया।

By Abhishek KumarEdited By: Updated: Mon, 16 May 2022 11:14 PM (IST)
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मशहूर फ‍िल्‍म निर्देशक इकबाल दुर्रानी ने सामवेद का उर्दू अनुवाद किया।

भागलपुर [आनंद कुमार सिंह]। गीत, संगीत, नरमी, प्यार, समर्पण और रस से परिपूर्ण सामवेद का उर्दू अनुवाद अब प्रकाशन के लिए तैयार है। अनुवाद करने वाले प्रसिद्ध प्रसिद्ध फिल्म निर्माता-निर्देशक इकबाल दुर्रानी बताते हैं कि इतिहास में पहली बार सामवेद का उर्दू अनुवाद किया गया है।

इससे पूर्व, 1516 में दारा शिकोह ने पंडितों-मौलवियों की मदद से चार पुराणों का पर्शियन में अनुवाद किया था। वेदों का अनुवाद करने की भी उनकी तमन्ना थी, लेकिन 1520 में औरंगजेब से हुई जंग के बाद उनकी हत्या कर दी गई थी। इकबाल कहते हैं कि शाहजहां की हुकूमत में जो ख्वाब दारा शिकोह पूरा नहीं कर सके, उसे नरेंद्र मोदी के शासनकाल में इकबाल ने पूरा कर दिखाया।

इकबाल ने पिछले कुछ समय से अपनी किताब के बारे में अधिक चर्चा नहीं की। वे बताते हैं कि एक मुस्लिम होकर वेद का अनुवाद करना कई लोगों की नजर में अनहोनी की तरह थी। अब उनकी किताब प्रकाशन के लिए तैयार है। उनके बेटे मशाल के नाम पर उनके खुद के मशाल पब्लिकेशन से यह किताब प्रकाशित की जाएगी। इकबाल की पत्नी ममता ब्राह्मण हैं। बेटे का नाम मशाल इस कारण रखा गया, ताकि इसमें ममता और इकबाल दोनों का नाम हो।

उत्तर प्रदेश के एटा स्थित एक गुरुकुल में इकबाल शूटिंग की लोकेशन देखने पहुंचे थे। वहां सैकड़ों बच्चे वेद-यज्ञ की शिक्षा लेते थे। प्राचार्य ने उन्हें उपहार में लाल कपड़े में लपेटकर वेद दिया। पढऩे का भी अनुरोध किया। वेद पढऩा शुरू किया तो अलौकिक आनंद मिला। बाकी उर्दूभाषी भी इस मर्म को समझ सकें, इस कारण उन्होंने हि‍ंदी, संस्कृत और अंग्रजी की डिक्शनरी मंगवाकर सामवेद का अनुवाद शुरू किया। किताब में सामवेद के संस्कृत मंत्र के साथ ही बायीं ओर उसका ङ्क्षहदी और दायीं ओर उर्दू अनुवाद रहेगा।

इकबाल बताते हैं कि उनकी सुपर-डुपर हिट फिल्में तो मर जाएंगी, लेकिन सामवेद का अनुवाद कभी नहीं मरेगा। यह उन्हें भी कयामत तक जीवित रखेगा। उनका मानना है कि लोगों की दुआओं व आंसुओं में कोई फर्क नहीं होता, सिर्फ आंखों की पुतलियों में फर्क होता है। किताब के प्रकाशन के बाद इकबाल अपनी लेक्चर की सीरीज 'इकबाल दुर्रानी आन सामवेदÓ की भी शुरुआत करेंगे। इकबाल बताते हैं कि दारा शिकोह पर आधारित फिल्म भी करण जौहर बना रहे हैं।

इकबाल का जन्म बांका जिले में बौसी प्रखंड स्थित मंदार पर्वत की तलहटी में बसे छोटे से गांव बलुआतरी में हुआ है। घर के सामने मंदार पर्वत था, सो बचपन सागर मंथन व मधुसूदन भगवान की कथाओं को सुनकर बीता। इनके पिता मुहम्मद अली गणित व दादा शेख महमूद मोकामा के सीसीएमई मिडिल स्कूल में संस्कृत शिक्षक थे। इस कारण लोग इकबाल को भी पंडितजी का पोता कहकर पुकारते थे। इकबाल के भतीजे चंदेल दुर्रानी बलुआतरी में उनकी घर-संपत्तियों की देखरेख करते हैं। उनके भाई पिंटू दुर्रानी हजारीबाग में रहते हैं और पैतृक गांव में उनका बकरी फार्म है।

:- ऐसे किया अनुवाद : इकबाल बताते हैं कि संस्कृत की प्रारंभिक शिक्षा उन्हें दादाजी से घर में ही मिली। अनुवाद करने के दौरान कई कठिनाइयां सामने आईं। उन्होंने इसके लिए ङ्क्षहदी, उर्दू और संस्कृत की डिक्शनरी के अलावा वैदिक डिक्शनरी भी मंगवाई। एक-एक शब्द का अर्थ निकाला, इस कारण अनुवाद में चार साल का समय लग गया। वेदों के अंग्रेजी अनुवाद से भी उन्हें संस्कृत में सामवेद की ऋचाओं को समझने में मदद मिली। 

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