Arrah News: अंधाधुंध खनन से मौत का कुआं बनी जीवन देने वाली सोन, एक ही परिवार की 5 लड़कियों को निगल गई नदी
अंधाधुंध खनन ने सोन नदी का नक्शा बदल दिया है। एक समय सोन नदी के पानी से हरी सब्जियों की खेती कर और मछली पकड़कर लोग अपना जीवन यापन करते थे उनके लिए यह नदी अब काल बन गई है। शनिवार को एक ही परिवार की महिला समेत पांच लड़कियां नदी में डूब गई जिनका शव अबतक बरामद नहीं हुआ है।
जागरण संवाददाता, आरा। अंधाधुंध बालू खनन ने सोन नदी का नक्शा बदल ही दिया है। जिस सोन नदी के आसपास बसे लोग इसके पानी से हरी सब्जियों की खेती कर और मछली पकड़ अपना जीवन यापन करते थे, उनके लिए नदी अब यह काल बन गई है।
इसकी वजह सोन से बालू निकालने के लिए अंधाधुंध खनन है। पहले नौका पर सवार मजदूर बीच धारा में डुबकी लगाकर नीचे से बालू निकालते थे, अब पोकलेन और ड्रेजर मशीन से बालू का खनन होने लगा।
पतली और कुएं जैसी पतली हुई नदी
नियम के मुताबिक, खनन बीच धारा से करना है, जिससे नदी के प्रकृति पर कोई आंच नहीं आए, लेकिन किनारे से बालू निकाल लिया जाता है। मशीन से 35-40 फीट की गहराई तक में बालू का खनन होता है।
इससे नदी की धारा पतली और कहीं-कहीं कुएं जैसी गहरी हो गई है। जब पानी नहीं होता है, तो यह दूर-दूर तक रेगिस्तान सरीखा दिखता है। पानी आने पर कुएं का पता नहीं चलता और स्नान करने जाने वाले इसमें चले जाते हैं।
नदी के पास जाने से भी डरने लगे हैं लोग
भोजपुर जिले में तरारी से कोईवर तक करीब 40 किलोमीटर क्षेत्र में सोन का किनारा लगता है। इसके तटीय क्षेत्र में लगभग सात लाख की आबादी गुजर-बसर करती है। कभी इनके लिए सोन ही जीवन-रेखा था। अ
ब लोग यहां स्नान करने जाने से भी डरते हैं। पर्व-त्यौहारों पर परंपराओं का निर्वहन करने जाना मजबूरी होती है। तटीय क्षेत्र इतना खूबसूरत है कि पास जाने पर इसे स्पर्श किए बिना मन नहीं मानता।
हो चुके कई हादसे
शनिवार को एक ही परिवार की पांच लड़कियों के डूबने की घटना कोई इकलौती नहीं है। कुछ महीने पहले अजीमाबाद थाना क्षेत्र के नूरपुर गांव के चार बच्चे सोन के किनारे खेलने गए और इसी दौरान पानी में उतरने पर अवैध खनन से बने कुएं में चले गए। चारों बच्चों की मौत हो गई थी। तब लोगों ने सड़क जाम कर सोन में मशीन से अवैध खनन बंद करने की मांग की थी, लेकिन खनन के तौर-तरीकों में कोई बदलाव नहीं हुआ।
क्या कहते हैं ग्रामीण
सोन के किनारे किरकिरी गांव के निवासी सामाजिक कार्यकर्ता सुरेन्द्र सिंह कहते हैं कि पहले बीच नदी में खनन होता था, तब लोग निश्चिंत भाव से किनारे में स्नान और पूजा परंपराओं का निर्वहन कर लेते थे। अभी बारिश के कारण किनारे तक पानी भरा हुआ है और इसमें पता नहीं चलता कि कहां कुआं है और कहां खाई, उसी में डूबने की घटनाएं होती हैं।
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