Bihar Bullet Train: बिहार में बुलेट ट्रेन की राह आसान नहीं! इन जिलों के लोगों को जमीन जाने का सता रहा डर
किसानों का मानना है कि सरकार भले ही कुछ मुआवजा देगी लेकिन मुआवजे की राशि से घर नहीं बन सकेगा। बाजार दर से मुआवजा मिले तो घाव पर महरम का काम करें। कृषि आधारित भूमि का अधिग्रहण उचित नहीं है। स्ट्रक्चरल व सोशियो सर्वे कर रहे एजेंसी के रमेश कुमार यादव ने बताया कि किसान सहमति देने में आनाकानी कर रहे हैं।
संवाद सूत्र, उदवंतनगर (भोजपुर)। Bullet Train In Bihar बुलेट ट्रेन देश का ड्रीम प्रोजेक्ट है। प्रस्तावित वाराणसी-हावड़ा बुलेट ट्रेन परियोजना के रूट में भोजपुर और बक्सर में पड़ने वाले हिस्से का धरातल पर नेशनल हाई स्पीड रेल कारपोरेशन लिमिटेड की एजेंसी के द्वारा सर्वे किया जा रहा है। इसी क्रम में उदवंतनगर में सर्वे करने पहुंचे कर्मियों को ग्रामीणों से मिलीजुली प्रतिक्रिया मिली।
कोई इसे विकास का पैमाना मान रहा है, तो किसी को इसमें अपनी जमीन जाने का डर सता रहा है। सबसे व्यथित किसान हैं, जिनकी पुश्तैनी जमीन और मकान इस रूट में अधिग्रहित की जाएगी। बुलेट ट्रेन के दायरे में आ रहे गड़हा गांव के दर्जनों लोगों के मकान धराशाई होंगे।
दरअसल, उदवंतनगर रेल, रोड और बुलेट ट्रेन का हब बनने जा रहा है। आरा रिंग रोड में असनी से उदवंतनगर फोरलेन तथा आरा सासाराम फोरलेन के लिए जमीन के अधिग्रहण की प्रक्रिया पहले से शुरू है। वहीं, अब बुलेट ट्रेन को लेकर भी इसी रूट से कवायद हो रही है।
किसानों का मानना है कि सरकार भले ही कुछ मुआवजा देगी, लेकिन मुआवजे की राशि से घर नहीं बन सकेगा। बाजार दर से मुआवजा मिले तो घाव पर महरम का काम करें। कृषि आधारित भूमि का अधिग्रहण उचित नहीं है। स्ट्रक्चरल व सोशियो सर्वे कर रहे एजेंसी के रमेश कुमार यादव ने बताया कि किसान सहमति देने में आनाकानी कर रहे हैं।
क्या कहते हैं ग्रामीण?
हम लोग विकास के विरोधी नहीं हैं, लेकिन घर उजाड़कर विकास करना कैसा न्याय है। अगर ट्रेन रूट को 200 मीटर इधर-उधर कर दिया जाए तो एक भी घर नहीं टूटेगा। हम लोग सरकार से गुहार लगाएंगे। न्याय नहीं मिला तो आंदोलन को बाध्य होंगे। - सिराज सिंह, ग्रामीण
गड़हा गांव में लघु व सीमांत किसान हैं। किसी किसी किसान की पूरी जमीन बुलेट ट्रेन परियोजना में जा रही है। अगर जमीन ही चली जाएगी तो हम बुलेट ट्रेन का क्या करेंगे? - राज कुमार सिंह, किसान
एक-एक तिनका जोड़ कर घर बनाया था व जमीन खरीदी थी। परियोजना ऐसी हो कि हमलोग बेसहारा नहीं हों और हमारा घर बचा रहे। - बदन साह, ग्रामीण
घर उजाड़कर विकास करना न्यायोचित नहीं है। विकल्प उपलब्ध है। मात्र दो सौ मीटर हटाकर बनाने से घर टूटने से बच जाते, यह एजेंसी को बताया भी गया है। - हरेंद्र सिंह, मुखिया प्रतिनिधि, सोनपुरा पंचायत
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