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ब्रह्मेश्वर मुखिया हत्याकांड: 11 साल पुराने मामले में अचानक बढ़ी हलचल, CBI की चार्जशीट ने कई लोगों में पैदा किया डर

जांच से पता चला है कि ब्रह्मेश्वर मुखिया रणवीर सेना के प्रमुख थे और 1990 के दशक में वे कथित तौर पर सामूहिक हत्या के मामलों में अगस्त 2002 से जेल में थे। 2011 में जेल से बाहर आने के बाद उन्होंने किसान-मजदूरों को एकजुट करना शुरू कर दिया था। आरोप है कि सक्रियता बढ़ने के बाद प्रतिद्वंदी के आंखों की किरकिरी बनने लगे। इसके बाद षड्यंत्र रचा गया।

By Deepak Singh Edited By: Rajat Mourya Updated: Fri, 22 Dec 2023 02:38 PM (IST)
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11 साल पुराने मामले में अचानक बढ़ी हलचल, CBI की चार्जशीट ने कई लोगों में पैदा किया डर
जागरण संवाददाता, आरा। रणवीर सेना सुप्रीमो ब्रह्मेश्वर मुखिया हत्याकांड को लेकर सीबीआई द्वारा कोर्ट में दायर चार्जशीट में आरोपित बनाए गए नामजद रसूखदार आरोपित राजधानी पटना से लेकर दिल्ली तक की दौड़ लगाना शुरू कर दिए हैं। कुछ लोग सीबीआई के आरोप-पत्र को चुनौती देने के लिए कोर्ट में जाने की भी तैयारी कर रहे है। उन्हें यह समझ में नहीं आ रहा कि सीबीआई ने किस साक्ष्य को दर्शाते हुए उन्हें आरोपित किया है।

दरअसल, अभी तक कोर्ट में डायरी भी समर्पित नहीं किए जाने की बात सामने आ रही है। इस कांड में कुल आठ लोगों के विरुद्ध चार्जशीट दायर किया गया है। इसमें उसमें पूर्व एमएलसी हुलास पांडेय के अलावा अभय पांडेय, नंद गोपाल पांडेय उर्फ फौजी, रीतेश कुमार उर्फ मोनू, अमितेश कुमार पांडेय उर्फ गुड्डू पांडे, प्रिंस पांडेय, बालेश्वर पांडेय और मनोज राय उर्फ मनोज पांडेय का नाम शामिल है। मुखिया पुत्र से लेकर ठेकेदार तक है।

इनमें नंदगोपाल पांडेय उर्फ फौजी, प्रिंस पांडेय अभय पांडेय एवं रितेश उर्फ मोनू के नाम राज्य पुलिस के आरोप-पत्र में भी थे जो पूर्व में कोर्ट से जमानत छूटे थे। जबकि, हुलास पांडेय, अमितेश पांडेय उर्फ गुड्डू , बालेश्वर राय एवं मनोज राय इस मामले में जमानत पर नहीं है। ऐसे में अदालत में उपस्थित होने को लेकर समन या नोटिस कभी भी जारी हो सकता है। केस में अगली सुनवाई तीन जनवरी को है। सभी की निगाहें अगली तिथि पर ही टिकी हुई है।

CBI की जांच में क्या आया सामने?

इधर, सीबीआई ने आरोप-पत्र में जिक्र किया है कि जांच से पता चला है कि ब्रह्मेश्वर नाथ सिंह उर्फ ब्रह्मेश्वर मुखिया रणवीर सेना के प्रमुख थे और 1990 के दशक के दौरान वे कथित तौर पर सामूहिक हत्या के मामलों में अगस्त 2002 से जेल में थे। जुलाई 2011 में जेल से बाहर आने के बाद उन्होंने किसान और मजदूरों को एकजुट करना शुरू कर दिया था और उन्हें एक छत के नीचे लाते हुए एक राष्ट्रवादी किसान संगठन का गठन किया था।

आरोप है कि सक्रियता बढ़ने के बाद प्रतिद्वंदी के आंखों की किरकिरी बनने लगे। इसके बाद षड्यंत्र रचा गया। एक जून 2012 की सुबह बजे जब वे कतीरा आवास के पास टहल रहे थे तभी शरीर में छह गोलियां दाग कर उनकी हत्या कर दी गई थी। पुत्र इंदु भूषण ने आरा के नवादा थाना में नामजद प्राथमिकी कराई थी।

कोर्ट कभी भी कर सकता है डायरी की मांग

इस चर्चित केस में यह बात निकलकर सामने आ रही कि सीबीआई ने आरोप-पत्र तो दाखिल कर दिया है, लेकिन आरोप-पत्र के साथ डायरी समर्पित नहीं है। कानून के जानकारों के अनुसार, आरोपितों को प्रमाणित कापी उपलब्ध कराए जाते है। लेकिन डायरी समर्पित नहीं होने से यह पता नहीं चल पा रहा कि किस आरोपित पर किस साक्ष्य के साथ आरोप-पत्र दायर किया गया है। संभावना जतायी जा रही कि आगे की कार्रवाई से पहले सीबीआई के अनुसंधानकर्ता से डायरी की मांग की जा सकती है।

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