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Bihar Good News: दलहन के बाद अब पीली क्रांति का ध्वजवाहक बनेगा भोजपुर, मिशन में जुटा कृषि विज्ञान केंद्र

बिहार का भोजपुर जिला राज्या में दलहन के बाद अब पीली क्रांति का भी हब बनेगा। KVK किसानों की सहभागिता से इसे साकार करने वाला है। अभी जिले में दलहन का बीज उत्पादन होता है। KVK की ओर से बड़हरा बिहिया और आरा प्रखंड के 50 एकड़ में सरसो बीज की खेती की जाएगी। 70 किसानों को कृषि विज्ञान केंद्र में प्रशिक्षण दिया जाएगा।

By rana amresh singhEdited By: Mohit TripathiUpdated: Sun, 24 Sep 2023 06:33 PM (IST)
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दलहन के बाद अब पीली क्रांति का ध्वजवाहक बनेगा भोजपुर। जागरण
जागरण संवाददाता, आरा: दलहन के बाद भोजपुर जिला अब राज्य में पीली क्रांति का इकलौता हब बनेगा। कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) किसानों की सहभागिता से इसे सकार करेगा। अभी जिले में दलहन के बीज उत्पादन होता है। केवीके की ओर से बड़हरा, बिहिया और आरा प्रखंड के 50 एकड़ में सरसो बीज की खेती की जाएगी।

इसके लिए कृषि विज्ञान केंद्र  में 70 किसानों को प्रशिक्षण दिया जाएगा। इसके पहले उन किसानों से अक्टूबर में खेती के लिए समझौता होगा। केवीके की ओर से किसानों को बीज दिया जाएगा और समय-समय पर फसल की निगरानी की जाएगी। उन्हें बीज की गुणवत्ता वाली नई प्रजाति दी जाएगी।

कृषि विज्ञान केंद्र के निदेशक सह वरीष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ. पीके द्विवेदी ने बताया कि पहले से ही जिले में दलहन बीज का उत्पादन हो रहा है। इस साल से सरसों बीज का भी उत्पादन होगा। इसका निर्णय भागलपुर में बिहार कृषि विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित बीज उत्पादन एवं फसल कार्यक्रम में लिया गया।

उन्होंने बताया कि जिले के कई प्रखंडों की मिट्टी और जलवायु इसके अनुकूल है। तैयार गुणवत्ता वाले बीज को न्यूनतम समर्थन मूल्य से 10 प्रतिशत अधिक कीमत पर किसानों से कृषि विज्ञान केंद्र खरीदेगा।

पायलट योजना के तहत हुई थी सरसों की खेती

गत वर्ष 2022-23 में भी पायलट योजना के तहत सकड्डी कृषि केंद्र में सरसों के आरएस-725 किस्म बीज का उत्पादन किया गया था।

डॉ. द्विवेदी ने बताया कि डेढ़ एकड़ में 10.4 क्विंटल गुणवत्ता वाला सरसों पैदा हुआ था। यह एक अच्छी दर है। सरसों रबी की प्रमुख तिलहनी फसल है। क्योंकि कम सिंचाई और लागत में यह तैयार होती है।

गेहूं व अन्य कई रबी फसलों से अधिक कीमत पर बेची जाती है। इसकी खेती मिश्रित रूप और बहुफसलीय फसल चक्र के रूप में की जा सकती है।

बड़हरा, बिहिया और आरा प्रखंड में होगी खेती

सरसों की फसल बिहार के जलवायु के अनुकूल है। खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी सर्वाधिक उपयुक्त होती है। मिट्टी का पीएच मान 7-8 के बीच हल्की क्षारीय होती है।

इस तरह की मिट्टी बड़हरा बिहिया और आरा प्रखंडों में है। यहां की मिट्टी भुरभुरी है। धान अथवा मकई की फसल की कटाई के बाद एक गहरी जुताई करनी चाहिए, ताकि मिट्टी भुरभुरा बन जाये। बीज बोने के लिए डेढ़ किग्रा सरसों डालना चाहिए।

खेत की तैयारी करते समय एक-एक किलोग्राम पोटास, डीएपी और सौ ग्राम सल्फर का छिड़काव करना चाहिये। बुवाई के 25 और 50 दिनों के बाद यूरिया खाद प्रति बीघा 750 ग्राम का छिड़काव करना चाहिये।

सरसों बुवाई का समय समय पर बुवाई करना खेती में सफलता की पहली सीढ़ी होती है। सरसों की बुवाई अक्टूबर के पहले सप्ताह से माह के अंत तक कर देना चाहिए।

किसान इसे स्ट्रीप यानी पट्टी वाला तरीके से बुवाई कर सकते हैं। मतलब है कि खेत में दो चौड़े दो धार के बाद बीच में सरसों की खेती हो सकती है। इससे फसल को काटने और दवा छिड़काव करने में सुविधा मिलेगी।

तीन प्रखंडों में दलहन के बीज का उत्पादन

जिले में पिछले कई वर्षो से दलहन बीज मसूर और चना बीज का उत्पादन होता है। इसे तरारी, जगदीशपुर और आरा प्रखंड के 80 एकड़ में बुवाई की जाती है।

260 किसानों की सहभागिता से इसकी खेती होती है। विगत साल में मसूर की कीमत 5500 रुपये के बदले किसानों से 7300 रुपये प्रति क्विंटल खरीदी गई थी।

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