डिजिटल युग में छूट रही पन्ने पर लिखने की आदत, की-बोर्ड पर थिरकती उंगलियों से छूट रहे कलम, पर पूजा में आस्था बरकरार
Bihar News एक जमाने ऐसा था कि हम पढ़ाई-लिखाई से लेकर लेखा-जोखा तक में पेपर और पेन का इस्तेमाल करते थे लेकिन डिजिटल युग ने यह आदत बदल दी है। कापी-किताबों की जगह कंप्यूटर और मोबाइल स्क्रीन ने ले ली है। अक्षर कलम की जगह की-पैड से लिखे जाने लगे हैं। कलम और दवात से शुरू परंपरा आज लीड व प्वाइंटर वाले पेन तक पहुंच गई है।
By Kanchan KishoreEdited By: Aysha SheikhUpdated: Tue, 14 Nov 2023 11:54 AM (IST)
कंचन किशोर, आरा। पकड़ी के रहने वाले राजकुमार प्रसाद एक एफएमसीजी कंपनी चलाते हैं और उनका दैनिक कामकाज कंप्यूटर या मोबाइल पर होता है। इससे लिखने की आदत छूट गई और कभी जरूरत पड़ने पर बैंक में दो-तीन बार के प्रयास के बाद ही बड़ी मुश्किल से उनके हस्ताक्षर का मिलान हो पाता है।
डिजीटल और आनलाइन युग में पढ़ाई के लिए कापी-किताबों की जगह कंप्यूटर और मोबाइल स्क्रीन ने ले ली है। अक्षर कलम की जगह की-पैड से लिखे जाने लगे, परीक्षाएं आनलाइन होने लगीं और कागज के पन्ने एवं कलम से नाता छूटने लगा।
अभी रूटीन कोर्स की परंपरागत परीक्षाएं कागज-कलम से ही ली जा रहीं हैं, इसलिए बच्चे लिखावट पर ध्यान दे रहे हैं, लेकिन एक बार स्कूल-कालेज छूटने के बाद इसकी भी जरूरत कम पड़ रही है औैर लिखने की आदत छूट जा रही है।
हालांकि, बदलाव के इस दौर में भी मृत्युलोक वासियों का लेखा-जोखा रखने वाले कलम-दवात के आराध्य देव भगवान चित्रगुप्त की पूजा में आज भी कलम दवात की बिक्री खूब होती है।
पूजा में ही काम आती है दवात
एक समय था जब दवात की स्याही में कलम डुबोकर लिखने की परंपरा थी। तब दुकानदार को अपना लेखा-जोखा रखना होता था या बच्चों को अपनी पढ़ाई करनी होती थी, उसी का उपयोग होता था। अब तो दवात की अहमियत केवल पूजा तक ही सिमट कर रह गई है।अब वह दिन कहां जब बच्चे दवात में कलम डुबोकर कापियों को अपनी लेखनी से भरा करते थे। वीर कुंवर सिंह विश्विद्यालय में हिंदी के प्रोफेसर नीरज सिंह कहते हैं कि मोबाइल और कंप्यूटर पर लिखने की आदत के कारण छात्र-छात्राओं का अक्षर बहुत खराब हो गया है।
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