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Sunil Pandey: सुनील पांडेय के सियासी रसूख से NDA को मिलेगी ताकत, 4 लोकसभा सीटों पर एक साथ निशाना

Bihar Politics बिहार में एनडीए की ताकत बढ़ाने के लिए सुनील पांडेय को भाजपा में शामिल कराने की सोची समझी रणनीति थी। इस रणनीति के तहत भाजपा 4 सीटों को साधना चाहती है। आरा के साथ सासाराम काराकाट और बक्सर में हार एनडीए के लिए किसी झटके से कम नहीं रही। आरा में आरके सिंह की हार से गठबंधन के समन्वय पर सवाल खड़े हुए और कार्यकर्ताओं का मनोबल भी गिरा।

By Kanchan Kishore Edited By: Sanjeev Kumar Updated: Wed, 21 Aug 2024 02:58 PM (IST)
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सुनील पांडेय बिहार में एनडीए की नैया लगाएंगे पार (जागरण)
जागरण संवाददाता, जागरण। Bihar Politics News: लोकसभा चुनाव में शाहाबाद से सूपड़ा साफ होने के बाद राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में जो आपसी समझ दिख रही है, वह लोकसभा चुनाव के समय देखने को नहीं मिली थी। आरा के साथ सासाराम, काराकाट और बक्सर में हार एनडीए के लिए किसी झटके से कम नहीं रही। खासतौर पर आरा में आरके सिंह की हार से गठबंधन के समन्वय पर सवाल खड़े हुए और कार्यकर्ताओं का मनोबल भी गिरा।

बाहुबली के रूप में जाने जाते हैं सुनील पांडेय

अब उप चुनाव में एनडीए हर हाल में जीत हासिल कर शाहाबाद में न सिर्फ अपनी ताकत दिखाना चाहता है, बल्कि कार्यकर्ताओं में भी जोश भरना चाहता है। बाहुबली सुनील पांडेय का पुत्र के साथ भाजपा में शामिल होना इसी रूप में देखा जा रहा है। पूर्व विधायक पांडेय चार बार क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं।

तरारी से विधायक रहे भाकपा माले के सुदामा प्रसाद के आरा से सांसद चुने जाने के बाद यह सीट खाली हुई है। आरा की जीत तुक्का साबित न हो, इसके लिए उपचुनाव में भाकपा माले पूरी ताकत झोंकने की तैयारी कर रहा है। आईएनडीआईए के घटक दल चुनावी रणनीति के लिए कई बैठक कर चुके हैं और उम्मीदवार के चयन पर मंथन हो रहा है। वहीं, भाजपा को मजबूत चेहरे की तलाश थी।

सुनील पांडेय के पुत्र को शामिल करना भी BJP की रणनीति

पूर्व विधायक सुनील पांडेय को उनके पुत्र विशाल प्रशांत के साथ पार्टी में शामिल कर भाजपा ने बड़ा संदेश दे दिया है। भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि पूर्व विधायक के साथ पुत्र को शामिल कराना रणनीति का हिस्सा है। एक समय जब अधिकांश बाहुबली राष्ट्रीय जनता दल की ताकत होते थे, तब समता पार्टी का दामन थाम सुनील पांडेय ने अलग राह चुनी। 2000 के विधानसभा चुनाव में पीरो से पहली बार विधायक चुने गए।

साल 2005 के दोनों चुनावों एवं 2010 के चुनाव में भी जीत हासिल की। 2015 में लोक जनशक्ति पार्टी में शामिल हुए, लेकिन चुनाव में टिकट नहीं मिलने पर पत्नी गीता देवी को निर्दलीय मैदान में उतारा। तब समीकरण के गणित में केवल 272 मतों से पिछड़ गए। 2020 के चुनाव में क्षेत्र से खुद निर्दलीय मैदान में उतरे और साढ़े 11 हजार मतों से पिछड़कर दूसरे स्थान पर रहे। भाजपा के कौशल विद्यार्थी को 13 हजार आठ सौ मत मिले और वे तीसरे स्थान पर रहे।

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