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तंत्र के गण: नेपाल-बांग्लादेश के लोगों की आरा के हैंडपंप से बुझती है प्यास, बिहार से यूपी तक होती है सप्लाई

विदेश के साथ यूपी और बिहार के कई जिलों में यहां बने हैंडपंप की सप्लाई होती है। इसके माध्यम से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से करीब 100 लोगों को रोजगार मिलता है। हैंडपंप बनाने का यह एकमात्र कारखाना कोईलवर के धनडिहा में है।

By dharmendra kumar singhEdited By: Yogesh SahuUpdated: Sat, 21 Jan 2023 06:30 PM (IST)
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नेपाल-बांग्लादेश के लोगों की आरा के हैंडपंप से बुझती है प्यास, बिहार से यूपी तक होती है सप्लाई
धर्मेंद्र कुमार सिंह, आरा। नेपाल और बांग्लादेश में आरा के बने हैंडपंप (चापाकल) से लोगों की प्यास बुझती है। साथ ही देश के अंदर यूपी के वाराणसी के अलावा राज्य के पटना, सारण, बक्सर और सीतामढ़ी में भी इसकी सप्लाई होती है। हैंडपंप बनाकर इसे देश-विदेश और राज्य के कई जिलों में भेजने का कार्य जिले में एकमात्र कोईलवर के धनडिहा में चल रहे कारखाना सुबोध कास्ट एंड फेब्रीकेटर कंपनी के द्वारा किया जाता है।

यह कार्य एक-दो साल से नहीं, बल्कि वर्ष 2017 से अनवरत चल रहा है। यहां 30 कुशल कारीगरों के अलावा एक सौ से ज्यादा कारीगरों और मजदूरों की मदद से एक माह में 30 टन से ज्यादा लोहे को पिघलाकर पानी पीने वाला हैंडपंप का पूरा सेट बनाया जाता है।

डिमांड बढ़ने पर मजदूरों की संख्या बढ़ाकर 30 टन से ज्यादा माल भी तैयार किया जाता है। सबसे पहले जिले में आपूर्ति करने के बाद अन्य स्थानों पर भेजा जाता है। बेहतर क्वालिटी का हैंडपंप होने के कारण नेपाल और बांग्लादेश से महीने में एक से दो बार सप्लाई का आर्डर मिल जाता है।

बंगाल और झारखंड से मंगाया जाता है, कच्चा माल

इस कारखाने में हैंडपंप बनाने के लिए पश्चिम बंगाल के कोलकाता, झारखंड के धनबाद, रांची, टाटा और बिहार के पटना से कच्चा माल मंगाया जाता है। कच्चे माल में सबसे ज्यादा एस्क्रेप, बूंदा, कच्चा लोहा, कोयला, पिग आयरन, रबर पेंट समेत कई समान होते हैं। जो इन स्थानों पर सस्ता और उच्च क्वालिटी के मिलते हैं, इस कारण इसे बाहर से मंगाया जाता है। लगभग 400 डिग्री पर गर्म कर कच्चा लोहा और बूंदा को गलाकर सांचे में ढाल कर हैंडपंप को तैयार किया जाता है। इस कठिन कार्य को करने के लिए पटना से स्पेशल मिस्त्री बुलाए गए हैं।

महज दो वर्ष में ऋण के लौट आए थे 25 लाख रुपये

कारखाना संचालक अभय कुमार जैन और इनके पुत्र विभोर जैन ने बताया कि कारखाना बनाने में लगभग दो करोड़ रुपये की लागत आई थी। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी स्वरोजगार योजना के तहत शुरू में 25 लाख रुपये का लोन लिया था, जिसे दो वर्ष में ही चुकता कर दिया। विदेशों में ज्यादा माल जाने से कंपनी को ज्यादा फायदा होने के साथ अनुबंध वाले मजदूरों को भी ज्यादा रोजगार मिलता है। कोरोना काल में भी यह कारखाना चलता रहा, जिस कारण रोजगार का संकट उस समय भी नहीं हुआ था।

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