Buxar News: अब बिहार में घट जाएगी ट्रेनों में भीड़, भारतीय रेल उठाना जा रहा बड़ा कदम; झाझा तक होने जा रहा काम
दीन दयाल उपाध्याय जंक्शन से पटना के रास्ते तक झाझा तक तीसरी और चौथी रेल लाइन बिछाने की योजना पर काम जल्द शुरू हो जाएगा। यह योजना इस इलाके में एक नए युग का सूत्रपात करेगी। इस काम के बाद बिहार की ट्रेनों में भीड़ घटेगी और यात्रा आरामदेह हो सकेगी। बता दें कि पटना से डीडीयू तक दोहरी रेल लाइन का निर्माण 1870 में ही पूरा हो गया था।
शुभ नारायण पाठक, बक्सर। Buxar News: दीन दयाल उपाध्याय जंक्शन (पुराना नाम मुगलसराय) से पटना के रास्ते तक झाझा तक तीसरी और चौथी रेल लाइन बिछाने की योजना पर काम जल्द शुरू होने की उम्मीद है। यह योजना इस इलाके में एक नए युग का सूत्रपात करेगी।
भारतीय रेलवे के इसी अति व्यस्त रेलखंड को दो लाइन से बढ़ाकर चार लाइन करने से नई ट्रेनों को चलाने का मार्ग प्रशस्त होगा। इससे बिहार की ट्रेनों में भीड़ घटेगी और यात्रा आरामदेह हो सकेगी। शाहाबाद गजेटियर के मुताबिक वर्ष 1870 तक पटना से डीडीयू के बीच रेलवे लाइन के दोहरीकरण का कार्य पूरा हो गया था।
इस प्रकार बीते 154 साल से अप और डाउन की एक-एक लाइन के सहारे इस मार्ग पर ट्रेनों का परिचालन हो रहा है। वर्ष 1943 की रेलवे समयसारिणी बताती है कि तब इस रेलखंड से लंबी दूरी की केवल चार यात्री ट्रेनें ही गुजरा करती थीं। यह संख्या अब बढ़कर 130 जोड़ी के करीब पहुंच गई है।
त्योहारों के समय स्पेशल ट्रेनों की संख्या और बढ़ जाती है। वर्ष 2024-25 के केंद्रीय बजट में डीडीयू-झाझा के बीच करीब 383 किलोमीटर लंबी तीसरी-चौथी लाइन की स्थापना के लिए करीब 17 हजार करोड़ रुपए का प्रविधान किया गया है।
1855 में शुरू हुआ था रेल लाइन का निर्माण
पटना से डीडीयू तक दोहरी रेल लाइन का निर्माण वर्ष 1870 में ही पूरा हो गया था। इस इलाके में रेल लाइन का निर्माण 1855 में शुरू हुआ। यह कार्य गति पकड़ता, तब तक पहला स्वतंत्रता आंदोलन शुरू हो गया। यह आंदोलन शांत होने के बाद काम में तेजी आई और 1862 में इकहरी रेल लाइन यातायात के लिए खोल दी गई।सबसे पुराना रेल पुल, जो चालू है
डीडीयू-झाझा रेलखंड पर ही भोजपुर जिले के कोईलवर के पास सोन नदी पर इस इलाके का पहला बड़ा रेल पुल बना था। इसका निर्माण 1862 में पूरा हुआ। यह देश में सबसे पुराना और चालू रेलवे पुल है, हालांकि इस पुल से सड़क यातायात भी होता है। जब यह बना, तब पांच से 10 कोच की छोटी ट्रेनें चला करती थीं, जिनकी गति भी आज के मुकाबले आधी थी।
आज इस पुल से 24 कोच की सुपरफास्ट ट्रेनें धड़धड़ाते हुए गुजर जाती हैं। यह पुल ब्रिटिश काल में हुए निर्माण में गुणवत्ता की कहानी बयान करता है। इस पुल को बनाने की योजना 1851 में आई और इसका काम 1856 में शुरू हुआ। करीब 1.44 किलोमीटर लंबा यह दो लेन रेलवे ट्रैक और रोड वाला पुल वर्ष 1900 तक भारतीय उपमहाद्वीप में सबसे बड़ा पुल था।
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