डॉ. सच्चिदानंद ने खुद को बताया था बिहारी, तब उनके हस्ताक्षर के लिए संविधान की मूल प्रति को विशेष विमान से लाया गया था पटना
Bihar News जब डा. सच्चिदानंद सिन्हा से 1893 में पूछा गया था कि वह कौन हैं तो उन्होंने खुद को बिहारी बताया था। वह संविधान बनाने वाली समिति के पहले कार्यकारी अध्यक्ष थे। जब संविधान की मूल प्रति तैयार हुई तब वे पटना में गंभीर बीमार पड़ गए। ऐसे में उनके हस्ताक्षर के लिए संविधान की मूल प्रति विशेष विमान से पटना उनके आवास पर लाई गई थी।
रंजीत कुमार पांडेय, डुमरांव (बक्सर)। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का संविधान बनाने वाली समिति के पहले कार्यकारी अध्यक्ष बक्सर (तब के शाहाबाद) जिले के डुमरांव अनुमंडल अंतर्गत मुरार गांव में 10 नवंबर 1871 को जन्मे डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा बने थे।
वे अपनी भूमिका में पूरी तरह खरे उतरे, लेकिन दुर्भाग्य से जब संविधान की मूल प्रति तैयार हुई, तब वे पटना में गंभीर बीमार पड़ गए। उस समय उनके हस्ताक्षर के लिए संविधान की मूल प्रति विशेष विमान से पटना उनके आवास पर लाई गई।
14 फरवरी 1950 को उन्होंने भारतीय संविधान के दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए। डा. सिन्हा ने भारतीय संविधान सभा के प्रथम सत्र की अध्यक्षता भी की। मुरार गांव के बख्शी दिनेश कुमार सिंह ने यह जानकारी दी।
आधुनिक बिहार के निर्माता हैं डा. सच्चिदानंद सिन्हा
बात 1893 की है, जब डा. सच्चिदानंद सिन्हा इंग्लैंड में वकालत की पढ़ाई पूरी कर वतन लौट रहे थे। जहाज में एक सहयात्री ने उनसे परिचय पूछा। उन्होंने अपना नाम बताते हुए खुद को बिहारी बताया।
सहयात्री ने तपाक से सवाल जड़ दिया कौन सा बिहार? यही एक सवाल था, जिसके बाद उन्होंने अलग बिहार गढ़ने का निश्चय किया और नवजागरण का शंखनाद किया।
अंतत: 12 दिसम्बर 1911 को ब्रिटिश सरकार ने बिहार और ओड़िशा के लिए एक लेफ्टिनेंट गवर्नर इन काउंसिल की घोषणा कर दी। यह डा. सिन्हा और उनके सहयोगियों की बड़ी जीत थी। उनका बिहार के नवजागरण में वही स्थान माना जाता है, जो बंगाल में राजा राममोहन राय का।
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