Durga Pooja 2023: रेल पर सवार होकर बिहार तक पहुंची दुर्गा पूजा की परंपरा, ऐसे हुई शुरूआत
शारदीय नवरात्र की शुरुआत हो चुकी है। यह हिंदुओं के बड़े उत्सवों में से एक है और पूरे देश के साथ विदेश में भी मनाया जाता है लेकिन बंगाल असम बिहार-झारखंड में इस त्योहार का अंदाज अलग है। इन राज्यों में देवी की ऊंची प्रतिमाएं और विशाल पंडाल स्थापित किए जाते हैं। जैसे ही आप बिहार से पश्चिम होते हैं मध्य प्रदेश उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में ऐसा नहीं दिखता।
By Shubh Narayan PathakEdited By: Prateek JainUpdated: Tue, 17 Oct 2023 11:55 PM (IST)
शुभ नारायण पाठक, बक्सर: शारदीय नवरात्र की शुरुआत हो चुकी है। यह हिंदुओं के बड़े उत्सवों में से एक है और पूरे देश के साथ विदेश में भी मनाया जाता है, लेकिन बंगाल, असम, बिहार-झारखंड में इस त्योहार का अंदाज अलग है।
इन राज्यों में देवी की ऊंची प्रतिमाएं और विशाल पंडाल स्थापित किए जाते हैं। जैसे ही आप बिहार से पश्चिम होते हैं, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में ऐसा नहीं दिखता। दस्तावेज बताते हैं कि दुर्गा पूजा के मेले, पंडाल और मूर्तियों की परंपरा बंगाल (अब के बांग्लादेश सहित) से ही फैली और इसमें सबसे बड़ा रोल रहा रेलवे का।
बिहार और झारखंड के तमाम बड़े शहर बक्सर, आरा, पटना, गया, बेगूसराय, गया, धनबाद, बोकारो, रांची आदि जगहों पर दुर्गा पूजा की शुरुआत या तो किसी रेलवे कॉलोनी से हुई या बंगाली टोले से।
इतिहास अध्ययन और शोध में रुचि रखने वाले लक्ष्मीकांत मुकुल बताते हैं कि बुकानन की डायरी और पहला शाहाबाद गजेटियर भी इस बात की तस्दीक करता है कि शाहाबाद में पहले दुर्गा पूजा का स्वरूप ऐसा नहीं था, जो आज है।
हालांकि, वह यह भी जोड़ते हैं कि शाहाबाद के हर गांव और टोले में मां काली का मंदिर है। आजकल देश के दूसरे हिस्सों में भी दुर्गा पूजा के बड़े पंडाल और मूर्तियां बनने लगी हैं। यह परंपरा पहले बंगाल से बिहार में आई और अब बिहारियों के माध्यम से पूरे देश में फैल रही है।
वह कहते हैं कि बिहार के लोगों का बंगाल से पुराना सांस्कृतिक, सामाजिक और व्यावसायिक जुड़ाव रहा है। यहां के लोग बड़ी तादाद में नौकरी और व्यवसाय के लिए बंगाल जाते रहे हैं। इसका भी असर दुर्गा पूजा पर है।
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