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इजरायली केले... ताईवानी पपीते, बिहार के इस किसान ने ढाई गुना तक बढ़ाई इनकम; कलेक्‍टर ने भी की तारीफ

Buxar News बक्‍सर जिले के डुमरांव में रहने वाले किसान अभय रंजन ने परंंपरागत खेती छोड़ इजरायली केले और ताईवानी पपीते की खेती करने का फैसला लिया और उनकी जिंदगी पूरी तरह से बदल गई। अभय ने बताया कि शुरूआत में थोड़ी परेशानी हुई ले‍किन बाद में उनकी इनकम में बढ़ोतरी हो गई। साथ ही वे जिस सिंचाई प्रणाली का उपयोग कर रहे हैं उसमें पानी भी कम लगता है।

By Ranjit Kumar Pandey Edited By: Prateek Jain Published: Sun, 23 Jun 2024 05:21 PM (IST)Updated: Sun, 23 Jun 2024 05:21 PM (IST)
डुमरांव स्थित अपने फार्म में ताइवान भेराईटी के रेड लेडी पपीता की खेती दिखाते किसान अभय।

रंजीत कुमार पांडेय, डुमरांव (बक्सर)। खेती को नुकसान का सौदा बताने वाले किसानों के लिए डुमरांव के प्रगतिशील किसान प्रेरणा के स्‍त्रोत बन गए हैं। अपनी देसी जमीन पर जब इजराइल का केला और ताईवान का पपीता उपजाकर नया रास्ता दिखा रहे हैं।

तकरीबन पांच-छह एकड़ जमीन पर लहलहाते केला की खेती देखने लायक है। परंपरागत खेती को जिंदगी का आधार बनाने वाले लोगों का यहां आकर नजरिया बदल जाता है।

कृषि कार्य को अपना करियर बनाकर खेती की नई इबारत लिखने वाले किसान अभय रंजन बताते हैं कि सात-आठ एकड़ जमीन पर पारंपरिक खेती छाेड़कर उन्होंने विदेशी फलों की खेती शुरू की।

इसके लिए महाराष्ट्र से टिशू कल्चर का जी-9 केले और ताइवान के रेड लेडी पपीता के पौधे मंगाए। शुरुआत में थोड़ी परेशानी हुई, लेकिन पहली फसल से ही लागत छोड़कर दो-ढाई गुना कमाई हुई। इसके बाद परिवार के लोग भी उनके साथ आ गए।

खेत का कोई भाग नहीं छोड़ते खाली

किसान अभय का प्रबंधन गजब का है। उन्होंने अपने सात एकड़ से अधिक बड़े फार्म को आवारा पशुओं से बचाने के लिए कंटीले तारों से तारबंदी की है।

पपीता की खेत में पौधों की दो लाइनों के बीच ढाई से तीन फुट का फासला होता है और जगह ऐसे ही खाली पड़ी रहती थी। अब इसमें भी उन्होंने बेहतर प्रजाति के करैला की पौधा लगाने की तैयारी कर रहे हैं।

प्रति एकड़ खेती में डेढ़ लाख तक आता है खर्च

खाद, कीटनाशक एवं कम पानी में बेहतर उत्पादन होने वाले ताइवान भेराइटी के पपीता और इजराइल का टिश्यू कल्चर केला की प्रति एकड़ बुआई से फसल तैयार करने तक किसान को तकरीबन डेढ़ लाख रुपए तक खर्च आता है। प्रति एकड़ तीन से चार लाख रुपए प्रति एकड़ किसानों को कुल लागत घटाकर बचत होने की उम्मीद है।

जल संरक्षण को मिलता है बढ़ावा

डुमरांव-बिक्रमगंज मुख्य मार्ग पर टेढ़की पुल के समीप एक विशाल भू-भाग पर तकरीबन छह-सात एकड़ खेतों में लहलहाते केला और पपीता की खेती में पटवन की कोई समस्या नहीं होती हैं। टपक प्रणाली विधि से बेहतर उत्पादन कर रहे किसान अभय रंजन राय ने बताया कि इससे जल संरक्षण को बढ़ावा मिलता हैं।

जिलाधिकारी कर चुके हैं कृषि कार्य की सराहना

बीते फरवरी माह में केला, पपीता और शिमला मिर्च की खेती देखने पहुंचे डीएम अंशुल अग्रवाल ने उनके कृषि कार्य की न सिर्फ सराहना की, बल्कि परंपरागत खेती से ऊपर उठकर आधुनिक तरीके से किए गए व्यावसायिक खेती को अन्य किसानों के लिए प्रेरणा का स्रोत बताया।

सोना उगलने वाली यहां की धरती संसाधनों से संपन्न है। यहां की मिट्टी, जलवायु, भू-गर्भीय पानीं एवं मजदूरों की उपलब्धता के बावजूद भी किसान दोहन के शिकार होते हैं। पारंपरिक खेती से ऊपर उठकर खेती की जाए, तो लाभप्रद हो सकता है। - अभय रंजन राय, प्रगतिशील किसान, डुमरांव

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