Independence Day 2024: बक्सर में 'शाहाबादी शेर' ने तोड़ा था नमक का काला कानून, महात्मा गांधी के साथ था खास रिश्ता
देश को आजाद कराने के लिए बक्सर के शाहाबादी शेर ने सन 1919 1933 एवं 1940 में कई बार जेल की यातना सही। उसी दौरान नमक सत्याग्रह भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में प्रमुख अहिंसक विरोधों में से एक था। सन 1930 में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन के दौरान सरदार ने अपने गांव में स्थित सीढ़ीनुमा कुएं के पास नमक बनाकर अंग्रेजों के नमक कानून को तोड़ा था।
रंजीत कुमार पांडेय, चौगाईं (बक्सर)। आजादी की लड़ाई में पूरा देश जल रहा था, तब इस आंदोलन में चौगाईं और आसपास के युवाओं ने भी बढ़-चढ़कर अपनी भागीदारी सुनिश्चित कराई। प्रखंड के स्थानीय गांव में 'शाहाबादी शेर' के नाम से चर्चित सरदार हरिहर सिंह को बचपन से ही देश की गुलामी झकझोरती रही। वह मैट्रिक की परीक्षा में सम्मिलित होने के पूर्व ही स्वतंत्रता संग्राम की जंग में कूद पड़े।
देश को आजाद कराने के लिए सरदार साहब ने सन 1919, 1933 एवं 1940 ई. में कई बार जेल की यातना सही। उसी दौरान नमक सत्याग्रह भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में प्रमुख अहिंसक विरोधों में से एक था। सन 1930 में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन के दौरान सरदार ने अपने गांव में स्थित सीढ़ीनुमा कुएं के पास नमक बनाकर अंग्रेजों के नमक कानून को तोड़ा था।
अंग्रेजों ने सरदार के घर में लगा दी थी आग
इसके लिए अंग्रेजों ने उन्हें पकड़ कर जेल में डाल दिया था। उसके बाद वह हजारीबाग स्थित जेल में दो वर्षों तक बंद रहे। फिर 1942 ई. में अंग्रेज शासकों ने चौगाईं गांव स्थित उनके आवास को आग के हवाले कर दिया। इसके बाद भी अंग्रेज शासक 'शाहाबादी शेर' के दिल में लगी आग नहीं बुझा सके।सरदार हरिहर सिंह अपने राजनीतिक जीवन में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और बिहार केसरी डॉ. श्रीकृष्ण सिंह सहित कई लोगों के करीबी माने जाते थे। चौगाईं गांव निवासी और राष्ट्रीय किसान नेता रणजीत सिंह राणा बताते हैं कि अपनी नेतृत्व क्षमता के कारण उनके साथी उन्हें सरदार कहते थे।
1952 से 77 तक किया क्षेत्र का प्रतिनिधित्व
आजादी के बाद प्रथम आम चुनाव 1952 में हुए, जिसमें डुमरांव विधानसभा क्षेत्र से वे निर्वाचित हुए। उसके बाद 1977 तक उन्होंने क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। वीपी मंडल सरकार में कृषि मंत्री बने। उसके बाद 1969 में कुछ दिनों के लिए उन्होंने सूबे की कमान संभाली और अपने छोटे से कार्यकाल में तकाबी कर्ज माफ कर किसानों को बड़ी राहत दी।घोषणा के बाद भी नहीं लगी प्रतिमा
'शाहाबादी शेर' भले ही देश व समाज के लिए ब्रितानी शासकों की प्रताड़ना के शिकार बने, लेकिन आज अपने पैतृक गांव और इलाके में ही बिसर गए हैं। नई पीढ़ी को आजादी के दिवानों से अवगत कराने के लिए प्रतिमा तक कहीं नहीं लगी।
1990 में डुमरांव में डीएसपी आवास के समीप ही सरदार हरिहर सिंह की प्रतिमा लगाने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री लालु प्रसाद यादव के द्वारा शिलान्यास किया गया। उसके बाद आज तक इस ओर किसी का ध्यान नहीं आकृष्ट हुआ। फिलहाल, शिलान्यास पट्टिका का अस्तित्व भी समाप्त हो चुका है।सरदार हरिहर सिंह की पड़पोती और भाजपा नेत्री प्रतिभा सिंह, डॉ. मनीष कुमार शशि और रविंद्र सिंह 'शाहाबादी' सहित कई लोगों ने कहा कि ऐसी शख्सियतों की समृति को स्थाई बनाने के लिए प्रयास न तो सरकारी स्तर पर एवं न ही आमजन के स्तर पर ही किया गया। ऐसे स्वतंत्रता सेनानियों के लिए यह उदासीनता बेवफाई का प्रमाण है।
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