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विजयादशमीः डुमरांव में राजपरिवार के पारंपरिक शस्त्र पूजन में उमड़ा शहर

बिहार की डुमरांव रियासत की ओर से विजयादशमी पर पारंपरिक तौजी पूजा की गई जिसमें शहर के हजारों लोग उपस्थित रहे। महाराज कमल बहादुर सिंह ने राजगढ़ में पूजा का आयोजन किया।

By Pramod PandeyEdited By: Updated: Tue, 11 Oct 2016 03:16 PM (IST)
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बक्सर [जेएनएन ]। विजयादशमी पर डुमरांव राज परिवार की ओर से शस्त्र पूजन के पारंपरिक आयोजन पर पूरा शहर उमड़ पड़ा। राजपरिवार के लिए यह वार्षिक उत्सव बेहद महत्वपूर्ण आयोजन है जिसे लेकर रियासतकालीन डुमरांव में आम लोग भी उत्साहित रहते हैं। राजपरिवार के मुखिया महाराज कमल बहादुर सिंह ने राजगढ़ स्थित किले में जाकर इस आयोजन में भाग लिया।

इस मौके पर हजारों शहरवासी भी मौजूद रहे। राजशाही खत्म होने के बावजूद पूरे रियासत में बेहद सम्मानित राजपरिवार के सदस्यों से आशीर्वाद लेने और उन्हें आशीर्वाद देने के लिए भी शहर के लोग बड़ी संख्या में जुटे। महाराज ने पारंपरिक विधि से पूजा पाठ कर दान दक्षिणा की रस्म भी अदा की। महाराज कमल बहादुर सिंह के साथ युवराज चंद्रविजय सिंह भी इस मौके पर मौजूुद रहे।

बहुत पुरानी है यह परंपरा

भारत के राजवंशों में विजयादशमी पर शस्त्र पूजन की परंपरा प्राचीन है। इस दिन सभी राजघरानों में पूुजापाठ और शक्ति का प्रदर्शन होता था। राजपरिवार से नजदीकी संबंध रखने वाले पं.शिवजी पाठक ने बताया कि विजयादशमी के दिन महाराजा अपने राज दरबार में उपस्थित होते थे। इस दौरान राजगढ परिसर में अवस्थित भगवान बांके बिहारी की विधिवत पूजा अर्चना के साथ ही अस्त्र-शस्त्रों की पूजा अर्चना की जाती थी।

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राज परिवार के लोग कहीं पर भी रहते थे तो इस दिन यहां जरूर उपस्थित होते थे।आज भी राज परिवार के लोग इस नियम का पालन करते हैं।

सलाना जलसा का ही रूप है आयोजन

यह राजपरिवार की ओर से आयोजित सालाना जलसा का रूप था। जिसमें, महाराज खुद जनता, सेवक व दरबारियों के समक्ष उपस्थित होते थे। अब इस परंपरा का निर्वहन वर्तमान महाराज कमल बहादुर सिंह कर रहे हैं। इसमें राजघराने के सभी सदस्य पारंपरिक परिधानों में अपने शस्त्रों के साथ मौजूद होते हैं।

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राजस्थानी पगड़ी, अचकन, और पारंपरिक राजषि वेश-भूषा में इनका जब काफिला निकलता है तो इसे देखने के लिए पूरा नगर उमड़ पड़ता है। बहुत पहले तौजी का आयोजन महाराज घराना के द्वारा अनुमंडल मुख्यालय से पन्द्रह किलोमीटर दूर मठिला गांव स्थित अपने गढ़ पर किया जाता था। बाद में इसका आयोजन स्थल राजगढ़ कर दिया गया।

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