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'अन्न-धन लक्ष्मी घर आए, दरिद्रा बाहर जाए', दीपावली की रात ये कहकर सूप पीटती हैं महिलाएं, दूर भगाती हैं दरिद्रता

Happy Diwali 2023 दिवाली का त्योहार देश भर में लोग मनाते हैं। कई लोगों का इस त्योहार को मनाने का तरीका एक जैसा होता है तो वहीं कई अनोखे तरीके से मनाते हैं। ऐसा ही कुछ बिहार में भी होता है। यहां गांवों में दरिद्रता को दूर भगाने के लिए दीपावली की रात सूप पीटने की प्रथा है। महिलाएं कहती रहती हैं- अन्न-धन लक्ष्मी घर आए दरिद्रा बाहर जाए।

By Rajesh TiwariEdited By: Aysha SheikhUpdated: Sun, 12 Nov 2023 10:38 AM (IST)
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'अन्न-धन लक्ष्मी घर आए, दरिद्रा बाहर जाए', दीपावली की रात ये कहकर सूप पीटती हैं महिलाएं, दूर भगाती हैं दरिद्रता

जागरण संवाददाता, बक्सर। दीपावली पर आस्था से जुड़ी कई परंपराएं हैं, जिनका आज भी लोग निर्वहन करते आ रहे हैं। ऐसी ही परंपराओं में से एक है दीपावली की रात में सूप पीटने की परंपरा।

गांवों में दरिद्रता को दूर भगाने के लिए दीपावली की रात सूप पीटने की प्रथा है। गांव की वृद्ध महिलाओं से बात करने पर वे बताती हैं कि इसके पीछे क्या तथ्य है, यह तो वे नहीं जानती।

वे सिर्फ पूर्वजों के बताए परंपरा का पालन करती हैं और आज भी पूरे शिद्दत से उसका पालन करती हैं। उनका कहना है कि इस परंपरा के पालन से उन्हें संतुष्टि मिलती है और उनके घर में समृद्धि आती है।

क्या करती हैं महिलाएं?

दीपावली की देर रात व सूर्योदय से एक घंटे पूर्व गांव की बुजुर्ग महिलाएं अपने घर के सभी कोने में अपने घर के चावल वाले पुराने सूप को सेठी के छड़ी या टूटे झाड़ू से पीटते हुए बाहर निकलती हैं। फिर आंगन व इसके बाद दरवाजा व अगल-बगल के गलियों से सड़क तक जाती हैं।

पीट रहे सूप और सूप पीटने वाली झाड़ू एवं छड़ी को गांव के खेत या बाहर झाडिय़ों में फेंक देती है। सूप को पीटने के दौरान महिलायें कहते रहती हैं- अन्न-धन लक्ष्मी घर आए, दरिद्रा बाहर जाए।

क्या है महिलाओं का तर्क?

नावानगर की लाजो देवी, आशा देवी, अक्षरा देवी, मीना देवी, लक्ष्मीना देवी और रेणु देवी आदि कहती हैं कि उनके पूर्वज दीपावली पर घर में जिस तरह से पूजा करते थे वो भी उसी तरह दीपावली पर्व को मनाते आ रही हैं। वह भी उसी तरह उनके बताए मार्गों पर चलती आ रही हैं।

सूप पीटने को लेकर इनका कहना है कि इससे घर के कोने-कोने में छिपी दरिद्रता भागती है। उसे खदेड़कर वह घर में धन वैभव बुलाती है और दरिद्रता को खेतों या गांव व मुहल्लों के बाहर डीह में छोड़ देतीं हैं।

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