प्रखंड पर्यटन दर्शनीय बिहार : मां कंकाली मंदिर की अलग परंपरा, खंडित मूर्ति की तांत्रिक रीति से होती है उपासना
Bihar Tourism बिहार के दरभंगा जिले में स्थित मां कंकाली मंदिर की स्थापना वर्ष 1922 में हुई थी। उस वक्त में यहां के महाराजा रहे रामेश्वर सिंह ने यह मंदिर बनवाया था। यहां देवी को राज परिवार की आराध्य के रूप में पूजा जाता है। माता की प्रतिमा का इतिहास मिथिला नरेश के काल से पहले का है। इसी में इसके खंडित होने की कहानी छिपी हुई है।
मुकेश कुमार श्रीवास्तव, दरभंगा। मिथिला में भगवती की उपासना की प्राचीन परंपरा रही है। शहर से गांव तक देवी मंदिरों की शृंखला है। हर मंदिर में उसकी महिमा का इतिहास छिपा है। मंदिरों में स्थापित देवी की प्रतिमाओं को लेकर प्रचलित कथाओं के बीच हर रोज यहां आस्था की सरिता बहती है।
इसी कड़ी में दरभंगा शहर के रामबाग किले के अंदर स्थापित कंकाली मंदिर का महत्वपूर्ण स्थान है। साधक अपनी साधना के लिए यहां दूर-दूर से आते हैं। जो कोई भक्त सच्चे मन से पहुंचता है, मैया उसकी पुकार सुनती हैं। चारों नवरात्र में यहां विशेष पूजा-अर्चना का विधान है।
मंदिर के पूरब स्थित तालाब यमुना सागर और पश्चिम स्थित तालाब गंगासागर के नाम से प्रसिद्ध है। मंदिर से सटे उत्तर नहर एवं दक्षिण देवी मंदिर की मनोरम दृश्य आज भी कायम है।
अभी भी दरभंगा राज परिवार के आराध्य देवी के रूप में इनकी पूजा-अर्चना की जाती है। राज परिवार के कुल देवता गोसाउन के बाद किसी भी शुभ कार्य व अनुष्ठान इसी मंदिर में पूजा-अर्चना से प्रारंभ होता है।
महाराज के गांव में हैं प्रतिमा के पांव
मां कंकाली मंदिर की स्थापना 1922 में मिथिला नरेश महाराजा रामेश्वर सिंह ने की थी। मंदिर का वर्तमान स्वरूप भव्य व विशाल है। 1934 के भूकंप के उपरांत तत्कालीन महाराजा कामेश्वर सिंह द्वारा पुनर्निर्माण के बाद वर्तमान स्वरूप दिया गया।कहा जाता है कि इस मंदिर में स्थापित मां कंकाली की मूर्ति दरभंगा राजवंश के संस्थापक महामहोपाध्याय महेश ठाकुर को दिल्ली स्थित यमुना नदी में मिली थी। दरभंगा महाराज के इतिहास के अनुसार इस मूर्ति की प्राप्ति के कुछ दिनों बाद ही तंत्र साधक महेश ठाकुर को बादशाह अकबर ने तिरहुत का राजा नियुक्त कर दिया।महेश ठाकुर ने वर्ष 1557 में अपने राजवंश की स्थापना के साथ ही अपने गांव भौर में यमुना में मिली प्रतिमा को स्थापित किया था। 19वीं शताब्दी में भौर स्थित मंदिर से मां कंकाली की प्रतिमा चोरी हो गई थी। राज परिवार के कुमुद सिंह ने बताया कि चोरी के दौरान ही प्रतिमा खंडित हो गई।
जब पूरी प्रतिमा को चोर ले जाने में कामयाब नहीं हुआ तो एक पांव काट दिया। इस बात का उल्लेख पंडित मुकुंद झा बख्शी की लिखित पुस्तक खंडवला राजवंश में भी है। आज भी मां कंकाली की प्रतिमा के पांव भौर मंदिर में हैं।कहते हैं कि प्रतिमा चुराने के बाद मां ने चोर को सपने में कहा कि इस मूर्ति को तुम राज परिवार को लौटा दो नहीं तो तुम्हारा वंश खत्म हो जाएगा। चोर ने मूर्ति नहीं लौटाई और कुछ दिनों में उसका वंश खत्म हो गया। फिर उसने मूर्ति तत्कालीन महाराजा रामेश्वर सिंह को लौटा दी। महाराजा ने मूर्ति को रामबाग स्थित अपने पुराने डीह पर स्थापित किया।
मां कंकाली की प्रतिमा।
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आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।मां कंकाली की संपत्ति की देखरेख करता है राज परिवार
हिंदू धर्म मान्यता के अनुसार किसी देवी-देवता की खंडित प्रतिमा की पूजा नहीं होती है, लेकिन मां कंकाली की इस खंडित प्रतिमा की भौर और दरभंगा दोनों जगहों पर पूजा होती है। मां कंकाली काफी उग्र हैं। भारत के कुछेक उग्र मंदिरों में से दरभंगा का यह कंकाली मंदिर भी है। दरभंगा राज परिवार की यह मान्यता रही है कि पूरा राज मां कंकाली का ही है। राज परिवार केवल मां कंकाली की संपत्ति की देखरेख करता है। पिछले 500 वर्षों से यह परिवार एक ट्रस्टी की तरह मां कंकाली की संपत्ति की देख-रेख कर रहा है।दरभंगा शहर के रामबाग किले के अंदर स्थापित कंकाली मंदिर। पहले यहां सिर्फ राज परिवार द्वारा ही पूजा-अर्चना की जाती थी, लेकिन वर्तमान में इसका स्वरूप सार्वजनिक है। यहां तांत्रिक रीति से मां की उपासना की जाती है। नवरात्र के दौरान हर रोज बलि देने की प्रथा है। मंदिर के गर्भगृह में राज परिवार को छोड़कर अन्य के लिए प्रवेश वर्जित है।कंकाली मंदिर के पुजारी पंडित आयुष वैभव कहते हैं कि शारदीय नवरात्र समेत वर्ष में होने वाले सभी नवरात्र में यहां मां कंकाली की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। वैसे यहां हर रोज श्रद्धालुओं की भीड़ लगती है, लेकिन नवरात्र में उत्तर बिहार के सभी जिलों के अलावा नेपाल से भी बड़ी संख्या में भक्त आते हैं।ऐसे पहुंचें
दरभंगा रेलवे स्टेशन से करीब दो किलोमीटर, दिल्ली मोड़ बस स्टैंड से तीन किलोमीटर और दरभंगा एयरपोर्ट से करीब चार किलोमीटर की दूरी पर रामबाग किला के अंदर मां कंकाली मंदिर है। रेलवे स्टेशन या एयरपोर्ट से आटो तथा अन्य वाहनों से यहां पहुंचा जा सकता है।यह भी पढ़ें प्रखंड पर्यटन दर्शनीय बिहार : दरभंगा के हयहट्ट देवी मंदिर में प्रतिमा की जगह सिंहासन की होती पूजा, रोचक है कथाप्रखंड पर्यटन दर्शनीय बिहार : शिवहर के राजदेवी मंदिर में पहुंचते हैं श्रद्धालु, मिट्टी की तीन पिंडी से जुड़ी है आस्था की डोर