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प्रखंड पर्यटन दर्शनीय बिहार : दरभंगा के हयहट्ट देवी मंदिर में प्रतिमा की जगह सिंहासन की होती पूजा, रोचक है कथा

बिहार के दरभंगा जिले के बेनीपुर प्रखंड में हयहट्ट देवी मंदिर है। यहां माता की निशा पूजा में पूरी रात भजन-कीर्तन होता है। मंदिर में दूर-दूर से लोग आते हैं। इस मंदिर के साथ जुड़ी स्थानीय कथा भी काफी रोचक है। कहते हैं कि 400 साल पहले यहां जंगल था। एक चरवाहा यहां अपनी गाय चराने आता था। कुछ ऐसे घटनाक्रम हुए जिनसे लोगों को इसके बारे में पता चला।

By Shailendra Kumar Jha Edited By: Yogesh Sahu Updated: Mon, 30 Sep 2024 05:58 PM (IST)
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दरभंगा जिले में स्थित हयहट्ट देवी मंदिर में माता का सिंहासन।

शैलेंद्र झा, बेनीपुर (दरभंगा)। नवरात्र के दौरान देवी मंदिरों में माता के अलग-अलग स्वरूपों की विधि-विधान से पूजा-अर्चना तो देखी होगी, लेकिन दरभंगा जिले के बेनीपुर प्रखंड में नवादा गांव स्थित हयहट्ट देवी मंदिर में मां दुर्गा की जगह उनके सिंहासन की पूजा होती है।

नवरात्र में कलश स्थापना के दिन से ही मां के सिंहासन की पूजा करने के लिए पड़ोसी देश नेपाल सहित मिथिलांचल के विभिन्न जिलों से श्रद्धालुओं का आना शुरू हो जाता है। सच्चे मन से मां के सिंहासन की पूजा कर भक्त जो भी मनौती मांगते हैं, मां उसे पूरा करती हैं। यहां बलि देने की भी प्रथा है।

अष्टमी को निशा पूजा को लेकर मंदिर प्रांगण में पूरी रात भजन-कीर्तन होता है। मंदिर का प्रांगण करीब पांच बीघे में है। नवादा गांव में सैकड़ों वर्ष पहले हयहट्ट राजा का डीह था। राजा के दो पुत्र थे हहरण झा और बहरण झा।

कहा जाता है कि नवादा गांव के लोग राजा के दोनों पुत्रों के ही वंशज हैं। हयहट्ट राजा के नाम पर ही हयहट्ट भगवती का नाम पड़ा है। ग्रामीण बताते हैं कि हयहट्ट देवी अंकुरित भगवती हैं। जिस जगह अभी मंदिर है, वहां करीब 400 वर्ष पहले जंगल था। वहां एक चरवाहा प्रतिदिन गाय चराने जाता था।

एक गाय जंगल में एक जगह जाकर हर दिन अपना दूध गिरा देती थी। चरवाहे ने यह बात ग्रामीणों को बताई। उसके बाद ग्रामीणों ने उस स्थान को साफ कर वहां एक झोपड़ी बनाकर अंकुरित भगवती की पूजा शुरू की। कुछ दिन बाद लोगों ने चंदा इकट्ठा कर सार्वजनिक रूप से मंदिर का निर्माण कराया।

मां ने स्वप्न में कही थी सिंहासन की पूजा करने की बात

ग्रामीण इस मंदिर के बारे में एक और कथा कहते हैं। उनके मुताबिक सैकड़ों वर्ष पूर्व इस मंदिर में बहेड़ी प्रखंड के हाबीडीह गांव का एक साधक कमला नदी पार कर प्रतिदिन पूजा करने आते थे। एक दिन जब वे बीमार पड़ गए तो मंदिर के द्वार पर आकर बोले अब मैं कैसे पूजा करूंगा मां...।

इतना कहते ही वे बेहोश हो गए। उसके बाद माता ने साधक को स्वप्न दिया कि तुम मेरी मूर्ति को सिंहासन से उठाकर ले चलो। साधक मूर्ति को हाबीडीह गांव ले आया और एक जगह स्थापित कर पूजा करने लगा। उसी स्थान पर हयहट्ट देवी का मंदिर है।

जब नवादा गांव के लोगों को इस बात का पता चला तो वे आक्रोशित हो गए और मूर्ति वहां से उठा कर लाने का निर्णय लिया। उसी रात पुजारी दामोदर गोसाई को भगवती ने स्वप्न दिया कि नवादा गांव के लोग मेरे सिंहासन की ही पूजा करें।

मैं उसी में प्रसन्न रहूंगी, तभी से लोग यहां सिंहासन की पूजा करने लगे। मंदिर के पुजारी अमरनाथ ठाकुर ने बताया कि नवादा की भगवती अंकुरित भगवती हैं। जो भक्त सच्चे मन से इनके सिंहासन की पूजा करते हैं, उनकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है।

दही-चूड़ा और पेड़े का ले सकेंगे स्वाद

यहां आने वाले भक्तों के लिए मंदिर प्रांगण में ही खाने-पीने की कई दुकानें हैं। यहां खासतौर पर लोग दही-चूड़ा और पेड़े का स्वाद लेते हैं। ठहरने के लिए कैंपस में ही एक धर्मशाला भी है। नेपाल तथा दूसरे जिले से आनेवाले श्रद्धालु यहां ठहरते हैं।

ऐसे पहुंचें दरभंगा रेलवे स्टेशन से दोनार चौक होते हुए 25 किलोमीटर की दूरी तय कर बेनीपुर प्रखंड के मझौड़ा चौक पहुंचना होगा। वहां से दो किलोमीटर की दूरी पर नवादा भगवती स्थान है। मझौड़ा चौक से आटो लेकर पहुंचा जा सकता है।

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