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Bihar Flood: बाढ़ की आहट होते ही नाव बनाने में जुटे कारीगर, इस साल खर्च करने पड़ेंगे इतने रुपये

Bihar Flood News बिहार के दरभंगा जिले में बहने वाली कोसी और कमला बलान नदियां हर साल बारिश होने पर बाढ़ जैसे हालात का कारण बनती हैं। ऐसे में यहां लोगों को नाव से आवागमन करना होता है। यही वजह है कि इस साल भी क्षेत्र में नाव बनाने के काम में अभी से तेजी आ गई है। नाव बनाने वाले बढ़ई इसकी तैयारी में जुट गए हैं।

By Arun Kumar Rai Edited By: Yogesh Sahu Published: Wed, 26 Jun 2024 06:27 PM (IST)Updated: Wed, 26 Jun 2024 06:27 PM (IST)
दरभंगा जिले में नाव बनाने का काम करते बढ़ई। फोटो- जागरण

अरुण राय, कुशेश्वरस्थान (दरभंगा)। Bihar Flood News: कोसी और कमला बलान नदी में बाढ़ की आहट होते ही कुशेश्वरस्थान के दोनों प्रखंडों में कारीगर नाव बनाने में जुट गए हैं। अभी से ही बढ़ई नाव बनाकर स्टॉक में रख रहे हैं, ताकि मांग बढ़ने पर अच्छी कमाई हो सके।

कुशेश्वरस्थान पूर्वी प्रखंड की इटहर, उसरी, उजुआ सिमरटोका, तिलकेश्वर पंचायत के लोगों को वर्ष भर नदी पार करने के लिए नाव की आवश्यकता होती है। बाढ़ के समय आवश्यकता और बढ़ जाती है।

प्रसव के लिए अस्पताल जाना हो, मृत्यु होने पर अंतिम संस्कार के लिए श्मशान घाट पहुंचना हो या रोजमर्रा के काम नाव के बिना यहां कुछ भी संभव नहीं है। नाव ही इनके जीवन का आधार है।

विवाह में बरात का दरवाजा लगाने या दुल्हन को लाने के लिए नाव ही एकमात्र सहारा है। अधिकतर परिवार नाव रखना अपनी शान समझते हैं। बाढ़ में यहां नाव की मांग बढ़ जाती है।

लोग अग्रिम राशि जमा कर नाव बनाने के ऑर्डर देते हैं। नाव बनाने के लिए शीशम और जामुन की लकड़ी का उपयोग होता है। 10 से 22 हाथ तक की नाव बनती है।

जामुन की लकड़ी से बनी नाव 2000-2500 एवं शीशम से बनी नाव 5000-5500 रुपये प्रति हाथ की दर से बिकती है।

शीशम के नाव की अधिक है कीमत

bihar flood: बड़गांव के नाव बनाने वाले करीगर भीखन शर्मा, लक्ष्मी शर्मा, हरौली के अघनु शर्मा व पचहरा के रमाकांत शर्मा ने बताया कि अग्रिम राशि जमा कर लोग नाव बनाने का ऑर्डर देते हैं।

नाव को पानी में गिराने से पहले इसके गह (दरार) को रुई या सोन की सुतली से भर कर अलकतरे की लेप लगाई जाती है, ताकि पानी का रिसाव न हो।

नाव बनाने के लिए शीशम एवं जामुन की लकड़ी का उपयोग होता है। जामुन की अपेक्षा शीशम की लकड़ी की नाव अधिक मजबूत और टिकाऊ होती है, लेकिन मंहगा होने के कारण जामुन से बनी नाव की मांग अधिक होती है।

उनका कहना है कि अधिकांश लोग रेडिमेड नाव खरीदते हैं, लेकिन संपन्न परिवार के लोग अपने दरवाजे पर शीशम की लकड़ी से नाव तैयार करवाते हैं।

व्यक्तिगत उपयोग के लिए 10-12 हाथ, भाड़े पर चलाने के लिए 14-16 और माल ढुलाई के 18-22 हाथ की नाव का उपयोग होता है। 10-11 हाथ की नाव बनाने में दो कारीगर को तीन दिन का समय लगता है।

हाथ की दर से निर्धारित होती कीमत

नाव की कीमत प्रति हाथ की दर से निर्धारित होती है। जामुन की नाव 2000-2500 रुपये और शीशम की नाव 5000-5500 रुपये प्रति हाथ की दर से बिकती है।

बाढ़ प्रभावित अन्य जगहों के लोग भी यहां से नाव खरीद कर ले जाते हैं। तीन साल पहले तक एक सीजन में चार से पांच सौ नाव की बिक्री हो जाती थी।

वर्तमान में 18 पंचायत बाढ़ (bihar flood alert) से सुरक्षित होने से नाव की मांग कम हो गई है। 12 हाथ के नाव को हाथ से खेव कर तथा 16 एवं 22 हाथ के नाव में पंखी लगा पांच से दस हार्स पावर की मशीन बैठाकर मोटर वोट की तरह उपयोग किया जाता है।

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