Darbhanga News: दरभंगा महाराज का कट गया था टिकट, निर्दलीय थे चुनावी मैदान में; मिले थे इतने वोट
Darbhanga News साइकिल छाप से चुनाव लड़ने वाले दरभंगा महाराज को 56 हजार 53 मत प्राप्त हुए थे जबकि विजेता श्यामनंदन मिश्रा को 64 हजार 314 मत प्राप्त हुए थे। आठ हजार 261 मतों से दरभंगा महाराज चुनाव हार गए थे। शोधार्थी कुमुद सिंह बताते हैं कि उस दौरान कांग्रेस आलाकमान की नजर दरभंगा पर थी कार्यकर्ताओं को गाड़ियां मुहैया कराई गई थीं।
मुकेश कुमार श्रीवास्तव, दरभंगा। Darbhanga News: दरभंगा महाराज कामेश्वर सिंह (शासनकाल 1929-1947) को 1952 के लोकसभा चुनाव में दरभंगा नार्थ सीट से हार का सामना करना पड़ा था। उस दौरान उन्हें कांग्रेस के टिकट से वंचित होना पड़ गया था। शुभचिंतकों की सलाह पर वह निर्दलीय चुनाव लड़े। उनका सामना कांग्रेस के श्यामनंदन मिश्रा से हुआ था। इसमें उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा।
साइकिल छाप से चुनाव लड़ने वाले दरभंगा महाराज को 56 हजार, 53 मत प्राप्त हुए थे, जबकि विजेता श्यामनंदन मिश्रा को 64 हजार, 314 मत प्राप्त हुए थे। आठ हजार, 261 मतों से दरभंगा महाराज चुनाव हार गए थे। शोधार्थी कुमुद सिंह बताते हैं कि उस दौरान कांग्रेस आलाकमान की नजर दरभंगा पर थी, कार्यकर्ताओं को गाड़ियां मुहैया कराई गई थीं।
इधर, महाराज कामेश्वर सिंह ने अपने चुनाव प्रबंधक को कार्यकर्ताओं को साइकिल उपलब्ध कराने का जिम्मा सौंपा था। एक हजार साइकिल चुनाव से महज दो दिन पहले पहुंची। ऐसी स्थिति में कार्यकर्ताओं को साइकिल समय पर नहीं मिली। इससे उनमें नाराजगी के साथ उदासी रही।
दरभंगा महाराज को जब सच्चाई की जानकारी मिली तो उन्होंने प्रबंधन टीम पर नाराजगी जाहिर करते हुए चुनाव बाद कार्यकर्ताओं के घर पर साइकिल भिजवा दी। इसके बाद उन्होंने कोई चुनाव नहीं लड़ा था।
मंच पर कुर्सी या मसनद रखने की नहीं थी अनुमति
कुमुद सिंह बताते हैं कि उस दौर के उपलब्ध दस्तावेज के अनुसार कामेश्वर सिंह के राजनीतिक सलाहकार कुमार गंगानंद सिंह नहीं चाहते थे कि वे दरभंगा नार्थ से चुनाव लड़ें। दरअसल, इन इलाकों के मतदाताओं में जवाहर लाल नेहरू और कांग्रेस के प्रति झुकाव ज्यादा था।ऐसी स्थिति में वे कामेश्वर सिंह को कोसी इलाके से चुनाव लड़ाना चाहते थे। उधर, झारखंड पार्टी के जयपाल सिंह मुंडा चाहते थे कि महाराज उनके इलाके से मैदान में उतरें, लेकिन महाराज किसी की बात नहीं मानें और दरभंगा नार्थ से निर्दलीय चुनाव लड़े।
उस दौरान कामेश्वर सिंह अपने चुनाव प्रचार में न तो गाड़ियों का काफिला लेकर चलते थे और न ही मंच पर कुर्सी या मसनद जैसी कोई वस्तु रखते थे। अपने प्रचार के दौरान वे सफेद रंग की टोपी या फिर मिथिला पाग पहनते थे। उनकी सादगी से मुकाबला करना उस जमाने के बड़े नेताओं के लिए चुनौती थी। इस कारण उनके विरोध में महाराज और जमींदार होने का नारा दिया गया था।यह भी पढ़ेंBihar Politics: RJD प्रत्याशी बीमा भारती पड़ीं 'नरम', क्या अब पिघलेगा पप्पू यादव का दिल; छोड़ेंगे पूर्णिया सीट?
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