Move to Jagran APP

दरभंगा के इस युवा किसान ने जलजमाव को बना दिया वरदान, मखाना की खेती से बनाई अलग पहचान; अब हर तरफ हो रही तारीफ

खेती किसानी को चुनौती के रूप में लेकर अपने मेहनत लगन दृढ़ इच्छा की बदौलत खेती को लाभप्रद बनाकर उदाहरण पेश कर रहे हैं युवा किसान धीरेंद्र कुमार। जलजमाव को वरदान मानते हुए मखाना की खेती से आर्थिकी बदल जो क्षेत्र के किसानों के लिए वरदान साबित हो रही है। सैकड़ों किसान मखाना के साथ मत्स्य पालन कांटा रहित सिंघाड़ा उत्पादन कर आर्थिक स्थिति सुदृढ़ कर रहे हैं।

By Arun kumar Pathak Edited By: Mohit Tripathi Updated: Thu, 22 Feb 2024 03:31 PM (IST)
Hero Image
बाढ़ के अभिशाप को मखाना की खेती कर वरदान में बदलते धीरेंद्र। (जागरण फोटो)
अरुण कुमार पाठक/संवाद सहयोगी, जाले(दरभंगा)। खेती किसानी को चुनौती के रूप में लेकर अपने मेहनत लगन दृढ़ इच्छा की बदौलत खेती को लाभप्रद बनाकर उदाहरण पेश कर रहे हैं युवा किसान धीरेंद्र कुमार। जलजमाव को वरदान मानते हुए मखाना की खेती से आर्थिकी बदल, जो क्षेत्र के किसानों के लिए वरदान साबित हो रही है। सैकड़ों किसान मखाना के साथ मत्स्य पालन, कांटा रहित सिंघाड़ा उत्पादन कर आर्थिक स्थिति सुदृढ़ कर रहे हैं।

दरभंगा के बेलवारा गांव के धीरेंद्र कुमार कृषि से विमुख किसानों को राह दिखा रहे हैं। वह आज युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत बने हैं। इनके बताए वैज्ञानिक विधि को अपनाकर सैकड़ों किसान खेती किसानी से अच्छी आमदनी प्राप्त कर रहे हैं।

धीरेंद्र प्रगतिशील नवोन्मेषी तथा पीएचडी हैं। पिछले पांच-छह सालों से खेती में नित्य नए प्रयोग कर राष्ट्रीय स्तर पर अपनी सफलता की मिसाल कायम कर रहे हैं।

इंटर की पढ़ाई के बाद से ही खेती से जुड़ गए धीरेंद्र

धीरेंद्र कुमार बताते हैं कि वह किसान परिवार से हैं। बचपन से ही खेती को नजदीक से देखा सीखा। 2006 में इंटर पास करने के बाद खेती-किसानी में जुट गए। आगे की पढ़ाई जारी रखते हुए खेती को ही अपना करियर तथा जीवकोपार्जन का जरिया बनाया और नित्य नए प्रयोग करने में लग गए।

यहां के किसान नकदी फसल के रूप में गन्ना की खेती करते थे। चीनी मिलें बंद हो जाने से गन्ना की खेती छोड़नी पड़ी। अधवारा समूह की नदियों में साल दर साल बाढ़ आने से खेतों में जलजमाव हो गया। धान की फसल बाढ़ की भेंट चढ़ जाती है। मात्र रबी फसल का ही विकल्प बचा। खेतों में नदी का बालू जमाव होने से रबी में भी घाटा होने लगा।

कृषि वैज्ञानिकों से सीखे खेती के गुर

किसानों युवाओं का पलायन देख धीरेंद्र कुमार ने कृषि विज्ञान केंद्र के विज्ञानियों से संपर्क किया। खेती को लाभकारी बनाने को लेकर विज्ञानियों के साथ प्रशिक्षण परिभ्रमण में भाग लेने लगे।

सरकार की योजनाओं की जानकारी जुटाई। आस पास के युवा किसानों को भी जागरूक करने लगा। राष्ट्रीय मखाना अनुसंधान केंद्र दरभंगा जुड़े। मखाना की खेती के लिए प्रशिक्षण परिभ्रमण में भाग लिया।

वैज्ञानिकों की देखरेख में शुरू की मखाने की खेती

वर्ष 2019 में अपने जलजमाव वाले खेतों में विज्ञानियों की देखरेख में मखाना के दो प्रभेद स्वर्ण वैदेही तथा सबौर मखाना-वन की वेरायटी को कम पानी में धान के साथ आधा एकड़ में लगाया। मखाना की अच्छी फसल हुई। 59 हजार रुपये से अधिक की आमदनी हुई। काला हीरा के नाम से प्रसिद्ध मखाना की खेती को बेहतर नकदी फसल के रूप में विकल्प मिल गया।

मखाना को लोग काला हीरा के नाम से संबोधित करते हैं, जो आर्थिक उन्नति ही नहीं औषधीय गुणों से युक्त है। मखाना के पौधे को डिकंपोज होने से खेतों की उर्वरा शक्ति कई गुना बढ़ती जा रही है। कांटानुमा पौधा होने के कारण जंगली जानवर भी इसे किसी तरह की क्षति नहीं पहुंचता है।

कोरोना संकट में मखाना खेती को ऐसे मिला प्रोत्साहन

धीरेंद्र बताते हैं कि वर्ष 2020 में कोरोना आपदा के समय जब परदेश से बेरोजगार होकर लोग अपने गांव आए। उस समय धीरेंद्र ने दर्जनों लोगों को उनके जलजमाव वाले खेतों में मखाना की खेती करने को प्रोत्साहित किया।

धीरेंद्र कुमार ने प्रशिक्षण देकर मखाना की खेती में भी हुनरबंद बनाया। नतीजा है कि जिस खेती को सिर्फ मछुआ समुदाय के ही लोग की करते थे। आज लगभग सभी जाति और धर्म के लोग मखाना की खेती करने लगे हैं।

कृषि कार्यक्रमों में बढ़चढ़ कर लेते हैं भाग

धीरेंद्र कुमार कृषि से संबंधित हर क्षेत्र में कई बार प्रशिक्षण राज्य तथा राज्य से बाहर जाकर प्राप्त कर चुके हैं। ऑर्गेनिक ग्रोवर का स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम के तहत प्रशिक्षित हैं। साथ ही अपने उत्पादों को विभिन्न क्षेत्रों के प्रदर्शनी में प्रदर्शित करते हैं। किसान मेला में अपना स्टॉल लगाते हैं।

खेती के साथ नवचार की करते हैं कोशिश

धीरेंद्र कुमार बताते हैं कि खेती में किसी नए चीज की जानकारी मिलती है, तो वह अपने खेत तक लाने का प्रयास करते हैं और प्रयोग करते हैं, अगर सफल रहा तो उसे आगे अन्य किसानों के बीच में वितरित करते हैं। किसानों को जागरूक करते हैं साथ में प्रशिक्षण भी देते हैं।

धीरेंद्र आगे कहते है की रवि की फसल लेने के बाद उसी खेत में पानी की उपलब्धता कर मखाना की खेती खरीफ के सीजन में कर लेते हैं जहां खेत बाढ़ के कारण खाली रह जाता था वहां नकदी फसल के रूप में एक बेहतर इनकम का जरिया मखाना की खेती होते जा रहा है।

साथ ही अगर खेतों के मेड़ को थोड़ा सा ऊंचा करके दो से तीन फीट पानी मेंटेन कर मखाना के साथ-साथ मछली पालन, सिंघाड़ा की खेती भी कर लेते हैं। इसके अलावा पशुपालन बागवानी एवं अनके तरह के खेती को बढ़ावा दे रहा है।

बेकार बंजर जमीन पर उगा रहे अनाज

धीरेंद्र कुमार बेकार पड़े बंजर जमीन पर बांस की खेती तथा मोटे अनाज की खेती को भी अपने इलाका में बढ़ावा दे रहा है जिसमें बाजारा, सामा, कौनी,कोदो, मरूआ आदि की खेती को भी बढ़ावा दे रहे हैं और प्रचार प्रसार कर रहे हैं।

वह मणिपुरी काला धान, काला नमक, सुगंधित बासमती धान, पूसा बासमती धान एवं बायो फोर्टीफाइड गेहूं, काला आलू का खेती भी कर रहे हैं। इसके बीज अन्य किसानों को उपलब्ध करवा रहे हैं।

मशरूम उत्पादन करने वाले अपने क्षेत्र के प्रथम किसान हैं। मखाना बीज बिहार सरकार के उद्यान विभाग को भी उपलब्ध करवा रहे हैं जो अन्य किसानों के बीच में मखाना विकास योजना अंतर्गत वितरण किया जा रहा है।

देश के अन्य हिस्सों में भी किसानों को भारतीय डाक के पार्सल माध्यम से मखाना बीज,काला गेहूं,नीला गेहूं, सोना मोती गेहूं, धान के कई प्रभेद को भेजते हैं। साथ ही पुराना प्रभेदों के अनाज,जो विलुप्त होने के कगार पर है,उसको भी संरक्षित भी कर रहे है।

खुद की बनाई जैविक खाद का करते हैं प्रयोग

खुद की बनाई जैविक खाद और कीटनाशक खुद अपने फसल पर प्रयोग करने के साथ-साथ अन्य किसानों को भी देकर प्रयोग करने के लिए प्रेरित कर रहा हैं। कृषि से वार्षिक आय करीब 12 लाख है।

खेती की बदौलत प्राप्त आय से ट्रैक्टर, कल्टीवेटर, रोटावेटर, थ्रेसर, इलेक्ट्रिक मोटर पम्पसेट, डीजल पम्पसेट, स्प्रे पम्प आदि कृषि यंत्र की खरीदे की है। कृषि के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने को लेकर कई मेडल एवं अवार्ड राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर मिल चुका है।

यह भी पढ़ें: Bihar: 'अधिकारी कितने भी ऊंचे पद पर क्यों ना हो...', शिक्षा मंत्री ने दी चेतावनी; शिक्षक भी पढ़ लें ये खबर

NEET UG 2024 पर आया बड़ा अपडेट! इस वेबसाइट पर आज ही कर लें रजिस्ट्रेशन, इन जिलों में होगी परीक्षा

आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।