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Bihar News: मिथिला विश्वविद्यालय की डिग्री पाना किसी युद्ध से कम नहीं, सालों से चक्कर काट रहे छात्र; फिर भी...

ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय में पढ़ना और परीक्षा देना तो आसान है लेकिन डिग्री पाना किसी युद्ध के मोर्चे को फतह करने से कम नहीं है। एक दशक पूर्व परीक्षा पास किए दरभंगा मधुबनी समस्तीपुर एवं बेगूसराय के छात्र जब भी विश्वविद्यालय आते हैं तो आवेदन करने के बावजूद उन्हें महीनों चक्कर लगाने और कुछ ना कुछ नजराना प्रस्तुत करने के बाद ही डिग्री मिल पाती है।

By Prince Kumar Edited By: Mohit Tripathi Updated: Wed, 27 Dec 2023 09:05 PM (IST)
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मिथिला विश्वविद्यालय की डिग्री पाना किसी युद्ध से कम नहीं। (फाइल फोटो)
जागरण संवाददाता, दरभंगा। ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय में पढ़ना और परीक्षा देना तो आसान है, लेकिन डिग्री पाना किसी युद्ध के मोर्चे को फतह करने से कम नहीं है। एक दशक पूर्व परीक्षा पास किए दरभंगा, मधुबनी, समस्तीपुर एवं बेगूसराय के छात्र जब भी विश्वविद्यालय आते हैं, तो आवेदन करने के बावजूद उन्हें महीनों चक्कर लगाने और कुछ ना कुछ नजराना प्रस्तुत करने के बाद ही डिग्री मिल पाती है।

जिसने ऐसा नहीं किया उसके तो चप्पल घिस जाते हैं, लेकिन डिग्री नहीं मिल पाती है। जबकि वर्ष 2021 से ही विश्वविद्यालय छात्रों से परीक्षा शुल्क लेते समय ही मूल प्रमाण पत्र, अंक पत्र और औपबंधिक प्रमाण पत्र का शुल्क भी जमा करवा लेता है।

कहा जाता है कि डिग्री महाविद्यालय और विभागों को भेज दी गई है। लेकिन अपवाद के कुछ सत्रों को छोड़ किसी सत्र की डिग्री नहीं भेजी गई है। कुछ डिग्री तो तैयार होकर परीक्षा विभाग के प्रमाण पत्र शाखा में डंप पड़ी है, लेकिन हाकिमों और बाबुओं की तो चाहत रहती है, कि छात्र आएं, उनकी खुशामद करें, कुछ ना कुछ प्रस्तुत करें तभी उनको डिग्री दी जाएगी।

यह तो नये सत्रों की बात हुई, स्थिति तो इतनी खराब है कि वर्ष 1990 से लेकर वर्ष 2010 तक की डिग्री प्राप्त करने के लिए छात्रों को विश्वविद्यालय की दौड़ लगानी पर रही है। छात्र आवेदन और निर्धारित शुल्क जमा भी कर देते हैं, तब भी उन्हें महीनों डिग्री नहीं मिलती।

दूसरे प्रदेशों में भी बदनाम हो रहा विवि

कई छात्रों ने कहा कि डिग्री के अभाव में दूसरे प्रदेशों में उन्हें मिलने वाली नौकरी के अवसर से वंचित होना पड़ा। वहां कहा जाता है कि परीक्षा पास करने के 20 वर्ष बाद भी डिग्री नहीं दे रहा तो वह कैसा विश्वविद्यालय है।

इससे हमलोगों की साख को तो बट्टा लग ही रहा है। विश्वविद्यालय बिहार के बाहर दूसरे प्रदेशों में भी बदनाम हो रहा है।

कई सत्रों की मूल उपाधि लंबित

स्नातक कला सत्र 2014-17 का प्रमाण पत्र सभी निर्धारित शुल्क जमा होने के बाद भी महाविद्यालय नहीं भेजा गया है। जबकि विज्ञान एवं वाणिज्य संकाय की मूल उपाधि भेज दी गई है।

स्नातक सत्र 2007-10 का मूल प्रमाण पत्र बनकर तैयार है। फिर भी इसे महाविद्यालयों को नहीं भेजा जाना किसी के गले नहीं उतर रहा है।

सत्र 2019-22 और 2020-23 परीक्षा के लिए विश्वविद्यालय ने छात्रों से मूल उपाधि का शुल्क भी वसूल रखा है। इसके बावजूद तीनों सत्रों की उपाधि छात्रों को नहीं दी जा रही है।

इसी प्रकार 1990 से लेकर वर्ष 2009 तक स्नातक एवं स्नातकोत्तर परीक्षा पास करे वाले छात्रों की मूल उपाधि व्यक्तिगत आवेदन पर ही निर्गत की जा रही है। इसे संबंधित महाविद्यालय एवं विभागों में नहीं भेजे जाने पर छात्र आक्रोशित हैं।

वितरण काउंटर पर होता छात्रों का शोषण

परीक्षा नियंत्रक ने मूल प्रमाण पत्र शाखा में छात्रों की भीड़ कम करने के लिए वितरण का अलग काउंटर खोल रहा है। लेकिन इसका लाभ ना तो छात्रों को मिल पा रहा है और ना ही कर्मचारियों को। बिचौलिए के साथ वितरण काउंटर के कर्मचारियों की मिलीभगत से छात्रों का दोनों जगह शोषण हो रहा है।

छात्र मूल उपाधि के लिए प्रमाण पत्र शाखा जाते हैं, तो वहां से वितरण काउंटर भेज दिया जाता है। वितरण काउंटर के कर्मचारी सीधे कह देते हैं, आपका प्रमाण पत्र अभी नहीं बना है। छात्र जाए तो कहां जाए।

बिचौलिए उसे पकड़ लेते हैं, हजार दो हजार वसूला कुछ वितरण काउंटर के कर्मचारियों को दिया और कुछ अपनी जेब में रखा एक घंटे के बाद छात्र को प्रमाण पत्र मिल गए।

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