Karpoori Thakur: आपातकाल में गिरफ्तारी से बचने के लिए यहां छिपे थे 'जननायक', अमरुद्दीन मियां के घर बनाया था ठिकाना
वरिष्ठ जदयू नेता और समाजसेवी दयाशंकर सिंह बताते हैं कि जब छात्र जीवन में वे राजनीति में सक्रिय थे तब कर्पूरी जी बगहा आए थे। 1977 की बात है बगहा के समाजवादी नेता अमरुद्दीन मियां के घर में कर्पूरी जी कई दिनों तक छिपे रहे। इस दौरान गुपचुप ढंग से आंदोलन को लेकर साथियों के साथ उनकी मंत्रणा होती रही।
विनोद राव, बगहा। कर्पूरी ठाकुर ने अपने जीवनकाल में गरीब, शोषित और किसानों के हक के लिए आवाज बुलंद की थी। वे चंपारण के किसानों से न सिर्फ जुड़े, बल्कि जब आपातकाल में उनकी गिरफ्तारी के लिए दबिश बढ़ी तो बगहा की माटी ने उन्हें सीने से लगा लिया।
वरिष्ठ जदयू नेता और समाजसेवी दयाशंकर सिंह बताते हैं कि जब छात्र जीवन में वे राजनीति में सक्रिय थे, तब कर्पूरी जी बगहा आए थे। 1977 की बात है, बगहा के समाजवादी नेता अमरुद्दीन मियां के घर में कर्पूरी जी कई दिनों तक छिपे रहे। इस दौरान गुपचुप ढंग से आंदोलन को लेकर साथियों के साथ उनकी मंत्रणा होती रही।
पुलिस को मिल गई थी सूचना, फिर...
उन्होंने कहा, पहली बार एक प्रखर समाजवादी नेता को करीब से जानने का मौका मिला था। उस समय उनकी उम्र करीब 16-17 वर्ष ही थी। बताते हैं कि एक हफ्ते से अधिक समय तक बगहा में रहने के क्रम में पुलिस को यहां होने की सूचना मिल गई।इसके बाद उनकी गिरफ्तारी को लेकर दबिश बढ़ी तो अमरुद्दीन मियां ने ही अपनी साइकिल से कर्पूरी जी को जंगल के रास्ते पहले वाल्मीकिनगर और फिर नेपाल पहुंचाया। डफाली टोले में आज भी अमरुद्दीन मियां के वंशज रहते हैं।
गुमनाम हो गए अमरुद्दीन
डफाली टोला स्थित अमरुद्दीन मियां के घर में उनके भाई की बेटी का परिवार रहता है। बताया जाता है कि अमरुद्दीन मियां को अपनी कोई संतान नहीं थी। आपातकाल समाप्त होने के बाद जन लोकप्रियता के कारण कर्पूरी ठाकुर को बिहार का सीएम बनने का सौभाग्य मिला, लेकिन धीरे-धीरे अमरुद्दीन मियां गुमनाम होते गए।ये भी पढ़ें- Karpoori Thakur : कौन हैं भारत रत्न से नवाजे जा रहे कर्पूरी ठाकुर? यहां पढ़ें बिहार के 'जननायक' से जुड़े हर सवाल का जवाब
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