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Bihar: शांति की कामना लिए हर साल हजारों लोग पहुंचते हैं गुरपा पर्वत, बुद्ध पथ देखना हो तो मोहड़ा-टनकुप्पा प्रखंड भी जाएं

मगध विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर बौद्ध विभाग से सेवानिवृत्त प्राध्यापक प्रो. रामस्वरूप सिंह बताते हैं कि उस समय कोई मार्ग नहीं था। सिद्धार्थ पहाड़ों के रास्ते जंगल होते हुए राजगीर पहुंचे। आगे की कड़ियों में आपको राजगीर भी ले चलेंगे। अभी बोधगया की ओर चलते हैं। रामस्वरूप बताते हैं कि राजगीर से बोधगया की यात्रा में कुर्किहार गुरपा और ढुंगेश्वरी पड़ता है। कुर्किहार मोहड़ा प्रखंड में है।

By Jagran News Edited By: Jeet Kumar Updated: Fri, 09 Aug 2024 07:13 AM (IST)
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गुरपा पहाड़ के ऊपर चोटी पर 40 फीट ऊंचा बौद्ध स्तूप

 कमल नयन, गया। सदियां बीत चुकी हैं। भौगोलिक परिदृश्य भी बदल चुके हैं। जंगल-पहाड़ तो आज भी हैं, पर पहले जैसे नहीं। आबादी बसती चली गई। सड़कें बन गईं। विकास के साथ भौतिक परिवर्तन स्वाभाविक है, पर सांस्कृतिक परिवेश वही है। इन पथों पर ज्ञान की खोज में भटके एक राजकुमार की यात्रा की कहानियां आज भी वैसी हैं। यूं कहें कि दुनिया आज वहां आकर उन स्थलों के भ्रमण को उत्सुक होती है।

यह यात्रा है उस राजकुमार सिद्धार्थ की, जो बिहार के बोधगया में ज्ञान प्राप्त कर भगवान बुद्ध में परिवर्तित हो गए। इतिहास के पृष्ठों में 560 ईसा पूर्व की कहानी। तब जंगल, पहाड़, नदी-नाले यही सब तो था। उसके बीच ज्ञान की खोज में गृह त्याग कर निकले सिद्धार्थ, जिनका जन्म लुंबनी में हुआ था। जिन जगहों पर वे पहुंचे, वे दर्शनीय हैं।

आसपास के कई प्रखंड हैं, जहां बुद्ध के पग पड़े थे

यहां आएं तो प्रकृति अलग स्वागत करती है। जब बोधगया पहुंचेंगे तो केवल यहीं भर नहीं, आसपास के कई प्रखंड हैं, जहां बुद्ध के पग पड़े थे। यहां अतीत के पन्नों पर संस्कृति की विरासत है। इसकी अनुभूति तो यहां आकर ही होगी। बुद्ध राजकुमार के रूप में राजगीर (तब राजगृह) होते हुए बोधगया पहुंचे थे।

फिर यहां ज्ञान प्राप्त करने के बाद इसी रास्ते लौटे भी थे। बोधगया आगमन के क्रम में राजगीर की पंच पहाड़ी पड़ती है। इसके बीच जो मार्ग है, उसे अब बुद्ध मार्ग कहते हैं। मन को मोह लेने वाला स्थल।

कुर्किहार मोहड़ा प्रखंड में है

मगध विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर बौद्ध विभाग से सेवानिवृत्त प्राध्यापक प्रो. रामस्वरूप सिंह बताते हैं कि उस समय कोई मार्ग नहीं था। सिद्धार्थ पहाड़ों के रास्ते जंगल होते हुए राजगीर पहुंचे। आगे की कड़ियों में आपको राजगीर भी ले चलेंगे। अभी बोधगया की ओर चलते हैं। रामस्वरूप बताते हैं कि राजगीर से बोधगया की यात्रा में कुर्किहार, गुरपा और ढुंगेश्वरी पड़ता है। कुर्किहार मोहड़ा प्रखंड में है।

गुरपा टनकुप्पा और ढुंगेश्वरी बोधगया प्रखंड में। इन प्रखंडों के इन स्थलों पर बुद्ध के दर्शन होते हैं। गुरपा के बाद वे प्रागबोधि तक आए थे, जहां तपस्या की। यही बोधगया है। बोधगया आकर लौट जाने भर से बुद्ध की यात्रा के उन मार्गों को देख पाने से वंचित होना ही होगा। गया और बोधगया दोनों जगह ठहरने आदि की बहुत अच्छी व्यवस्था भी है।

लगभग 600 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती है

कुर्किहार से पश्चिम-उत्तर कोण पर हड़ाही स्थान के पास भी खोदाई भी की गई है। यहां एक पौराणिक मंदिर दिखा। इसके महाभारत काल से जुड़े होने की बात कही जाती है, इस पर बहुत शोध नहीं हुआ है। हड़ाही का अर्थ हरण, सो रुक्मिणी के हरण की कथा को जनमानस की मान्यता है। यहीं से आगे बढ़ जाएं तो वजीरगंज के बाद गुरुपद पहाड़ी पर स्थापित बुद्ध स्तूप ध्यान आकृष्ट करता है। यहां तक जाने के लिए लगभग 600 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती है। स्थानीय लोग बताते हैं कि पर्यटन विभाग ने विकास की योजना बनाई है। अभी यहां सोलर लाइट लग चुकी है। बुद्ध की यात्रा के मार्ग पर भ्रमण करते हुए एक आनंदित अनुभूति के लिए गया जिले के बोधगया के साथ मोड़हा, टनकुप्पा प्रखंडों में भी जाना होगा।

कैसे पहुंचे इन स्थलों पर

जिला मुख्यालय गया से सड़क मार्ग द्वारा पूरब की दिशा में गया-नवादा मार्ग पर वजीरगंज से उत्तर पांच किमी पर कुर्किहार, 15 किमी पर तपोवन और पहाड़ी पार कर 14 किमी पर जेठियन से दो किमी आगे चलकर लीला बांध के पास से बुद्ध पथ का शुभारंभ। वापसी में जेठियन से अतरी मार्ग पर चलकर पहाड़ी के नीचे 10 किमी के बाद गेहलौर घाटी है। उसके बाद 21 किमी वजीरगंज और फिर मुख्य मार्ग होते हुए लगभग 25 किमी की दूरी तय कर प्रागबोधि तक जा सकते हैं। इन मार्गों पर बस सेवा भी है और टैक्सी आदि की भी सुविधा है। गुरुपद पहाड़ी पर स्तूप देखने ट्रेन मार्ग से जाया जा सकता है।

खानपान भी मिलेगा

जितने भी दर्शनीय स्थल हैं, उन स्थानों पर स्थानीय व्यंजन का स्वाद भी ले सकते हैं। पकौड़ी वगैरह तो है ही, जलेबी खाना न भूलें। मौसम के अनुसार फल भी हैं। अभी मकई के मौसम में लकड़ी पर पकाए गए भुट्टे बड़े स्वादिष्ट होते हैं।