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Food Culture of Magadh: कभी लिया है मगध क्षेत्र की शान 'बिरंज' का स्‍वाद, जानिए क्‍या हैं इसकी खूबियां

गया जहानाबाद अरवल और औरंगाबाद के ग्रामीण इलाकों में शादी-विवाह समेत अन्‍य बड़े कार्यक्रमों में बिरंज बनता था। लेकिन पुराने जमाने के कई व्‍यंजनों की तरह अब बिरंज भी इतिहास के पन्‍नों में शामिल होता जा रहा है।

By Vyas ChandraEdited By: Updated: Wed, 09 Dec 2020 01:04 PM (IST)
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शादियों में बनने वाला खास तरह का व्‍यंजन बिरंज। जागरण

आलोक रंजन, टिकारी(गया)। क्षेत्र की पहचान उसके व्‍यंजन से भी होती है। ऐसा ही एक व्‍यंजन है बिरंज। यह मगध क्षेत्र की पहचान हुआ करता था। गया, जहानाबाद, अरवल और औरंगाबाद के ग्रामीण इलाकों में शादी-विवाह समेत अन्‍य बड़े कार्यक्रमों में बिरंज बनता था। लेकिन पुराने जमाने के कई व्‍यंजनों की तरह अब बिरंज भी इतिहास में शामिल होता जा रहा है। अपने स्‍वाद के लिए प्रसिद्ध यह बिरंज अब लुप्‍त होने की कगार पर पहुंच चुका है। आधुनिकता के चकाचौंध और फास्‍टफूड के आगे कभी शान और प्रतिष्ठा का प्रतीक समझा जाने वाले बिरंज अब उपेक्षित हो गया है।

उपवास में रहकर तैयार किया जाता है बिरंज

यह व्यंजन खासकर भूमिहार समाज के लोगों की पहली पसंद थी। शादी-विवाह के मौके पर इसे खिलाना शान का प्रतीक माना जाता था। बिरंज की खासियत यह भी थी कि इस व्यंजन को बनाने वाले भी उसी वर्ग विशेष के होते थे। जब वह इस व्यंजन को तैयार करते हैं तो वह व्यक्ति एवं उनके सहायक सभी उपवास में रहते हैं। 

बिरंज बनाने में लगने वाली सामग्री

इस व्यंजन को बनाने में चावल, मसाले, काजू, किशमिश, पिश्ता, अखरोट सहित सभी प्रकार के मेवा का उपयोग होता है। जितनी मात्रा में चावल होता है उतनी ही मात्रा में मेवा का भी होना जरूरी है। यह गाय के शुद्ध घी में तैयार किया जाता है। इसके बनाने में उपयोग आने वाले सारे पात्र (बर्तन) मिट्टी के होते हैं। उसमें मसाला का अर्क तैयार किया जाता है। इसके बाद अल्‍यूमिनियम के बर्तन में इसे तैयार किया जाता है। बनने के बाद बिरंज का रंग लालिमा लिए हो जाती है। इसे बनाने में लगभग 8 से 10 घंटे का समय लगता है। 

निर्माण स्थल में स्त्रियों का प्रवेश वर्जित

जानकर बताते है कि बिरंज जहां बनता है वहाँ महिलाओं का प्रवेश पूरी तरह वर्जित होता है। इससे बनाने वाले व्यक्ति एवं उनके सहयोगी पूरी शुद्धता का ख्याल रखते हैं। जिनके घर विवाह होता है वे बनाने वाले की पैर पूजा करते हैं। उन्‍हें नए वस्त्र प्रेमपूर्वक भेंट करते हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि इसे बनाने वाले विशेषज्ञ इसे बनाने के बदले में एक रुपया भी नहीं लेते हैं।

मगध में शान और सम्मान का प्रतीक था बिरंज

इस स्वादिष्ट और विशिष्ट व्यंजन को बनाने वाले एक प्रमुख जानकार पंचमहला ग्राम के महेश शर्मा बताते हैं कि समय के साथ खान-पान और उसके तौर तरीकों में बहुत बदलाव आया है। वर्तमान समय में शादी विवाह या खास अवसरों पर बनने वाले पकवान का बिरंज अब हिस्सा नही रहा। शादियों में अब कभी कभार ही खाने को मिलता है l मुख्य रूप से  यह अभिजात्य भूमिहार वर्ग के लोगों में बहुत प्रचलित है। मगध के होने के नाते शादियों में कभी कभार खाने का मौका मिलता है। इसका एक कारण यह भी है कि महंगाई के इस दौर में बिरंज एक काफी खर्चीला व्यंजन बन गया है। दूसरा यह कि इसको बनाने वाले इक्के दुक्के लोग बचे है। शर्मा के साथ काम करने वाले सोवाल के सुरेंद्र शर्मा, पूरा के अवध सिंह आदि बताते है कि इस लाजवाब क्षेत्रीय व्यंजन को बनाने की कला वर्तमान पीढ़ी सीखना नहीं चाहती है। आज तड़क भड़क और चटपटे सड़क छाप(चाऊमीन, गोलगप्पा, चाट, मन्चूरियन आदि) व्यंजन नई पीढ़ी की पहली पसंद बन गई है।

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