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Bodh Gaya News: बुद्ध के आंगन में तर्पण व पिंडदान की अनोखी परंपरा, कालांतर से चली आ रही परंपरा

Pitru Paksha 2023भगवान बुद्ध का आंगन कहे जाने वाले महबोधि मंदिर परिसर में भी कालांतर से पिंडदान करने का विधान चला आ रहा है। 80 के दशक के पहले जब निरंजना नदी पर पुल नही बना था तो धर्मारण्य मातंगवापी वेदी पर पिंडदान का विधान और सरस्वती में तर्पण के विधान को निरंजना नदी में पूर्ण पर महाबोधि मंदिर में पिंडदान करते थे।

By vinay mishraEdited By: Mohit TripathiUpdated: Tue, 26 Sep 2023 05:46 PM (IST)
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Pitru Paksha 2023: बोधगया के महाबोधि मंदिर में पिंडदान करते श्रद्धालु। फाइल फोटो
Pitru Paksha 2023 । विनय कुमार मिश्र, बोधगया: हिन्दू मान्यता के अनुसार भगवान बुद्ध विष्णु के नौवें अवतार के रूप में जाने जाते हैं। इस कारण अंतरराष्ट्रीय पर्यटन स्थल बोधगया स्थित विश्वदाय धरोहर महाबोधि मंदिर में कालांतर से चली आ रही तर्पण व पिंडदान की प्रक्रिया आज भी जारी है।

पितृपक्ष के दाैरान हजारों की संख्या में सनातनी श्रद्धालु प्रतिदिन मंदिर परिसर और मुचलिंद सरोवर के समीप कर्मकांड के तहत पिंडदान के विधान को करते हैं।

वैसे तो बोधगया में तीन पिंडवेदी का विशेष महत्व है-यथा धर्मारण्य, मातंगवापी और सरस्वती। सरस्वती पिंडवेदी के समीप मुहाने नदी में तर्पण का विधान स्कंध पुराण में वर्णित है।

महाबोधि मंदिर में भी होता है पिंडदान

भगवान बुद्ध का आंगन कहे जाने वाले महबोधि मंदिर परिसर में भी कालांतर से पिंडदान करने का विधान चला आ रहा है।

80 के दशक के पहले जब निरंजना नदी पर पुल नही बना था, तो धर्मारण्य, मातंगवापी वेदी पर पिंडदान का विधान और सरस्वती में तर्पण के विधान को निरंजना नदी में पूर्ण पर महाबोधि मंदिर में पिंडदान करते थे।

यहां पिंडदान करने वाले तीर्थयात्री पिंडदान के पश्चात भगवान बुद्ध का दर्शन कर पवित्र बोधिवृक्ष को नमन करते थे। यह प्रथा आज भी चली आ रही है।

90 के दशक में पिंडदान का हुआ था विरोध

अखिल भारतीय महाबोधि महाविहार मुक्ति आंदोलन समिति द्वारा महाबोधि मंदिर परिसर में पिंडदान का विराेध कर रोक लगाने की मांग की गई थी। लेकिन तत्कालीन सचिव डा. काली चरण सिंह यादव ने इसे नजरअंदाज कर पिंडदान की प्रक्रिया को जारी रखा था।

विदेशी मंदिरों का खुला रहता पट

पितृपक्ष के दौरान बोधगया स्थित विभिन्न विदेशी बौद्ध मंदिरों का पट दिन भर खुला रहता है। वैसे अन्य दिनों में दोपहर में मंदिर का पट दो घंटे के लिए बंद कर दिया जाता है। लेकिन पितृपक्ष में आगत सनातनी श्रद्धालु भगवान बुद्ध व मंदिर का परिभ्रमण कर सके। इसके लिए मंदिर का पट दिन भर खुला रहता है।

सभी धर्मों के लोगों का आदर करना चाहिए। यही भगवान बुद्ध को संदेश भी है। महाबोधि मंदिर में पहले से चली आ रही परंपरा निर्वहण आज भी हो रहा है प्रशंसनीय है। महाबोधि मंदिर में संस्कृति का समागम दिखता है। यही भारत की विशेषता है। पूर्व की भांति इस वर्ष भी सनातनी पिंडदानियों की सुविधा का भरपूर ख्याल रखा जाएगा।

डॉ. महाश्वेता महारथी, सचिव, बीटीएमसी, बोधगया।

गया श्राद्ध पद्धति में पवित्र बोधिवृक्ष की छांव मं पिंडदान करने के महत्व को दर्शाया गया है। यह परंपरा प्राचीन काल से चला आ रहा है। पहले पिंड को मुचलिंद सरोवर में विसर्जित करते थे। आज भले ही बंद हो गया है। आज मुचलिंद सरोवर के समीप पिंडदान करने का स्थल निर्धारत कर किया गया है।

डॉ. राधाकृष्ण मिश्र उर्फ भोला मिश्र, वरिष्ठ भाजपा नेता सह बीटीएमसी के पूर्व सदस्य

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