Mountain Man दशरथ मांझी के परिवार की हालत जस की तस, कहा- भूखे पेट सो जाएंगे, लेकिन पिता के उसूलों को बिकने नहीं देंगे
माउंटेन मैन के नाम से मशहूर दशरथ मांझी के कर्मों के बदौलत गेहलौर में काफी कुछ बदलाव हुआ लेकिन उनके पीछे उनका परिवार आज भी जैसे-तैसे अपना गुजारा कर रहा है। दैनिक जागरण की टीम ने उनके बेटे भागीरथ व परिवार के अन्य सदस्यों से मुलाकात की। इस दौरान बेटे भागीरथ ने कुछ अनुभव साझा किए और साथ में अपना दुख भी बांटा।
रविभूषण सिन्हा, वजीरगंज। गया के गहलौर गांव और वहां की घाटी। अब यह पूरी दुनिया में प्रसिद्ध होकर पर्यटन स्थल का रूप ले चुका है। उस धरती के प्रसिद्धि पाए पर्वत पुरुष स्व. दशरथ मांझी के आश्रितों से दैनिक जागरण टीम से मुलाकात होती है। स्थान था पर्वत पुरुष का समाधि स्थल। एक चबूतरे पर बैठे मिलते हैं उनके पुत्र भागीरथ मांझी।
बडे़ लोगों की बड़ी बातें: भागीरथ
टीम ने एक सवाल किया- बाबा आपको किसी क्षेत्र से लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए टिकट मिलना था। उसमें क्या हुआ, आप गांव में क्यों बैठे हैं। भागीरथ थोड़ा झल्लाते हैं, मगर बड़ी शालीनता से बोलते हैं- बड़े लोग की बड़ी बात होती है बाबू।
दशरथ मांझी के बेटे (मुझे) को टिकट देने की बात बोलकर अपना तो नाम कमा लिए, लेकिन समय आने से पहले सब कुछ बदल गया। तब मन गदगद था, पूरे गांव वालों में बहुत खुशी थी। गया लोकसभा क्षेत्र से संसद के लिए टिकट मिलना था पर नहीं मिला। वैसे मुझे उसकी जरूरत भी नहीं थी। और हम किसी से कुछ मांगने भी नहीं जाते।
पिता के उसूलों को साथ ले चलते हैं भागीरथ
मेरे पिता का अपना उसूल था कि हमने पूरी दुनिया को दिया है। इसलिए किसी से कुछ मांगना नहीं है। जिनको जरूरत होती है वे मुझे बुलाकर पास में बिठा लेते हैं। अपनी बड़ाई करवा लेते हैं लेकिन हम तो वही के वहीं रह जाते हैं।
आज भी झोपड़ी में कट रही जिंदगी
चलिए अपना घर दिखाइए... तब तो एक बार जोर से बमक जाते हैं। बोलते हैं क्या कीजिएगा उ झोपड़िया को देखकर। आप अभी तक झोपड़ी में ही रहते हैं ? बोले- कौन है जो मेरे लिए महल बनवा दिया। 1990 के दशक में बीस हजार वाला सरकारी आवास मिला था, अब वह ध्वस्त हो चुका है। कोई रोजगार नहीं है।सरकार कुछ जमीन दी है, वह मरुभूमि है। बगल के गांव करजनी में खेती करने के लिए पांच एकड़ जमीन मिली थी। कुछ दबंग लोग वहां से मिट्टी खोदकर ले गए। छह-सात फीट गड्ढा हो गया।
बेटी को मिनी आंगनबाड़ी केंद्र में सेवा देती है। वहां से चार हजार रुपये मिलता है। उसी से चल रहा है। 10 सदस्यों के परिवार में मात्र 15 किलो राशन प्रति महीना मिलता है। झोपड़ी में रहना तो हमारी मजबूरी है ।
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