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कुएं के मिटते अस्तित्व से जल संरक्षण को खतरा, बचाने के लिए आगे नहीं आ रहे औरंगाबाद के ग्रामीण

कुआं जल संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण है। करीब तीन दशक पहले तक अधिकांश गांवों में पेयजल एवं सिंचाई के लिए सबसे उपर्युक्त कुआं था जिसका वजूद समाप्ति के कगार पर है। सुविधाभोगी जनमानस को रस्सी के सहारे बाल्टी से पानी खींचना अब मुसीबत लगने लगा है।

By Prashant KumarEdited By: Updated: Mon, 23 Aug 2021 04:06 PM (IST)
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समाप्‍त होने की कगार में कुएं का अस्तित्‍व। जागरण आर्काइव।

जागरण संवाददाता, औरंगाबाद। कुआं जल संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण है। करीब तीन दशक पहले तक अधिकांश गांवों में पेयजल एवं सिंचाई  के लिए सबसे उपर्युक्त कुआं था, जिसका वजूद समाप्ति के कगार पर है। सुविधाभोगी जनमानस को रस्सी के सहारे बाल्टी से पानी खींचना अब मुसीबत लगने लगा है। अधिकांश लोग चापाकल एवं समर्सिबल पर निर्भर हो गए हैं। शहर की बात तो दूर गांव में भी लोग अब नल पर निर्भर हैं।

शहर के कुछ कुआं में जल स्तर अच्छा है लेकिन जागरूकता के अभाव में वे गंदगी के पर्याय बन गए हैं। सरकारी भवन परिसर में स्थित कुआं का अस्तित्व तो पहले ही समाप्त हो गया है। सदर प्रखंड के आनंदपुरा गांव के पास स्थित कुआं की स्थिति अत्यंत दयनीय हो गई है। कुआं का जलस्तर नीचे चला गया है। दीवारें जर्जर हो गई है।

ग्रामीणों ने बताया कि कुआं से ग्रामीण प्यास बुझाते थे। इसी कुआं के पानी से ग्रामीण मंदिर में पूजा-पाठ करते थे परंतु अब घर से पानी लाना पड़ रहा है। जीर्णोद्धार पर किसी का ध्यान नहीं है। कुआं पहले प्रत्येक घर की जरूरत थी परंतु अब इसके अस्तित्व पर खतरे का बादल मंडरा रहा है।

कुआं के पानी से होती थी पूजा

हमारे पूर्वज जल संरक्षण के लिए कुआं खुदवाते थे। हर गांव में 10 से 15 कुआं होता था। आज स्थिति यह है कि गांव में एक-दो कुआं मिल जाए तो समझे की जल संचय की दिशा में अब भी ग्रामीण जागरूक हैं। पहले कुआं के पानी से भोजन बनाने, पीने एवं पूजा करने काम होता था। हमारी संस्कृति कुआं की पानी को शुद्ध मानती है।

छठ व्रत के दौरान व्रती कुआं के पानी से ही प्रसाद बनाते हैं। कुआं की पानी के लिए भटकना पड़ता है। दूर से पानी लाना पड़ता है। अगर तालाब की स्थिति ठीक रहती तो पानी के लिए व्रती को भटकना नहीं पड़ता। यह सब देखते हुए भी अधिकारी एवं जनप्रतिनिधियों का ध्यान इस ओर नहीं जा रहा है।

कुओं का कराया जा रहा मरम्मत

पंचायती राज विभाग के तहत जिले के 11 प्रखंड के 1140 सार्वजनिक कुआं का मरम्मत कार्य कराया जा रहा है। इसके लिए विभाग के अधिकारी लगे हुए हैं। जल संरक्षण को लेकर तालाबों के जीर्णोद्धार का कार्य चल रहा है। 

किस प्रखंड में कितने कुआं हो रहे मरम्मत

प्रखंड का नाम - कुंआ की संख्या

  • औरंगाबाद         137
  • बारुण               60
  • दाउदनगर         105
  • देव                   94
  • गोह                  60
  • हसपुरा              66
  • कुटुंबा               181
  • मदनपुर             79
  • नवीनगर            158
  • ओबरा               99
  • रफीगंज             101
  • कुल                  1140
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